10.10.18

पीठासीन अधिकारी का दर्द


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बहुत दिनों पहले चुनाव की ड्यूटी में जब मैं एक गांव में पहुंचा तो वहां पीठासीन अधिकारी के रूप में तैनात व्यक्ति मुझे बहुत तनाव में दिखे ।
मेरे पहुंचते ही वे चुनाव आयोग का सारा गुस्सा मुझ पर उतारने लगे बतौर सेक्टर इंचार्ज की हैसियत से तो मैं उनके इस व्यवहार को कठोरता के साथ सही ठिकाने पर ले आता लेकिन मैंने सोचा कि जरा इन्हें सबक सिखाया जाए ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे . केवल प्रायोगिक तौर पर मैं उनसे बड़े संजीदा होकर बात करने लगा उनसे पूछा कि भाई साहब आप किस ओहदे पर हैं उन्होंने बताया कि वे केंद्र सरकार के "..." विभाग में सीनियर अकाउंट्स ऑफीसर हैं .
अपनी तारीफों के पुल बांधते हुए
प्रिसाइडिंग ऑफिसर श्री अमुक जी ने बताया - " कि उनका वेतनमान बहुत बड़ा है ये कलेक्टर कुछ समझते नहीं कहीं भी ड्यूटी लगा देते हैं ।
पीठासीन अधिकारी बताया कि उनके वेतनमान के अनुसार उन्हें काम देना चाहिए'
निर्वाचन आयोग ने उन्हें पीठासीन अधिकारी बना दिया क्योंकि बहुत हल्का काम समझा गया उनके द्वारा .
तभी उनके मुंह से यह बात भी निकली साहब कोटवार नहीं आया उन ने यह भी कहा की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के सुबह से दर्शन नहीं हुए तमाम शिकवे शिकायत के साथ साथ उन्होंने गांव में मच्छर गंदगी जाने किन किन बातों का उलाहना मेरे सिर पर ऐसे उड़ेला जैसे कि कचरे वाली गाड़ी से कचरा किसी जगह पर डंप किया जा रहा हो .
मेरी कोशिश थी कि यह आज सारी भड़ास निकाल दें ताकि अगले दिन तरोताजा होकर काम करें क्योंकि तनाव में काम बहुत मुश्किल होता है .
अंततः उन्होंने मुझसे मेरा वेतनमान और पदनाम भी पूछ लिया यह भी कहा कि हमें छोटे अधिकारियों के अधीनस्थ ड्यूटी लगाई जाती है .
मेरे चेहरे पर बहुत जबरदस्त मुस्कान तैर गई तभी कोटवार और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पास में आए उन्होंने बताया कि साहब हमने जो जो व्यवस्था निर्देशित की थी वह सब पूर्ण कर ली है .
और उनसे हम ने यह जानकारी हासिल भी की कि भाई हमारे मेहमान हैं भारत सरकार से आए हैं ।
   अधिकारी हैं इनकी सेवा सुश्रुषा में कोई कमी तो नहीं हुई तो सारी पोलिंग पार्टी के बाक़ी  लोगों ने उन दोनों की मुक्त कंठ से सराहना करने लगे और उन्होंने कहा सर इन्होंने बहुत स्वादिष्ट चाय पिलाई नाश्ता भी कराया साथ ही साथ दोपहर का लंच भी बहुत अच्छे से खिलाया #पीठासीन_अधिकारी मुंह में ज़िप लफाकर  खामोश बैठे थे उन्होंने कुछ नहीं कहा !
     ऐसे नजर आ रहे थे जैसे अभी चावल के माड़ में उनको डूबा के निकाला हो .
बातों बातों में हमने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से पूछ लिया बहन जी आप को मानदेय मिल गया है ?
कार्यकर्ता ने बताया साहब सुना तो है कि मानदेय निकल आया है पर हम को बैंक जाने का टाइम नहीं मिल पाया हमने कहा तुम्हें कितना मानदेय मिलता है आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि उसे ₹750 मिलते हैं
इसी तरह कोटवार ने भी अपनी आमदनी का जिक्र किया .
फिर हमने दोनों से पूछा कि क्या आप भोजन की व्यवस्था ग्राम पंचायत ने की है आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने तपाक से जवाब दिया सर ग्राम पंचायत से भोजन की व्यवस्था नहीं हुई है हमें स्वयं करना पड़ा और हमें खुशी है कि हम अपने मेहमानों को भोजन करा रहे हैं हमें बहुत प्रसन्नता है कि ऐसे देवता जैसे मेहमान हमारे गांव में पधारे .
मैंने पीठासीन अधिकारी को सरोपा निहारा जिनकी  निगाह अबतक झुक चुकीं थीं ।

       मुझे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के बारे में जानकारी थी वह गांव की ही महिला थी और उसके दो बच्चे थे जो बड़ी क्लासों में पढ़ रहे थे लेकिन उसके पति ना थे
15 साल पहले हुए इन चुनावों की दौर में ₹750 पाने वाली महिला ने भोजन की व्यवस्था स्वयं अपनी आय से की थी कोटवार ने भी चाय की व्यवस्था अपनी ओर से की थी और साहब लोग हैं इसलिए वह पारले जी के बिस्किट भी साथ में लेकर आया था ।
मुझे लगा कि कम-से-कम तीन बार चाय के तथा 6 बार भोजन और दो बार नाश्ते पर कुल खर्च आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं पटवारी पर ₹300 से ₹350 तक अवश्य हुआ होगा कार्यकर्ताओं और पटवारी को कितना मानदेय भुगतान होना है इसकी मुझे जानकारी ना थी ।
           तभी मैंने उन दोनों को धन्यवाद दिया और अपनी जेब से रुपए 350 निकाल कर दिए और यह कहा कि :-"साहब लोगों का विशेष ध्यान रखना"
    यह सुनते ही सारी पोलिंग पार्टी शर्मिंदा हो गई और उन्होंने बलपूर्वक पैसे मुझे वापस किए हो क्षमा याचना करते हुए कार्यकर्ता को ₹500 अपनी ओर से दिए सामूहिक तौर पर उन्होंने चंदा करके कार्यकर्ता और कोटवार जी को राशि उपलब्ध कराई ।
जिसे लेने से दोनों ही हिच किचा रहे थे ।
पीठासीन अधिकारी अचानक इतनी नरम हुए कि उन्होंने मुझसे कहा - सर अब मैं यह कभी नहीं कहूंगा कि मैं बहुत अधिक वेतन पाता हूं । कम वेतन पाकर मन में इतनी पवित्र भावना रखने वाली यह गांव के लोग कितने महान हैं जिन्होंने हमें यह एहसास नहीं होने दिया की पंचायत द्वारा भोजन की व्यवस्था नहीं की गई है सुदूर पर्वत के आंगन में बसे इस गांव में काम करने वाली यह दो सरकारी कर्मचारी वाकई मुझसे अधिक चीज कमा रहे हैं और वह है आप जैसे अधिकारी का सम्मान ।
यह घटना मुझे इसलिए भी याद है क्योंकि इस प्रयोग से मैं यह जान पाया था कि दुनिया में प्रेम से सिखाया गया सबक कठोरतम ह्रदय को भी परिवर्तित कर देता है । अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इसने से बड़ा आयुध कोई नहीं जिससे किसी भी हिंसा घृणा कुंठा और गैर बराबरी के भाव का अंत आसान से किया जा सकता है ।
मुझे लगता है कि वह लेखाधिकारी साहब अब तो रिटायर हो गए होंगे क्योंकि जब भी मिले थे कभी ऐसा लग रहा था कि वह लगभग 50 वर्ष के तो है ही और ऐसे सीनियर व्यक्ति के साथ मैं किसी भी तरह की ज्यादती ना करते उनको एक गहरी शिक्षा देना चाहता था ।
चुनाव नजदीक है सरकारी कर्मचारी ड्यूटी लगने पर उत्साहित हैं पर कुछ कर्मचारी भयातुर भी है ।
जो लोग अपनी ड्यूटी कटाने के प्रयास में लगे रहते हैं अथवा वे प्रजातंत्र के इस महायज्ञ को हेय की दृष्टि से देखते हैं कौन है कोटवार जी और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता दीदी से शिक्षा लेनी चाहिए ।
*गिरीश बिल्लोरे*

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