26.5.20

"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"


"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"
           मोदी जी ने जब आत्मनिर्भरता पर अपनी बात रखी तो कुछ लोग जोक बनाने लगे । कुछ सोशल मीडिया पर ट्रोल करते नज़र आ रहे हैं । पर हम जैसों को महसूस होता है कि -"गांधी जी ने सही कहा था कि आत्मनिर्भरता ही स्वतंत्रता का आधार है !"
यहाँ संकेत साफ है कि गांधी जी के आत्मनिर्भरता के सन्देश में एक दीर्घकालिक चिंतन था । हर किसी ने उसे लॉक डाउन के दौर में महसूस किया है ।
गांधी जी स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे । वे अत्यधिक महत्व स्थानीय उत्पादन को देते थे । यहां तक की वैयक्तिक उत्पादन सबके लिए बहुत प्रेरक था । रुई तकली पौनी का अर्थ बैकवर्ड होना नहीं । हमें इसका अर्थ समझना चाहिए ।
लॉक डाउन के दौर में साफ हो गया कि यांत्रिक विकास से जब पहिए थम गए तब गांव याद आया ।
सबने देखा मज़दूरों और मजबूरों के पांव छलनी हुए थे है न...पसीना चुहचुहाता सड़कों को सींचता हुआ
किसने नहीं देखा ?
      रेल से मारे गए, बुखार ताप से मारे गए पथचारियों का दर्द कवियों ने लेखकों ने भी बखूबी महसूस किया ।
क्या सिर्फ हमें गांव छोड़कर ही तरक़्क़ी के स्वप्न देखा है ? यदि हाँ तो सबसे बड़ी मूर्खता है। शहर में जिस कारखाना मालिक को आप मालिक समझ रहे थे उसने लॉक डाउन में आपको शैल्टर तो छोड़ो खाना भी मुहैया न कराया होगा । वो मौलिक रूप से शोषक था है और कल भी रहेगा ।
मजबूर मज़दूर शायद ही अब बड़े शहरों की तरफ जाएंगे । अगर व्यवस्था, उनको अपने गांव में ही रोटी मुहैया करा दी जाती है । ऐसे संक्रमण काल में सबसे सुखी गांव ही रहेंगे । एक आंकलन से यह तथ्य सामने आया है कि - "कृषि उपज प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होने वाली फसल की मात्रा होती है। ... इसके मुकाबले भारत की उपज 2.0 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3.6 टन प्रति हेक्टेयर हो गई। इस अवधि में चीन में चावल की उत्पादकता भी 4.3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 6.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।"
भारत-चीन तुलना (कृषि क्षेत्र में)
चीन एवम भारत कृषि योग्य भूमि क्रमशः 120 मिलियन हेक्टेयर156 मिलियन हेक्टेयर जबकि चीन का कुल सिंचित क्षेत्र41 और भारत का प्रतिशत 48
सकल बुआई के लिए चीन का कुल क्षेत्र 166 मिलियन हेक्टेयर और 198 मिलियन हेक्टेयर
फिर भी कृषि उत्पादन की कीमत चीन के 1367 बिलियन ( रुपए 103,714.29 बिलियन ) और भारत में 407 बिलियन डॉलर अर्थात 30,879.09 विलयन रुपए मात्र है ।
कृषि आधारित अन्य मुद्दे पर हम पीछे ही हैं । क्योंकि हमने फुलपेंट शर्ट पसन्द आने लगा है । ये अलग पर महत्वपूर्ण मुद्दा है कि - कृषि अनुसंधान स्किल डवेलपमेंट आदि हमारी प्राथमिकता में नहीं है ।
*शहर मुकुराते हैं तो सिर्फ शहर ही मुस्कुराते हैं परंतु जब गांव ठहाका लगाता है तो देश के ठहाके विश्व में गूंजते हैं...!*
विकास का अर्थ सर्वांगीण विकास ही होता है । हमारा परिवार ही आधी शताब्दी पहले शहर में आ बसा गांव से नाता तोड़कर । हमारे गांव के तब के कृषि मज़दूर अब बड़े कृषक हैं । हमसे अधिक सामर्थ्यवान और महत्वपूर्ण भी । अब एक इंच भूमि नहीं है गांव में । और न ही सामर्थ्य शेष है ।
केवल स्थानीय अर्थात 200 किलोमीटर तक ही अनस्किल्ड श्रमिक को पलायन करने की ज़रूरत हो ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए । कृषि को सामर्थ्यवान बनाए बगैर किसी बेहतर स्थिति का सपना सपना ही रहेगा ।
22 सितंबर 1931 को गांधी जी से चार्ली चैपलिन से मुलाक़ात हुई आप सब इस तथ्य से परिचित हैं ।
इसका विवरण चार्ली चैपलिन की आत्म कथा में दर्ज है । चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे गांधीजी से मुलाकात के लिए कुछ समय पहले ही निर्धारित स्थान पर पहुँच गए थे. चैपलिन ने लिखा “अंततः जब वे (गांधीजी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारों की भारी गूंज उठ पड़ी. उस छोटी तंग बस्ती में अजब दृश्य था, जब एक बाहरी शख्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जय घोष के बीच दाखिल हो रहा था.” चैपलिन आगे लिखते है “गांधीजी से तो मैं उम्मीद नहीं कर सकता था कि मेरी किसी फिल्म पर बात शुरू करते हुए कहेंगे कि बड़ा मजा आया. ‘मुझे नहीं लगता था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी होगी.’ तो चैपलिन ने ही बात शुरू करते हुए कहा मैं स्वाधीनता के लिए भारत के संघर्ष के साथ हूँ, लेकिन आप मशीनों के खिलाफ क्यों है, उनसे तो दासता से मुक्ति मिलती है, काम जल्दी होता है और मनुष्य सुखी रहता है?”
मशीनों से गांधी जी को कोई एतराज न था वे विरोधी भी न थे वे रेल का सफर करते थे पर वे स्वाधीनता के मशीनों को सापेक्ष रखते ही वे गम्भीर हो जाते और चर्खा तकली रुई पौनी के महत्व यानी आत्मनिर्भरता को श्रेष्ठ मानते थे ।
उधर घर से कम्यून ले जाकर विकास का दम्भ भरते हुए प्रोफेसर चंद्रमोहन जी जो आगे चलकर आचार्य रजनीश हुए ने गांधी जी का भरपूर खंडन किया...और हमारा ब्रेनवाश ।
समाज को समझना होगा कि अगर गांव आत्मनिर्भर न हुए तो बाक़ी सब कयास बेमानी होंगे ।  

कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

Brain & Universe

Brain and Universe on YouTube Namaskar Jai Hind Jai Bharat, Today I am present with a podcast.    The universe is the most relia...