21.9.17

सरित-प्रवाह और समय प्रवाह

सुधि पाठक
            सुप्रभात एवं शारदेय नवरात्री के पूजा-पर्व पर पर आपकी आध्यात्मिक उन्नति की कामना के आह्वान के साथ अपनी बात रखना चाहता हूँ .  
           नदियों के किनारे विकसित सभ्यता का अर्थ समृद्ध जीवन ही है . आज प्रात: काल से मैं अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करने जा रहा हूँ. ज़िंदगी अपनी 54 वर्ष के बाद बदलेगी मुझे यकीन नहीं हो रहा . हमारा नज़रिया होता है कि नदी अपने साथ समय की तरह बहाकर बहुत कुछ ले जाती है परन्तु हम बहुत देर समझ सोच पाते हैं कि नदियाँ अपने साथ बहुत कुछ लेकर भी आतीं हैं . और अपने किनारों को बांटतीं हुईं  निकल भी जातीं हैं . ठीक वैसे तरह  सरिता के प्रवाह सा समय भी बहुत कुछ लेकर आता और लेकर  जाता है. इस लेकर आने और लेकर जाने के व्यवसाय में नहीं से अधिक लाभ स्थानीय रूप से होता है.
     हम सभी समय-सरिता के इस पार या उस पार रहा करतें हैं . जहां हम आत्म चिंतन के ज़रिये इस प्रवाह के साथ कुछ न कुछ  चाहते न चाहते बह जाने देतें हैं. कुछ नया जो बहकर आता है उसे आत्मसात कर लेतें हैं. 29 नवम्बर 1962 को मेरा जन्म हुआ था. जीवन का हिसाब किताब जन्म से ही रखना चाहिए  सो रख रहा हूँ.
     54 वर्ष की आयु में आकर पता चला कि अभी तक जो हासिल हुआ या कहूं हासिल किया उसे शून्य ही मानता हूँ. क्योंकि हमेशा सोचता रहा नदी की तरह समय ने भी मुझमें से बहुत कुछ बहा लिया है. सोच ठीक थी पर जो समय-सरिता  में बहा उसका शोक मनाते मनाते जो समय-सरिता ने दिया उसे संजो न पा सका . करते कराते उम्र की आधी सदी बीत गई.
    जो कुछ भी बहा के लेगी समय सरिता वो मेरा न था और अब जो पास में है या जो प्रवाह से मुझे मिला तथा मेरे पास सुरक्षित है वो मेरा है इस बात को समझने के लिए 54 साल लगना एक अलहदा बात है. इस पर कभी और बात होगी. आज शारदेय नवरात्री के पूजा पर्व शुरू हो चुकें हैं . इन 9 दिनों में कुछ चमत्कार अवश्य होगा. क्योंकि अब मेरा नज़रिया बदल गया है.

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