10.9.16

मोबाइल में व्यस्त हो गया : सौरभ पारे

                     
रेखा चित्र : शुभमराज  अहिरवार बालश्री एवार्डी
( इंजीनियर सौरभ पारे मेरे भांजे हैं ज्ञानगंगा कालेज के लेक्चरर.. सौरभ अपने पापा की तरह ही संगीत में रमे रहते हैं उनका छोटा   सा ट्रेवलाग पेश है )    
 शाम के साढ़े छः बज रहे थे, दिन भर उमस भरी धूप के बाद जो बादल छाए थे, वो अब ढलते सूरज की रौशनी में लाल लाल हो गए थे। 
यों तो सफर सिर्फ पांच घंटे का था, पर अभी थोड़ा लंबा लग रहा था। साथ वाली सीट पर एक सज्जन बैठे हुए थे और सामने उनकी धर्मपत्नी।
लेखक :- इंजीनियर सौरभ पारे 
 शुरुआत में तो हम सब शांत ही थे , मैंने तो सोच भी लिया था कि कु छ देर में मोबाइल पे मूवी लगाऊंगा और समय काट लूंगा, पर मेरे एक सवाल ने मेरे इस प्लान को सार्थक नहीं होने दिया।
"कहाँ तक जायेंगे आप?" , इस एक सवाल ने बातों की सिलाई खोल दी ।  कमीज से बाहर निकले हुए धागे को खींच दे तो सिलाई निकलने लगती है और धीरे धीरे उधड़ जाती है, ठीक वैसे ही मेरे इस सवाल ने उन सज्जन की झिझक मिटा दी और बातो का सिलसिला चल निकला रेलगाडी की रफ़्तार को चुनौती देता हुआ।
 चर्चा में पता चला कि वो सज्जन , जिनका नाम मै अभी तक नहीं जानता, कलकत्ता से वापस आ रहे है, अपने किसी रिश्तेदार की बरसी में शरीक हो कर, वापस घर की ओर कूच कर रहे है।
 खिड़की से बाहर देखा तो अब पेड़ धुंदले दिखाई पड़ रहे है । रात अपना पूरा जोर लगा रही है दिन को दबाने में, और इस पहर वो अपनी लड़ाई जीतते हुए नज़र आ रही है। अभी मैं खिड़की से आती हुई तेज़ हवा का आनंद ले ही रहा था कि एक आवाज़ ने मेरी तन्द्रा तोड़ दी। "इटारसी कितने बजे तक पहुचेगी गाडी?", उन सज्जन की धर्मपत्नी ने पूछा। उनके सवाल का जवाब देने के लिए हम अपने मोबाइल में इंटरनेट पर देखने लगे और जवाब ढूंढने लगे, पर नेटवर्क ने साथ नहीं दिया और हमने उनसे कहा "नेटवर्क नहीं है, जैसे ही आता है मैं आपको बताता हूं।" उन्होंने हामी भरी और हम सब कुछ देर शांत बैठ गए।
करेली में खाये हुए आलू बंडे, जो कि हम सभी ने खाये थे, अभी तक जीभ जला रहे थे। तभी उन्होंने हमें इलायची लेने का आग्रह किया और जलती हुई जीभ के कारण हमने पहली बार में ही स्वीकार कर लिया।
अब सभी बैठे बैठे थक गए है, और रेल का डब्बा भी लगभग खाली ही हो गया है। सब अपने हाथ पैर सीधे करने के लिए रुक रुक कर डब्बे का एक आध चक्कर लगा रहे है।
खिड़की से बहार देखने पर अब घरों की लाइट दिखाई देने लगी है, शायद इटारसी आने को ही है। हम सबकी चर्चा का यही विराम देने का समय भी है। अनजानी चर्चा में मन के न जाने ही कितने ही मलाल काम हो गए, शायद सच ही कहा है कि दुःख दर्द बाटने से कम होता है और ख़ुशी बाटने से बढ़ती है।
 इटारसीे पर पहले हम सब ने चाय पी और फिर वो दोनों अपने घर चल दिए और मै वापस अपनी सीट पर आ कर
मोबाइल में व्यस्त हो गया    


कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

Brain & Universe

Brain and Universe on YouTube Namaskar Jai Hind Jai Bharat, Today I am present with a podcast.    The universe is the most relia...