हममें राम नहीं है.. क्यों ?


हममें राम नहीं है.. क्यों ?
इस मुद्दे पर फिर  कभी विस्तार से बात होगी ,,,,,, अभी फिलहाल   मान लिया  राम का जन्म  ही नहीं हुआ था. अयोध्या में तो बिलकुल नहीं हुआ. पर एक बात तो तय है कि...  राम का जन्म नित होता है... हर जगह जहां आस्था है .... विश्वास है... उस अयोध्या में जहां मर्यादा का वातावरण हो ........ क्या हमने ऐसा वातावरण बना लिया है कि राम जन्म लें ..? 
शायद नहीं .. ! 
यानी हममें राम नहीं है.. पर  क्यों ? 
अगर राम हैं तो वो बालराम  हमारे मन मंदिर में तो क्या वो राम वहीं ठुमुक ठुमुक चल रहे हैं क्या किशोर युवा और फिर राजा राम के रूप में 
 क्या  रामराज्य लाएंगें..? 
जहां मर्यादित सांस्कृतिक वैभव होगा. आम नागरिक बिना ताला लगाए शान्ति से रह सकेंगें ..? 
 क्या हो  कि राम हममें अन्तर्निहित हों. राम हममें तब वास करेंगे जब हममें राम के अनुकूल वातावरण निर्माण की क्षमता आ जावेगी.
वास्तव में राम क्या है उस तत्व को समझने और समझाने की ज़रूरत है. 
आज हमारे  के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हैं जो  कि  राम का लेशमात्र आभास भी कर पाए. हम आत्ममुग्ध हैं. त्रेता में ये न था जब राम का विशाल साम्राज्य भूखंड पर ही नहीं आत्माओं पर भी था. आज राम पर भी  संदेह है कि राम एक माईथ है . यानी कवियों की कल्पना में बसा एक चरित्र ...... लोग इसी तर्क के सहारे राम के जन्मस्थल को भी काल्पनिक स्थान मानतें हैं.
ये सब आयातित विचार धारा जनित एक सांस्कृतिक हमला है जो कई बरसों से जारी है. 
एक  आयातित विचारधारा ने न केवल राम के होने पर सवाल खड़े किये हैं वरन समूची आस्थाओं को सिरे से खारिज किया और बौद्धिक विलासी लोगों को ये पक्ष पसंद आया
        राम कृष्ण ताओ, आदि आदि सबको नकारने लगे.. ऐसे लोगों की संख्या आज भी दिन दूनी बढ़ रही है. राम की आराधना मात्र से साम्प्रदायिक हो जाने की पर्चियां चस्पा कर दी जातीं हैं हम पर हम राम विहीन हैं . क्योंकि हम मर्यादित नहीं हमने आयातित विचारों को स्वीकारा क्योंकि वो अधिक सुविधा जनक पाए गए . राम के जीवन दर्शन में क्या मिलता न विलासिता न भौतिकवादी सम्पन्नता . क्योंकि हमें जो भी करना है राम की तरह मर्यादित होकर यानी सदाचारी होकर तो हम विलासिता भरे जीवन से मोहताज़ होना होगा .
आयातित विचारधारा का उद्देश्य भारतीय सनातन की समाप्ति के खिलाफ वातावरण का निर्माण करना है ताकि हम छद्मयुद्ध का हिस्सा बने रहें. 
हे राम हममें राम भी नहीं है तो हम विजयी होंगे या विजित ये राम जान सकते हैं हम तो अब ये जान गए हैं कि हममें राम नहीं और जिनमें राम नहीं उनमें कुछ भी नहीं होगा.
तत्वबोध मोरे मन नाहीं 
तर्क युक्त बुधि समझ न पाहीं ।
किसी बिधि राम अइहैं मन द्वारा
कस प्रवाहमय चिन्तनधारा ।
कलजुग देह दूषित मन कुण्ठा 
प्रभू पर भी हम करें असंका ।।

टिप्पणियाँ

Harshvardhan Srivastav ने कहा…
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बाबू जगजीवन राम और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
Anita ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति...राम के प्रति आस्था बनी रहे और भारत में एक बार फिर राम राज्य की स्थापना हो..शुभकामनाएं !

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