25.12.19

पुराने किले का जालिम सिंह : आलोक पुराणिक

इस पोस्ट के लेखक व्यंगकार आलोक पौराणिक जी हैं । जिनसे पूछे बिना हमने अपने ब्लॉग पर इसे छाप लिया... जिसे मैटर लिफ्टिंग कहतें है ... आभार आलोक जी ☺️☺️☺️☺️ 

टीवी चैनल पर खबर थी-पवन जल्लाद आनेवाला है तिहाड़ जेल में फांसी के लिए।
टीवी के एक वरिष्ठ मित्र ने आपत्ति व्यक्त की है-बताइये जल्लाद का नाम कुछ ऐसा होना चाहिए जोरावर सिंह जल्लाद आनेवाला है या जुझार सिंह, प्रचंड सिंह जल्लाद आनेवाला है।
जल्लाद का नाम पवन प्रदीप जैसा हो तो टीवी न्यूज ना बनती।
न्यूज दो तरह की होती है, एक होती है न्यूज और दूसरी होती है टीवी न्यूज।
टीवी न्यूज ड्रामा मांगती है, अनुप्रास अलंकार मांगती है। जुझार सिंह जल्दी पहुंचकर जल्दी देगा फांसी-इस शीर्षक में कुछ अनुप्रास अलंकार बनता है। ड्रामा ना हो तो टीवी न्यूज ना बनती।
कुछ टीवी चैनलवाले कुछ जल्लादों को पकड़ लाये हैं-जो रस्सी से कुछ कारगुजारी करते दिख रहे हैं। टीवी रिपोर्टर बता रहा है कि ऐसे बनती है रस्सी, जो फांसी के काम में आयेगी।
जब कई टीवी चैनल कई जल्लादों को फांसी स्टार बना चुके थे, तो बाकी चैनलों को होश आया कि जल्लाद तो सारे ही पहले ही पकड़े जा चुके हैं  चैनलों द्वारा। मैंने निहायत बेवकूफाना सुझाव दिया-तो एक काम करो, नये बच्चों को पकड़ लो और बता दो ये प्रशिक्षु जल्लाद हैं, इंटर्न जल्लाद है, भविष्य के जल्लाद हैं।

एक मासूम रिपोर्टर ने सवाल  पूछ लिया-ये बच्चे बड़े होकर जल्लाद ना बने, तो हम झूठे ना बनेंगे।

सब हंसने लगे। झूठे दिखेंगे, झूठे दिखेंगे-इस  टाइप की चिंताएं अगर टीवी पत्रकार करने लगें, तो फिर हो गया काम। फिर तो किसी भी काम ना रहेंगे टीवी  पत्रकार। पवन जल्लाद का नाम बदलकर टीवी चैनल कर सकते हैं-जुझार सिंह जल्लाद या प्रचंड प्रताप जल्लाद, टीवी न्यूज की पहली जरुरत यह है कि उसे टीवी के हिसाब से फिट होना चाहिए। टीवी न्यूज में भले ही न्यूज बचे या ना बचे, टीवी का ड्रामा जरुरी बचना  चाहिए।

जालिम सिंह जल्लाद कैसा नाम रहेगा-इसमें अनुप्रास अलंकार भी है-एक नया रिपोर्टर पूछ रहा है।

टीवी चैनल के चीफ ने घोषित किया है-इस जालिम सिंह वाले रिपोर्टर में टीवी की समझ है। प्रदीप जल्लाद को जो जालिम सिंह जल्लाद बना दे, वही टीवी जानता है। न्यूज जानना टीवी न्यूज की शर्त नहीं है।

नाग से कटवाकर भी मारा जा सकता है किसी मुजरिम को-इस विषय पर टीवी डिबेट चल रही है किसी टीवी चैनल पर। फांसी संवेदनशील विषय है, इसके कुछ नियम कायदे हैं। नाग या नागिन से कटवा कर मारा जा सकता है या नहीं, यह विषय संसद, अदालत में विमर्श का है। पर नहीं, इस पर नाग विशेषज्ञ, एक तांत्रिक और एक हास्य कवि विमर्श कर रहे हैं। हास्य कवि अब कई गंभीर विमर्शों में रखे जाते हैं, लाइट टच बना रहता है। हास्य कवि बता रहा है कि यूं भी कर  सकते हैं-फांसी की सजा पाये बंदे को प्याज के  भाव पूछने भेज सकते हैं। वो भाव  सुनकर ही मर जायेगा। प्याज के भाव संवेदनशील विषय हैं, फांसी की सजा संवेदनशील विषय है। पर टीवी न्यूज पर सब कुछ ड्रामा होता है।

जालिम सिंह जल्लाद आ रहा है-इतने भर से ड्रामा नहीं बनता है। यूं हेडिंग लगाओ-काली पहाड़ी के पुराने किले से जालिम सिंह  जल्लाद आ रहा है-एक टीवी चैनल चीफ ने सुझाव दिया है।

मैंने कहा कि यूं लगाओ ना –हजार साल  पुराने किले से पांच सौ साल का जल्लाद आ रहा है।

एक नये रिपोर्टर ने कहा-पर हम झूठे नहीं दिखेंगे क्या।

टीवी चैनल चीफ ने अंतिम ज्ञान दिया  है-टीवी न्यूज में हम सच झूठ की इतनी फिक्र करने लगे, फिर तो हम बेरोजगार हो जायेंगे।

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