3.12.21

क्या ब्रह्मा चेलानी ने सही कहा न्यायालय के आदेश बारे में

ब्रह्मा चेलानी जी ने ट्वीट करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक बहुत ऐसी टिप्पणी की है जिसे समझने की अब जरूरत है।
The principle of separation of powers means the judiciary in no democracy shall exercise executive or legislative powers. But in India, alas, the Supreme Court, through the threat of action, has forced the state of Delhi to shut all schools in the name of fighting air pollution!
  ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि-"शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का अर्थ है कि किसी भी लोकतंत्र में न्यायपालिका कार्यकारी या विधायी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगी। लेकिन भारत में, अफसोस, सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई की धमकी के माध्यम से, वायु प्रदूषण से लड़ने के नाम पर दिल्ली राज्य को सभी स्कूलों को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है!"
  सिद्धांत: यह बात बिल्कुल सही है . लेकिन चेलानी साहब यह जानते ही होंगे कि-" न्यायपालिका कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का अंतिम उद्देश्य  भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रखना। और अगर तीनों के द्वारा राष्ट्रहित में कोई निर्णय लिया जाता है उसे कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं है।
  ट्विटर पर दिल्ली में प्रदूषण के संदर्भ में टि्वटर पर की गई उनकी टिप्पणी विचारणीय है। इस टिप्पणी के दो पहलू हैं। एक तो वह न्यायपालिका को अपनी परिधि के संबंध में संकेत देना चाहते हैं। दूसरा न्यायपालिका के बढ़ते हुए हस्तक्षेप पर प्रश्न भी उठाते हैं। यद्यपि वे प्रदूषण के संदर्भ में स्पष्ट रूप से बहुत अधिक नहीं बोल रहे प्रतीत होते हैं।
   भारत के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व श्री ब्रह्मा का ऐसा कथन एक वैचारिक सलाह के रूप समझा जा सकता है। इसे ऐसा समझना भी चाहिए। परंतु न्यायालय जब लोकहित में काम करते हैं तो उस पर गाहे-बगाहे टिप्पणी करना ठीक नहीं। अक्सर दिल्ली के वातावरण को देखकर लगता है कि वास्तव में वहां की व्यवस्थापिका और कार्यपालिका अपने दायित्व को निर्वहन करने में जहां हस्तक्षेप का अवसर देती है तो हस्तक्षेप किया जाना चाहिए। प्रदूषण के संदर्भ में तो दिल्ली में कोई कार्य योजना नहीं बना रखी है। दिल्ली प्रदूषण की रोकथाम के लिए केवल प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है ऐसी स्थिति में न्यायलय का हस्तक्षेप प्रभावित और अवश्यंभावी है।
   फिलहाल न्यायालय ने जो कहा वह लोक कल्याणकारी अनुदेश माना जा सकता है। चेलानी साहब अपनी ट्वीट पर पुनर्विचार कर सकने के लिए स्वतंत्र है।
    

1 टिप्पणी:

खत्री किशोर ने कहा…

सवाल उठ रहे है कि न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रहित में उठाए गए इस कदम पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं
जबकि सवाल यह होना चाहिए कि *सवाल क्यों उठाना पड़ा*
सवाल इसलिए उठाना पड़ा पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका भेदभाव पूर्ण रवैया अख्तियार किए हुए हैं जैसे बंगाल हिंसा पर कई याचिकाओं के बावजूद कोई निर्णय न देना त्रिपुरा में फर्जी रिपोर्ट के बावजूद स्वत संज्ञान लेना होली दिवाली सबरीमाला जलीकत्टू में स्वत; संज्ञान लेना ईद मुहर्रम जानवरों की क़ुर्बानी पर कुछ ना कहना अखलाक पहलू खान पर सतह संज्ञा लेना किसी हिंदू की मॉब लिंचिंग पर कुछ ना कहना इसलिए सवाल उठते हैं सवाल उठाने पड़ते हैं प्रधानमंत्री जी ने भी यही सवाल उठाया है

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