रामायण के राम जनजन के राम

एक था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ाविश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा राम को हम भारतीय जो आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी 
रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य 

रावण के संदर्भ में हिंदी विकीपीडिया में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श्लोक सहित ) विवरण दर्ज़ है- 

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। 
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूपसौन्दर्यधैर्यकान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।" 
रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्यारजस्वलाअकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
चूंकि इतनी अधिक विशेषताएं थीं तो बेशक कोई और वज़ह रही होगी जो राम ने रावण को मारा मेरी व्यक्तिगत सोच है कि रावण विश्व में एक छत्र राज्य की स्थापना एवम "रक्ष-संस्कृति" के विस्तार के लिये बज़िद था. जबकि त्रेता-युग का रामायण-काल के अधिकतर साम्राज्य सात्विकता एवम सरलतम आध्यात्मिक सामाजिक समरसता युक्त राज्यों की स्थापना चाहते थे. सामाजिक व्यवस्था को बनाने का अधिकार उनका पालन करने कराने का अधिकार जनता को ही था. सम्राठ तब भी जनता के अधीन ही थे केवल "देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षाशिक्षा केंद्रों को सहयोगअंतर्राष्ट्रीय-संबंधों का निर्वाह, " जैसे दायित्व राज्य के थे. जबकि रावण की रक्षकुल संस्कृति में अपेक्षा कृत अधिक उन्नमुक्तता एवम सत्ता के पास सामाजिक नियंत्रण नियम बनाने एवम उसको पालन कराने के अधिकार थे. जो वैदिक व्यवस्था के विपरीत बात थी. वेदों के व्याख्याकार के रूप में महर्षिगण राज्य और समाज सभी के नियमों को रेग्यूलेट करते थे. इतना ही नहीं वे शिक्षा स्वास्थ्य के अनुसंधानों के अधिष्ठाता भी थे यानी विशेषज्ञ को उनका अधिकार था .
इसके विपरीत रावण को रामायण कालीन अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्था का सबसे ताक़तवर एवम तानाशाह कहा जाए तो ग़लत नहीं है. रावण का सामरिक तनाव उस काल की वैश्विक-सामाजिक,एवम आर्थिक व्यवस्था को बेहद हानि पहुंचा रही थी.कल्याणकारी-गणतंत्रीय राज्यों को रावण के सामरिक सैन्य-बल के कारण रावण राज्य की अधीन होने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग शेष नहीं होता. लगभग सारे विश्व में उसकी सत्ता थी.यानि रावण के किसी अन्य किसी प्रशासन को कोई स्थान न था.वर्तमान भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां कि रावण को स्वीकारा नहीं गया. जिसका सत्ता केंद्र उत्तर-भारत में था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट कर देना चाहता था ताक़ि भारतगणराज्य जो अयोध्या के अधीन है वह अधीनता स्वीकर ले . इससे उसके सामरिक-सामर्थ्य में अचानक वृद्धि अवश्यम्भावी थी. कुबेर उसके नियंत्रण में थी यानी विश्व की अर्थव्यवस्था पर उसका पूरा पूरा नियंत्रण था. यद्यपिरामायण कालीन भौगोलिक स्थिति का किसी को ज्ञान नहीं है जिससे एक मानचित्र तैयार करा के आलेख में लगाया जा सकता ताक़ि स्थिति अधिक-सुस्पष्ट हो जाती फ़िर भी आप यह जान लें कि यदि लंका श्री लंका ही है तो भी भारतीय-उपमहादीपीय क्षेत्र में भारत एक ऐसी सामरिक महत्व की भूमि थी है जहां से सम्पूर्ण विश्व पर रावण अपनी "विमानन-क्षमता" से दवाब बना सकता था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट क्यों करना चाहता था..? 
रावण के अधीन सब कुछ था केवल "विद्वानों" को छोड़कर जो उसके साम्राज्य की श्री-वृद्धि के लिये उसके (रावण के) नियंत्रण रहकर काम करें. जबकि भारत में ऐसा न था वे स्वतंत्र थे उनके अपने अपने आश्रम थे जहां "यज्ञ" अर्थात "अनुसंधान" (प्रयोग) करने की स्वतन्त्रता थी. तभी ऋषियों .के आश्रमों पर रावण की आतंकी गतिविधियां सदैव होती रहतीं थीं. यहां एक और तथ्य की ओर द्यान दिलाना चाहता हूं कि रावण के सैनिक द्वारा कभी भी किसी नगर अथवा गांवों में घुसपैठ नहीं कि किसी भी रामायण में इसका ज़िक्र नहीं है. तो फ़िर ऋषियों .के आश्रमों पर हमले..क्यों होते थे
उसके मूल में रावण की बौद्धिक-संपदाओं पर नियंत्रण की आकांक्षा मात्र थी. वो यह जानता था कि  यदि ऋषियों पर नियंत्रण पा लिया तो भारत की सत्ता पर नियंत्रण सहज ही संभव है. साथ ही उसकी सामरिक शक्ति के समतुल्य बनने के प्रयासों से रघुवंश को रोकना .
अर्थात कहीं न कहीं उसे "रक्षकुल" की आसन्न समाप्ति दिखाई दे रही थी. 
राम के गणराज्य में प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था को सर्वोच्च स्थान था. सामाजिक व्यवस्था स्वायत्त-अनुशाषित थी. अतएव बिना किसी राजकीय दबाव के देश का आम नागरिक सुखी था. 
रावण ने राम से युद्ध के लिये कभी पहल न की तो राम को खुद वन जाना पड़ा. रावण भी सीता पर आसक्त न था वो तो इस मुगालते में थी कि राम सीता के बहाने लंका आएं और वो उनको बंदी बना ले पर उसे राम की संगठनात्मक-कुशाग्रता का कदाचित ज्ञान न था 
वानर-सेना :-
राम ने वनवासियों के युवा नरों की सेना बनाई लक्ष्मण की सहायता से उनको योग्यतानुसार युद्ध कौशल सिखाया . 
सीता हरण के उपरांत रावण को लगा कि राम की सीता हरण के बाद बनाई गई वानर-सेना लंका के लिये (मेरी दृष्टि में यु +वा+ नर+ योद्धा ऐसे युवाओं की सेना जो वन में निवासरत थे राम ने उनको लक्ष्मण की सहायता से युद्ध कौशल सिखाया ) कोई खतरा नहीं है बस यही एक भ्रम रावण के अंत का कारण था . 
राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर .
क्या रावण विस्तार वादी था ...?
          जी हाँ , आप सच की तरफ जा रहे हैं अगर इस प्रश्न का उत्तर हाँ में देंगें . रावण के पराक्रम और ज्ञान के चलते उसमें विस्तारवादी होने की उत्कंठा कूट कूट के भरी थी. विस्तार का अर्थ ही विश्व को नियंत्रित कर रक्ष-संस्कृति का विस्तार करना. रक्ष-संस्कृति का अर्थ है- खाओ-पीओ-मौज-करोयानी उपभोगता वादी संस्कृति जहां सब कुछ सीमा हीन होता है. आत्मनियंत्रण शब्द रक्षसंस्कृति की शब्दावली का हिस्सा नहीं है. यह शब्द ईश्वरवादियों के लिए आक्सीजन है .. ईश्वर वादी कभी भी पंथ-निर्मित नियमों को त्यागना नहीं कहता तो कोई भी रक्ष उसे स्वीकारना नहीं चाहता. बस विवाद का विषय यही है.
तो क्या रावण वाम मार्गी था ? ..
न रावण एकेश्वर वादी था. उसे बहुल देववाद से अरुचि थी . उसके राज्य की प्रजा भी केवल शिवास्क्त थी. जिसे रक्षाकुल के संरक्षक के रूप में रावण सा राजा मिला और विलासिता के लिए सम्पूर्ण संसाधन तो कौन ऐसे राजा के विरुद्ध हो सकता है.
सवाल तो यह भी उठ सकता है कि राम ने रावण को इस कारण मारा होगा कि वे विस्तार के साथ साथ धनार्जन चाहते थे .
मित्रो , रामराज्य का विस्तार सदाचार के विस्तार के साथ अतिवादी शक्ति स्रोत के अंत से आशयित था. क्योंकि राम के पास मध्य-एशिया, चीन, रूस, इंडोनेशिया थाईलैंड आदि क्षेत्रों का राजपाठ विरासत मिला था पर छोटी सी लंका पर राम ने आक्रमण क्यों किया ? सिर्फ इस लिए किया क्योंकि वे विधर्मी नेतृत्व का अंत चाहते थे.



           

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