गिरीश बिल्लौरे के दोहे

दोहे...!!
ऐसा क्या है लिख दिया, कागज में इस बार
बिन दीवाली रंग गई- हर घर की दीवार ।।
जब जब हमने प्रेम का, परचम लिया उठाए
तब तब तुम थे गांव में, होली रहे जलाए।
मैं क्यों धरम बचाऊँगा, धरम कहां कमजोर
मुझको तो लगता यही कि- चोर मचाते शोर ।।
मरा कबीरा चीख के- जग को था समझाय
पर मूढन की नसल को, बात समझ न आए ।।
सरग नरक सब झूठ है, लावण्या न हूर ।
खाक़-राख कित जात ह्वै, सोच ज़रा लँगूर ।।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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