14.1.20

कल्लू का सोशियो-पॉलिटिकल चिंतन : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

हमारे कल्लू भाई दिन भर काम धंधे में मशरूफ रहते हैं . सुबह उठते गर्म पानी रखते अपने लिए और दो कप चाय एक खुदके और एक अपनी पत्नी परमेसरी के लिए  बना देते हैं । 
      तब जाकर परमेसरी बिस्तर से बाहर निकलती वह भी ऐसी अंगड़ाई लेते हुए जैसे सपेरे की टोकरी से वह निकलती है  जिसका नाम आमतौर पर हमारे यहां रात में नहीं लेते ।  कल्लू भाई की सुबह  तो यूं ही होती है  । 
      बड़ी मुश्किल परमेसरी रोते झीकते  कलेवा बनाती कल्लू  कलेउ के तौर पर रोटी और अथाना प्याज के साथ निपटा के निकलते और सीधे थोक सब्जी मंडी में जाकर सब्जियां खरीदते फिर.... गली-गली चलाना पड़ता आलू ले लो प्याज ले लो टमाटर ले लो की टेर के साथ  । 
लगभग तीन चार  बजे तक सब्जी बेच के कल्लू भाई ₹500/ -₹600/ तक कमा लेते हैं । 
       उन्हें पेट भरने के लिए इतना पर्याप्त समझ में आता पर हालात तब मुश्किल में आ जाते जब कभी परमेसरी बीमार हो जाती ।  यूं तो वह अक्सर बीमार रहती बीमारी क्या आराम करने की इच्छा हो तो बीमार होने का ऐलान करना परमेसरी की मूल प्रवृत्ति में शामिल है । 
    और इसी के सहारे परमेसरी को  आराम मिल जाता और कल्लू को ओवरटाइम  ।        
कल्लू एक प्रतीक हैं उस निम्न मध्यवर्ग के जिनको सम्पूर्ण विकास का अर्थ नहीं मालूम । अर्थ तो बहुतेरों को भी नहीं मालूम जिनके कांधे पे आज-कल-परसों की ज़वाबदेही है जैसे नेता, मंत्री, संत्री, हीरो हीरोइन, बालक,  किशोर, युवा,  जेएनयू जाधवपुर आदि के छात्र छात्राएं ।
  किसी ने बताया है कि इस साल कल्लू सोच रिया है कि 15 अगस्त नहीं मनाएगा ! उसने टीवी पे देखा लौंडे जिन्ना वाली आज़ादी मांग रए हैं ? गांधी वाली कल्लू के बाप के ज़माने की है वो समझ गया इस बार नई वाली आज़ादी मिलेगी । अरे बच्चे मांग कर रहे हैं तो मिलेगी है न पाठकों ?  
    कोई रैली को विकास मानता है तो कोई आज़ादी को जिन्ना वाली  भी मानने लगे हैं  कल्लू क्या जाने यह दौर भीषण बेवकूफी भरा दौर बस जलाओ पुलिस को गरियाओ सवाल उठाओ ट्रेन फूंको, 
  कल्लू ऐसा नहीं करता वो आंदोलित नहीं वो आदर्श भारतीय है बच्चे के निजी स्कूल की फीस टाइम पर देता है । डाक्टर को फीस देता है भले कर्ज़ा काढ़ के दे देता है । भले ही लोग उसे बेवकूफ समझें 

कल्लू और उसकी बचत
कल्लू 400 से 500 रुपए बचा पाता है । बचत के नाम पर 2500 भी बचाना चाहता है... वो ताक़ि उसका राशिफल सही हो जाए पर न तो बचत होती न ही राशिफ़ल सही निकलता ! 
कल्लू के कुछ दोस्तों ने छपाक कुछ ने देखी तानाजी भी पर उसने नहीं । उसकी यही आदत फ़िज़ूल खर्ची से बचाती है और कमीने मित्र उसे बेवकूफ समझतें हैं । 
       अब बताइए फ़िल्म देखेगा तो उसका पैसा फ़िल्म दिखाने वाले थियेटर मालिक से लेकर प्रोड्यूसर यूनिट में बंट जाएगा । उससे छपाक वाली लक्ष्मी जैसी बेचारियों को क्या लाभ होगा ? कोई चैरिटी थोड़े न कर देगी फिलम कम्पनी बताओ भला ? 
हालांकि कल्लू ने ये सोचके फ़िल्म न देखी हो ऐसा नहीं उसे तो फिल्मी के अर्थशास्त्र अल्फा-बेट भी नहीं मालूम । हमने तो यूं ही लिख दिया ताकि आपको समझ आ जाये 😊 ?
कुल मिलाकर कल्लू की बचत करने की कोशिश की तारीफ करने की कोशिश कर रहा हूँ हमारे मोदी जी बोले थे न मेडिसन-स्कैवर पर हम पर्सनल सैक्टर को विकसित करेंगे ? 
अरे पर्सन अगर बचत करे पाया तो  पूंजी बनेगी, पूंजी बनेगी तो पर्सनल सैक्टर नज़र आएगा पर ये सब भाषण की बातें हैं इन पर अधिक मत सोचो बुद्धू बने रहो कल्लू जैसे । 
और हां आज तो बस इतनी बात जान लो कल्लू फिल्म नहीं देखता है केवल प्रमेसरी और उसका लड़का फ़िल्म देखता है । 

कल्लू का डेमोक्रेसी में योगदान 

           कल्लू मुन्ना चाचा जिसको बोलते उसे वोट दे देता है,उसका एक कारण है ।  हुआ यूँ कि जब से वोट दे रहा है उसका कैंडिडेट हार जाता था । उसे बड़ा दुःख होता , इस दुःख का ज़िक्र उसने मुन्ना चाचा से किया । मुन्ना चाचा ने कहा अबसे हम जिसको कहें उसका ईवी एम बटन दबाना । बस तब से अब तक कल्लू का घोर भरोसा है मुन्नाचाचा पर ।  कल्लू आदर्श निम्न मध्यम वर्गीय भारतीय है ।  जिसे भाषण सुनाई तो देता है पर समझ में नहीं आता ..हाँ उसे पता है जब भी आंदोलन होते हैं तब उसका टैक्स का कुछ रोकड़ जलता है जैसा मुन्ना चाचा बतातें हैं । पर कैसे और क्यों जलता है कल्लू के लिए विचारणीय नहीं । कुल मिला कर कल्लू मस्त लाइफ जी रहा है । उसका बेटा भी सब्जी का ठेला लगाएगा बस और क्या ? कल्लू के बहाने किसको हमने किसको और कितना निपटाया आप खुद समझो मीज़ान लगालो भई ....!

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