23.10.18

दुर्गा भैया और हम

बहुत दिनों से बार्बर शॉप पर नहीं जा पाया था । जाता भी कैसे वक्त नहीं मिला दाढ़ी पर रेजर चलाया और बाल सफाचट । इस तरह आधी अधूरी सभ्यता वाली छवि और फीलिंग लेकर अपने आप में खुश था किंतु आज तो तय ही कर लिया था कि हमें बाल कटाना ही है । बाल ना कटा था रामलीला वाले पक्के में रीछ वाला रोल दे देते और फिर आप तो जानते हैं कि अपन ठहरे आग्रह के कच्चे सच में बहुत कच्चे हैं हम आग्रह के कम अक्ल साहित्यकार ठहरे । रामलीला वाले बुलाते तुझे आना ही पड़ता ठीक वैसे ही जैसे घर के दरवाजे पर कोई मित्र आता है और पुकारता काय चल रहे हो का....? रसल चौक मुन्ना कने पान खाएंगे  ?अंदर से अपन लगाते आवाज काय नईं आ रये ज़रा रुको तौ । घर में कितना भी जरूरी काम हो निकल पड़ते थे ठीक उसी तरह रामलीला वाले अगर बुलाते काय रीछ का रोल करोगे ?
पक्का हम चले जाते सो हमने सोचा चलो ऐंसो कोई ऑफर न आये कटिंग करा आंय । तो हम चुनावी ड्यूटी निपटा के सीधे जा पहुंचे सीधे दादा की दुकान पर यह तस्वीर में नजर आ रहे हैं अपने दुर्गा भैया हैं । मिलनसार व्यक्ति इस बार हमने है जाते ही कहा :- दुर्गा भैया आज तो चाय पिएंगे !
भैया ने बताया कि आसपास की सभी दुकानें बंद है तभी निशांत ने चाय मंगा ली इस बात का पता हमें ना था दुर्गा भैया ने हमारे ड्राइवर को भी कह दिया रिजॉर्ट चाय ले आओ साहब के लिए और तुम भी किया ना । फिर क्या था पहले निशांत की चाय फिर दुर्गा भैया की चाय इस बीच यूनुस भैया मशहूर सिंगर अनवर भाई के साथ इंटरव्यू ब्रॉडकास्ट कर रहे थे एक से एक गाने हमारे दौर के दुर्गा भैया और हम सुन रहे थे । मौसकी और लिरिक्स बकायदा हमारी तवज्जो थी ।
एक बात तो हम बताएं जबलपुरिया ठेठ जबलपुरिया होते हैं चाहते हैं तो दिल से चाहते हैं वरना ज्यादा फिजूल बाजी  देखी  तो फिर  मुंडा सरक जाता है  यह अलग बात है  कि दिल के  बड़े साफ होते हैं जबलपुरिया लोग ।
इसके कई  प्रमाण हैं ।
आप भी जानते हो हम भी जानते हैं अब प्रमाण देने की जरूरत मैं नहीं समझता ।  हाथ कंगन को आरसी का जबलपुरिया को परखने के लिए फारसी क्या जबलपुरीये बड्डा के नाम से जाने जाते हैं । काय और हव हमारी जुबान पर चस्पा है जब देखो जब हम इसे इस्तेमाल करते हैं काय बड्डा सही बोले ना ।
हां तो 32 साल पहले भी हम दुर्गा भैया से से ही बनवाते थे अपनी कटिंग तब अशोका में हुआ करते थे दुर्गा भैया होटल अशोका सबसे लग्जरियस होटल थी सेठ त्रिभुवनदास मालपानी इसके मालिक हुआ करते थे । जिनकी दान शीलता और लोक व्यवहार की आज भी सभी प्रशंसा करते हैं । हां तो चले हम मुद्दे पर आ जाते हैं दुर्गा भैया ने बताया कि आजकल के लड़के ढंग से बाल काटना नहीं जानते बालों की चाल को समझना पड़ता है और फिर चेहरे के साथ उस की सेटिंग कैसे की जानी है यह तय करना पड़ता है । भैया की बात में दम तो है भाई । बात करते करते दादा ने हमको कटक पान ऑफर किया । ऐसा नहीं कि हम नागपुरी मीठा पत्ता ही खाते हैं पर इच्छा न थी, सो हमने मना कर दिया जेब में रखा पान बाहर निकाला और डाल दिया मुंह में ।
2 दिन पहले फ्रेंच कट जाड़ी बनवाई थी दादा से ही लेकिन चेहरे पर सूट ना करने के कारण हमने कहा दादा दाढ़ी को तो निपटा दो ।
दादा तैयार थी तभी पता लगा कि दादा और बात करने के लिए इंटरेस्टेड है सो हमने पूछा :- दुर्गा भैया इलेक्शन की क्या खबर है ?
मुझे मालूम है कि दुर्गा भैया राजनीति की फालतू बातों पर जरा भी ध्यान और कान नहीं देते बस उन्होंने एक लाइन में उस बात को खत्म कर दिया बोले:- भैया अपने को तो फुर्सत ही नहीं मिलती किधर उधर की बात सुने तभी यूनुस भाई ने अनवर को धन्यवाद देकर कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी ।
यूनुस खान बेहतरीन एंकर है एक जाना माना नाम है उनका ठेठ जबलपुरिया हैं ।
गाने तो बेहतरीन सुनो आते हैं आवाज तो देखो रेशमी सी प्यारी सी रुक जाने को मजबूर कर देती है फिर गीतों का चुनाव करने का यूनुस भाई का अपना एक्सपीरियंस है हर व्यक्ति यही सोचता है कि वाह क्या बात है, आज तो मनपसंद गीत की झड़ी लग गई एक के बाद एक जीत चुनकर सुनवाने वाले आने वाले यूनुस  भाई के बारे में हमने जब दुर्गा भैया को बचाया कि भैया यह तो जबलपुरिया हैं बहुत खुश हुए थे . दुर्गा भैया ने हमें रीछ से इंसान बना दिया और हम निकल पड़े अपने घर की तरफ । जबलपुर की खासियत यही है दिल मिला तो फिर क्या कहने नहीं मिला तो फिर कुछ कहने की जरूरत ही नहीं कभी भी आप दो नंबर गेट पर जाएं तो वहां दुर्गा भैया की मौजूदगी आपको मिल जाएगी एक बेहतरीन पर्सनालिटी दुर्गा प्रसाद सिंह जो बालों की चाल भी समझते हैं बालों के ढाल को भी समझते हैं ! और हम पचास से साठ साल की उम्र वालों की चॉइस को भी समझते हैं । आज ही पत्रकार भाई पंकज पटेरिया जी ने भी बताया कि वह 32 सालों से भाई से ही कटिंग बनवाते हैं । दुनिया कितनी भी बदल जाए जबलपुर बदलाव जल्द स्वीकार नहीं करता और करना भी नहीं चाहिए जबलपुर में जब तक हम लोग हैं तब तक बदलाव नहीं हो तो बेहतर है । बिंदास से हमारा जबलपुर हमारे लिए खास है हमारा जबलपुर

कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...