2.12.16

*दो कविताएँ*.


  *तुम्हारी देह-भस्म जो काबिल नहीं होती*
अंतस में खौलता लावा
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ….!!
तब जब तुम्हारी बातों की सुई
मेरे भाव मनकों के छेदती
तब रिसने लगती है अंतस पीर
भीतर की आग पीढ़ा का ईंधन पाकर
युवा हो जाता है यकायक लावाअचानक ज़ेहन में या सच में सामने आते हो
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ….!!
मुस्कुराकर ……. अक्सर ………
मुझे ग़मगीन न देख
तुम धधकते हो अंतस से
पर तुम्हें नहीं आता
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपकाना ….!!
तुममें मुझसे बस यही अलहदा है .
तुम आक्रामक होते हो
मैं मूर्खों की तरह टकटकी लगा
अपलक तुमको निहारता हूँ
और तुम तुम हो वही करते हो जो मैं चाहता हूँ
धधक- धधक कर खुद राख हो जाते हो
फूंक कर मैं …….. फिर उड़ा देता हूँ ………
अपने दिलो-दिमाग से तुम्हारी देह-भस्म
जो काबिल नहीं होती भस्म आरती के

*बुद्ध कब मुस्कुराओगे*
तथागत सुना है जब मुस्कुराते हो
तब कुछ न कुछ बदलता है 
*
सीरिया की बाना ने* 
बम न गिराने की अपील की है 
अब फिर मुस्कुराओ 
बताओ 
बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं 
गाना गाना चाहते हैं *इशिता* की मानिंद 
लिखना चाहतें हैं *बीनश* की तरह क्रिएटिव
अब बम न गिराओ 
हमारी किलकारियां उनके बम 
से ज़्यादा असरदार है 
वो जो धर्म हैं 
वो जो पंथ हैं 
वो जो सरकार हैं 
जी हाँ किलकारियां 
उन सबकी आवाज़ से ज़्यादा असरदार हैं 
बुद्ध अब तो मुस्कुराओ
एक शान्तिगीत गाओ 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल”* *

कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...