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तेहरान के मुकाबले ईरानी लोगों को सशक्त करो : डैनियल पाइप्स

 डैनियल पाइप्स नेशनल रिव्यू आनलाइन 19 जुलाई, 2011 http://hi.danielpipes.org/ article/10311 पश्चिमी सरकारों को इस्लामिक रिपब्लिक आफ ईरान के साथ किस ढंग से कार्यव्यवहार करना चाहिये जिसे कि वाशिंगटन ने " आतंकवाद का सबसे सक्रिय राज्य प्रायोजक बताया है'? ईरान की आक्रामकता 1979 में तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जे से आरम्भ हुई और इसके कुछ कर्मचारियों को कुल 444 दिनों तक बंधक बना कर रखा। इसके बाद हुए कुछ बडे आक्रमणों में 1983 में बेरूत में अमेरिकी दूतावास पर आक्रमण जिसमें 63 लोग मौत के घाट उतारे गये और अमेरिका की नौसेना बैरक पर आक्रमण जिसमें 241 लोग मारे गये। अभी हाल में अमेरिका के रक्षा सचिव लिवोन पनेटा ने कहा, " हमें दिखाई दे रहा है कि इन हथियारों में से अधिकतर इराक के रास्ते ईरान को जा रहे हैं और यह निश्चित रूप से हमें क्षति पहुँचा रहा है" । संयुक्त चीफ आफ स्टाफ के अध्यक्ष माइक मुलेन ने इसमें और जोडा कि, " ईरान प्रत्यक्ष रूप से कट्टरपंथी शिया गुटों की सहायता कर रहा है जो कि हमारे सैनिकों को मार रहे हैं" । अमेरिका की प्रतिक्रिया मूल रूप से दो

आतंक वाद कबीलियाई सोच का परिणाम है

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इस पोस्ट के लिखने के पूर्व मैंने यह समझने की कोशिश की है कि वास्तव में किसी धर्म में उसे लागू कराने के लिए कोई कठोर तरीके अपनाने की व्यवस्था तो नहीं है........?किंतु यह सत्य नहीं है अत: यह कह देना कि "अमुक-धर्म का आतंकवाद" ग़लत हो सकता है ! अत: आतंकवाद को परिभाषित कर उसका वर्गीकरण करने के पेश्तर हम उन वाक्यों और शब्दों को परख लें जो आतंकवाद के लिए प्रयोग में लाया जाना है. इस्लामिक आंतकवाद , को समझने के लिए हाल में पाकिस्तान के इस्लामाबाद विस्फोट , पर गौर फ़रमाएँ तो स्पष्ट हो जाता है की आतंक वाद न तो इस्लामिक है और न ही इसे इस्लाम से जोड़ना उचित होगा । वास्तव में संकीर्ण कबीलियाई मानसिकता का परिणाम है। भारत का सिर ऊँचा करूँगा-कहने वाले आमिर खान,आल्लामा इकबाल,रफी अहमद किदवई,और न जाने कितनों को हम भुलाएं न बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे घटना क्रम को बारीकी से देखें तो स्पष्ट हो जाता है की कबीलियाई समाज व्यवस्था की पदचाप सुनाई दे रही थी जिसका पुरागमन अब हो चुका है, विश्व की के मानचित्र पर आतंक की बुनियाद रखने के लिए किसी धर्म को ग़लत ठहरा देना सरासर ग़लत है । हाँ यहाँ