24.10.20

वीरांगना रानी चेन्नम्मा आलेख :- आनंद राणा जबलपुर

"जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूंद है,कित्तूर को कोई नहीं ले सकता" - वीरांगना रानी चेन्नम्मा🙏"आईये अवतरण दिवस पर गर्व के साथ नमन करें.. भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी - चेन्नम्मा को जिन्होंने 11 दिन लगातार अंग्रेजों को पराजित किया और 12 वें अपने लोगों के ही धोखा देने से वो पराजित हुईं ..आईये जानते हैं कि वीरांगना रानी चेन्नम्मा का गौरवशाली इतिहास 🙏🙏
1. रानी चेन्नम्मा का परिचय-
रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होनेवाली पहली वीरांगना थीं । सर्वथा अकेली होते हुए भी उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य पर दहशत जमाए रखी। अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खड़ा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया। कर्नाटक के कित्तूर रियासत की वह वीरांगना चेन्नम्मा रानी थी। आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नामसे जानी जाती है। 
2.रानी चेन्नम्मा का बचपन-
रानी चेन्नम्मा का जन्म काकती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में )23 अक्टूबर 1778 में  हुआ। बचपन से ही उसे घोड़े पर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन सन् 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र  था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । सन् 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लड़ने हेतु छोड़कर कर चला गया ।
3.अंग्रेजों द्वारा व्यपगत की नीति के अंतर्गत रानी चेन्नम्मा की रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए अल्टीमेटम दिया - कित्तूर रियासत धारवाड़ जिलाधिकारी के प्रशासन में आ गया ।चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को अंग्रेज़ों का शासन स्वीकार करना होगा ।
4..वीरांगना रानी चेन्नम्मा का अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध-
अंग्रेजों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कडा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में कई ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अपमानजनक हार स्वीकार करना अंग्रेजों के लिए बड़ा कठिन था । उन्होंने मैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।
रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास  किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला ।आखिरकार परीक्षा की घड़ी आ ही गई और रानी चेन्नम्मा युद्ध की घोषणा कर दी । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड़ एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । सन् 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रितानियों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में उनका नाम अजर अमर हो गया । कर्नाटक में उनका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई हैं । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्यसे उसने अंग्रेज़ों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गाने वाले जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे,स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।
दुर्भाग्य देखिए कि तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों और एक राजनैतिक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों ने इतिहास लिखते समय - भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदान को हाशिये में भी नहीं रखकर जो अपराध किया है उसका दंड उनको भुगतना ही पड़ेगा..परंतु अब हम लोग तो न्याय करें!.. पुनः वीरांगना रानी चेन्नम्मा के अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 🙏 प्रेषक - डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास का एक विद्यार्थी, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 🙏🙏🙏🙏🙏

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