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5.1.11

आर्त भाव से श्रद्दांजलि : आरुषि शायद ही तुम भारत में जन्म लेना चाहोगी ?

चित्र साभार हिन्दुस्तान लाईव से
भारतीय कानून व्यवस्था , न्याय के लिये कितनी अक्षम साबित हुई इसका जीता जागता उदाहरण है आरुषि- जो जीते जी शायद इस तथ्य से वाक़िफ़ न थी कि उसे मरने के बाद कोई न्याय न  मिल  पाएगा, पता नहीं क्यों, भारत में  इस बात को गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है कितने सवाल जन्म ले रहें हैं आरुषि को न्याय न मिलने के कारण। इस पर सामाजिक, साहित्यिक और सियासी सभी मंचों पर सार्थक चिंतन और चिंता की ज़रूरत है. जाने कितने लोग होंगे, जो आरुषि की तरह न्याय की देवी की ओर आशा भरी नज़रों से देख रहे होंगे, शायद कल का सूरज कोई नई ख़बर लाएगा सोच रहे होंगे न ? पर तथ्यों ,तर्कों सूचनाओं पर आधारित व्यवस्था के चलते शायद वे भी आरुषि की तरह न्याय का इन्तज़ार करते ही रह सकते हैं. उस दिन को इतिहास का सबसे  बेहया दिन साबित करने के पहले हांथ क्यों न कांपे जब केस समाप्त किए जाने के लिये दस्तावेज़ भेजे गये। क्या हम इसी हताशा को लेकर आगे जाएंगे ? जो भी हो हमारी अधिकाधिक उर्ज़ा राजनैतिक-विमर्ष,फ़िल्मी-अश्लीलता, गैर-ज़रूरी सवालातों पर चिंता में जाया होती है तो हमारी व्यवस्था के हर खम्बे पर यही सब कुछ हावी है. बस आम व्यक्ति जो आम और न्याय की ताक़त पर भरोसा किये बैठा है उसे भारी हताशा हुई है इस क़दम से . आम आदमी चाहता है कि- " भले ही कुछ हो जाए न्याय को देने और दिलाने के लिये हम कटिबद्ध हैं !!"----इस बात कि कोई गारंटी ली जावे, पर शायद ही ऐसी कोई आवाज़ आए कहीं से, हम तो बस आरुषि के परलोक जीवन की शान्ति की प्रार्थना ओर व्यवस्था के लिये समझदार होने की प्राथना कर सकते हैं ॐ शान्ति!शान्ति! शान्ति!!! 

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