31.8.16

कितना कठिन है रोबो बच्चों का प्रशिक्षण

साभार :- न्यूज़-ट्रैक 
अक्सर  दुखी माता पिता को लेकर चिंतित हो जाता हूँ । चिंता का विषय बच्चे नहीं माँ बाप होते हैं । जो बच्चों के लिए खुद नैसर्किकता से बाहर वाले  काम करते हैं कि बच्चे का यंत्र बन जाना अवश्यंभावी है  जी हां बच्चे  एक मशीन यानी रोबोट बनकर रह गए हैं ।
         एक दिन अपने 10 साल के बच्चे को लेकर एक माता आईँ जिनका कहना था उनके बेटे को बेहतरीन सिंगर बना दूं ।  मोहतरमा की नज़र में बच्चा सर्वगुण संपन्न था । जाने कितनी खूबियाँ पट पट गिना गईं   ।
     मैंने पूछा - बच्चे पर आप कुछ अधिक ध्यान देतीं है
    वे बोलीं - साहब अगर हम इन पर ध्यान न दें तो दुनियां में पिछड़ जाएंगे ।
    कुल मिला के माँ बच्चे में आइंस्टाइन से लेकर सर्वोच्च व्यक्तित्वों तक  सब कुछ का मिश्रण घोल के डालना चाहतीं थीं । विनोद वश हमने पूछा - आप अपने बेटे को कैसा गायक बनाना चाहतीं हैं ?
उत्तर था  एकदम किशोर कुमार जैसा !
ये अलहदा बात है कि ये युग  हनी सिंग का युग  है ।
     उस बच्चे की दिनचर्या देखें तो आप हम  से अधिक बड़ा हो गया है वो सुबह 5 बजे उठता है । 7 बजे स्कूल जाता है 2 बजे लौटता है स्कूल से लंच लेता है । फिर 2:30 घर से ट्यूशन और अभी उसके पास 3 :30 से 5 बजे तक का समय है । *जिसमें उसे किशोर कुमार बनना है*। 6 बजे से उसे फिर होमवर्क करना है । 8 बजे उसे डिनर लेना है । 9 बजे सोएगा वो क्योंकि उसे  5 बजे जागना है । स्कूल उसे पढ़ाएगा,  कोचिंग वाला व्यापारी उसे आइंस्टाइन बनाएगा और अब मैं हाँ भई मैं बालभवन में उसे शिप्रा की मदद से किशोर कुमार बनाऊंगा । सोच रहा था कि ये बच्चा नहीं रोबो है । बिना कुछ विचार किये मैंने कहा मैडम - हम बालभवन  में बच्चों को रजिष्टर्ड करतें हैं रोबो को नहीं ।और फिर चपरासी से कहा   - अरे दादा फ़ार्म मत लाना ।
     बच्चे की माँ के सपने  एकदम अर्रा के गिरी दीवार से ढह गए । अवाक मुझे देख रहीं थीं
फिर मैंने कहा - आप बेटे का विकास रोबोट की तरह करना चाह रहीं हैं उसको लेकर आप बेहद संवेदित हैं  बहुत हद तक आपका बेटा  रोबोट बन भी चुका होगा । रोबोट में भावनाएं कैसे भरेगा बालभवन संगीत बिना भावना के सफल नहीं आपने किसी रोबो को गाते सूना है क्या ?
   अपने बच्चों को रोबोट मत बनाइये वरना उसका बचपन गुम जाएगा ?
  बच्चे का बचपन छीन कर आप क्या करना चाहतीं हैं । अगर आप बच्चे का भला करना चाहतीं हैं तो कल अपने बच्चे और पति के साथ आएं ।
अगले पति सहित मैडम आईं बच्चा भी साथ था मोटे चश्मे  के पीछे झाँकतीं आँखें मासूम पर  थका हुआ डरा हुआ  बचपन मेरे सामने था । मैंने माता पिता को पीछे वाली चेयर्स पर बैठाया बच्चे को अपने सामने बिठा कर बातचीत शुरू की । जवाब देने की कोशिश माता तर् पिता में से कोई एक कर रहा था । जिनको चुप रहने का निवेदन किया । बातों बातों में ज्ञात हुआ क़ि बच्चा चित्रकला सीखना चाहता है । उसने बताया कि वो दीवार और कागज़ पर लकीरों से डॉग हॉर्स ज़ेब्रा डाल आदि बना लेता है । पर सब दीवार पे बनाने के लिए डांटते हैं ।
  बच्चे के पिता से पूछा - इतने बेकार स्कूल में भर्ती क्यों कराया कि ट्यूशन की ज़रुरत पड़े ?
अवाक मुझे ताक रहे थे । मैंने फ़ार्म बच्चे के हाथ में दिया और कहा कल दादाजी से भरवा के उनके साथ आना । पापा मम्मी को अब परेशान मत करना बेटे ।
देखिये कल दादा और पोते आते है या फिर कोई नहीं ? जो भी हो साफ़ साफ़ कह कर एक बचपन बचाने की कोशिश की है अंजाम जो भी होगा कल के आगोश में है ।
शुभ रात्रि
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

30.8.16

"मुझे कन्यादान शब्द से आपत्ति है


जब ये ट्विट किया कि  "मुझे कन्यादान शब्द से आपत्ति है..निर्जीव एवम उपयोग में आने वाली वस्तु नहीं है बेटियां ..!" और यही फिर  इसे वाट्स एप  पर डाला  तो लोग बचाव की मुद्रा में आ एन मेरे सामने आ खड़े हुए... बुद्धिवान लोग  मुझे  अज्ञानी संस्कृत और  संस्कृति का ज्ञान न होने वाले व्यक्ति का आरोप जड़ने  लगे . कुछेक ने तो संस्कार विधि नामक पीडीऍफ़ भेज दी . क्या बताऊँ सोशल-मीडिया  के विद्वानों को कि भाई मेरा आशय साफ़ है ..... कि बेटी को वस्तु मत कहिये ... आपकी बेटी में एक आत्मा है जिसका और खुद आपका  सर्जक ईश्वर है... हमको आपको सबको देह के साथ कुछ साँसें दान में मिलीं हैं..  ! बेटी आत्मजा है.. जिसका जन्म एक आत्मिक और आध्यात्मिक घटना है. पर परम पंडितों को लगा मैं धर्म विरुद्ध हूँ.. अरे भाई ... समझो .. बेटी दान देने की वस्तु नहीं बल्कि पुत्र के समतुल्य आपकी संतान है. उसे संघर्ष में मत डालो .... कोई खाप पंचायत ब्रांड सीमाओं में मत जकड़ो उसका दान नहीं सम्मान के साथ परिवार बसाओ उसका विवाह संस्कार संपन्न करवाओ.. परन्तु उसकी आत्म-ध्वनि को सुनो ....... समझो ....... उसे देवी कहते हो फिर भी दान करते हो...
मुझे मज़ा आने लगा ये सोच कर कि कोई क्यों सोच में बदलाव नहीं लाना चाहता क्योंकि अधिकाँश लोगों के अपने  मौलिक विचार नहीं हैं.. और वो  बदलाव के मूड में कतई नहीं होते ... और न कभी होंगे इतना ही नहीं कोई उनको विधर्मी होने देगा क्या..
एक मित्र का मत है कि- “ कन्यादान एक  महानदान है.”.. और यहाँ कन्या देने वाला बड़ा है.. लेने वाला याचक ?
मैंने मित्र से कहा ... भाई महान दान तो ईश्वर ने दिया है... हमको अर्थात हम खुद  भिक्षुक हैं याचक ...हैं..! एक भिखारी दानवीर कैसे होगा.. ?
मित्र : “.........” अवाक मुझे देखने लगा.. फिर अचानक कहा ... इससे हम दाता हो जाते हैं ...... ग्रहीता छोटा रह जाता है... बेटी को हम कहाँ नीचे देखने को मज़बूर करते हैं बताइये.. भला..?
मैंने कहा... भई... दामाद के पैर पूजते हो न ... ? उत्तर में हाँ सुनाई दिया .. क्यों .. यही विरोधाभास है विसंगति है.. अगर दाता हो तो दान में गर्व कैसा  ...? और दामाद जो पुत्र न होकर भी पुत्र तुल्य  है.. उसे अथवा उसके जनक को दान ग्रहीता साबित कर नीचा दिखाओगे.. ?
अब सब खामोश थे.. एक मित्र ने पूछा कि बेटी का विवाह न करोगे.. ? मैंने कहा.. अवश्य करूंगा पर कन्यादान नहीं ...... उसका उसके योग्य आत्मज  तुल्य वर से  परिणय संस्कार करूंगा ....!  तो फिर कन्यादान के उपवास से बचने इतना कुछ करोगे ..... ? मित्र का यह सवाल उसकी खीझ का प्रदर्शन था.. मैंने कहा - मित्र.... उपवास करके उस ईश्वर का आभार मानूंगा ... कि आपकी भेजी दो दो बेटियों को मैंने भ्रूण रूप में नहीं मारा मुझे विश्वास था वे मुझे सम्मान दिलाएंगी.. बेटों के समतुल्य मेरे सम्मान का कारण बनेंगी. हुआ भी यही और ईश्वर आप यही चाहते थे न ..... लो आज मैं तांबे की गंगाल में पानी की तरह पवित्र आत्मिक संबंधों में युवा पुत्रि और योग्यवर को एक दूसरे के वरन हेतु अंतर्पट खोल के आपके द्वारा  नियत व्यवस्था को निराहार रह कर बनाने का प्रयास कर रहा हूँ ... हे प्रभू आप नव युगल को आशीर्वाद देकर ........ सुखी वैभव संपन्न बनाएं....
एक अन्य मित्र बोल पड़े :- सनातनी शब्दों को तोड़ मरोड़ कर आप अर्थ बदलते हुए समझदार नहीं लगते... ?
“बेशक, सही कहा आपने मित्र सोचा है  सनातन अज़र अमर क्यों हैं..?”
हां........ इस लिए की वो ऋषि मुनियों की अथक साधना की वज़ह से ..!
मैं-“गलत,.. ऋषियों  मुनियों ने समाज को सामाजिक व्यवस्था दी थी... साथ ही वे बदलाव को देशकाल परिस्थिति के अनुसार स्वीकृति देते रहे . बदलाव को स्वीकारने से  किसी भी व्यवस्था को स्थाईत्व मिलता है ... वरना हम तालिबां होते.. ?”

28.8.16

दाना मांझी बनाम : सरकार मीडिया और सिस्टम

पलपल इंडिया पर प्रकाशित समाचार देखिये   दाना मांझी द्वारा पत्नी की लाश ढोते हुई तस्वीर ने पूरे देश में हलचल मचा कर रख दी. कालांहडी के भवानीपुरा के हॉस्पिटल में दाना माझी को अपनी पत्नी की लाश ढोने के लिए एंबुलेंस न मिलने पर सिस्टम की भी खूब आलोचना हुई.
तस्वीर के सामने आने के बाद जांच के आदेश दिए गए, विरोध-प्रदर्शन किए गए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए जाने का आश्वासन भी दिए गए. लेकिन अब खुद उस शख्स ने सामने आकर कहा है कि उसने किसी से मदद नहीं मांगी थी. उसने कहा कि उसकी हालत उस वक्त बहुत दयनीय थी और उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.
माझी ने बताया कि उसने खुद किसी से मदद नहीं मांगी थी. उसने हॉस्पिटल प्रशासन को भी सूचित नहीं किया था और अपनी पत्नी की लाश लेकर वह चुपचाप निकल पड़ा था. यहां तक कि उसने गांव तक पत्नी के शव को ले जाने के लिए भी किसी ग्रामीण से भी मदद नहीं मांगी थी. जब मुझे पता चला कि अब वह जीवित नहीं बची है तो मैं बिना किसी को कुछ बताए शव को ले जाने लगा. उस वक्त फीमेल वार्ड में कोई अटेंडेंट मौजूद नहीं था इसलिए मैंने खुद ही शव को घर तक कंधे पर ले जाने का फैसला किया.
पत्नी की मौत के बाद मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए. मैंने हॉस्पिटल से भी अपनी पत्नी के शव को ले जाने के लिए वाहन की मांग नहीं की थी.
ये बात सही है पर सही ये भी है कि –
1.      हस्पताल से शव ले जाते वक्त हस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था क्या थी ?
2.     टी बी की बीमारी ग्रस्त  अभाग देई की मृत्यू के बाद शव की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी न निबाहने के पीछे  मंशा क्या थी.
रवीश की मानें तो बेशक मीडिया ने अपनी जवाबदारी बखूबी निभाई वास्तव में उनने एक ओर उनने तंत्र को जगाने की कोशिशें भी की थीं इस बात की कई सूत्रों से पुष्टि भी हुई .
इस घटना पर  मीडियाकर्मीयों की भूमिका संदिग्ध नहीं पाई गई .  बेशक पुलित्ज्ज़र सम्मान प्राप्त  केविन कार्ट की तरह काम नहीं किया    
स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवस्थागत कमियों से इंकार किस आधार पर किया जावे. यह स्थिति समूचे भारत में है एक सी इसकी पुष्टि  हमारे मध्यप्रदेश की एक घटना से होती है  आपको याद होगा  25 मार्च 2016 को  दमोह कलेक्टर श्री श्रीनिवास शर्मा  की माता जी को भी  जबलपुर के लिए रिफर्ड अपनी माँ को जबलपुर के अस्पताल लाने के लिए इक्यूप्ड एम्बुलेंस न मिली  और उनका नि:धन हो गया था. 
आइये  सोचें कि स्वास्थ्य सेवाओं अथवा अन्य कल्याणकारी योजनाओं में मिशन-स्प्रिट क्यों नहीं ? ये सवाल आपके सामने  रख रहा हूँ...  

27.8.16

अमृता के डांस कांसेप्ट से वेडिंग और कार्पोरेट इवेंट्स में मस्ती का डबल डोज : सुमित वर्मा

देश की जानी मानी डांस परफार्मर और नृत्य श्री से सम्मानित अमृता जोशी ने अपने नए कांसेप्ट के जरिये वेडिंग संगीत और कार्पोरेट इवेंट्स में मस्ती की रंगीनियत बढ़ा दी है। उनके थीम बेस्ड डांस परफोर्मेंस से रिश्तों में नई मिठास और अपनापन दोगुना हो जाता है तो कार्पोरेट इवेंट्स भी उत्साह- उमंग के डबल डोज से निखर जाते हैं। अमृता की फुल ऑन एनर्जी और मस्त अदाएं किसी भी शाम को यादगार बना सकती हैं। ऐसे में यदि उनके द्वारा कोरियोग्राफ किये डांस हों तो मौज- मस्ती सिर चढ़ कर बोलती है। 
अमृता न केवल कथक की ट्रेंड डांसर हैंबल्कि उन्होंने फोक, राजिस्थानी, मराठी, गुजराती, पंजाबी और अन्य डांस स्टाइल में कई सालों का रियाज किया है।

शादी की संगीत संध्या बने यादगार बालीवुड फिल्मों और सुपर हिट डांस नम्बर्स पर अमृता अपने स्टाइल में कोरियोग्राफ किए गीतों से ऐसा समां बांध देती हैं कि शादी की संगीत संध्या यादगार हो जाती है। वो बताती हैं कि मारवाड़ी, गुजराती-सिन्धी, पंजाबी परिवारों के लिए अलग- अलग ढंग से गीत- संगीत वाले कार्यक्रम बनाये हैं। परिवार से मिलकर और बातकर वो अपने थीम को क्रिएटिवली तैयार करती हैं। इससे बहुत अच्छा रिस्पोंस मिलता है। लोग कई दिनों तक ऐसे संगीत - कार्पोरेट इवेंट्स को याद करते हैं।
                                                                    अमृता के साथ हर कोई दीवाना

देश- विदेश में कई शोज कर चुकी अमृता जोशी का डांस स्टाइल और कांसेप्ट ही ऐसा होता है कि हर छोटा - बड़ा उनके साथ थिरकने लगता है। कार्पोरेट जगत में टीम बिल्डिंग और मिशन स्पिरिट बढ़ाने के लिए अमृता ही याद की जाती हैं। लोग उनके साथ डांस करते हुए आपसी गिले- शिकवे भूल जाते हैं और मजबूती से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हो जाते हैं।

25.8.16

पाकिस्तान 69 बरस का एक नासमझ बच्चा राष्ट्र :01


1948 तक मुक्त बलोचस्तान के मसले पर लालकिले से भारत के प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी की अभिव्यक्ति से पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि आयातित विचारकों के ज़ेहन में खलबली देखी जा रही है. भारत का बलोच लोगों के हित में बोलना एक लुहारी हथौड़ा साबित हुआ है. प्रधानमंत्री जी का बयान दक्षेश ही नहीं विश्व के लिए एक खुला और बड़ा बयान साबित हुआ है. उनका यह बयान बांगला देश विभाजन की याद दिला रहा है जब इंदिरा जी ने पूरी दृढ़ता के साथ न केवल शाब्दिक सपोर्ट किया बल्कि सामरिक सपोर्ट भी दिया.
मोदी जी की अभिव्यक्ति एक प्रधानमंत्री के रूप में बड़ी और ज़वाबदारी भरी बात है. बलोच नागरिक इस अभिव्यक्ति पर बेहद अभिभूत हैं. अभिभूत तो हम भी हैं और होना ही चाहिए वज़ह साफ़ है कि खुद पाकिस्तान लाल शासन का अनुगामी  बन अपने बलात काबिज़ हिस्से के साथ जो कर रहा है उसे कम से कम भारत जैसे राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति जो मानवता का हिमायती हो बर्दाश्त नहीं करेगा . मेरे विचार से श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी के खिलाफ आयातित विचारधाराएं जो भी सोचें आम राय बलोच आवाम के साथ है.
यहाँ अपनी समझ से जो देख पा रहा हूँ कि आयातित विचारधाराएं कभी भी लाल-राज्य के खिलाफ बयान को स्वीकार्य नहीं करतीं .  बहरहाल साल 48 से  मौजूदा वक्त तक बलोच कौम के समर्थन में खुलकर न आना मानवाधिकार मूल्यों की रक्षा की कोशिशों की सबसे बड़ी कमजोरी का सबूत है .  वज़ह जो भी हो देश का वास्तविक हिस्सा पूरा काश्मीर है जिस पर पाक का हक न तो  था न ही हो सकेगा . तो फिर पाकिस्तान की काश्मीर पर तथाकथित भाई बंदी की वज़ह क्या है ...?
इस मसले की पड़ताल में आपको जो सूत्र लगेंगे उनका मकसद पाक की पञ्चशील पर पंच मारने वाली  लाल-सरकार से नज़दीकियाँ . चीन – पाक आर्थिक कोरिडोर और ग्वादर पोर्ट के ज़रिये पाकिस्तान को चीनी सामरिक सपोर्ट मिलता है. जहां तक विकास की बात है पाकिस्तानी सरकार   बलोचस्तान को छोड़ कर शेष सम्पूर्ण पाक में कर पा रहा है बलोचस्तान उसकी दुधारू बकरी है. इतना ही नहीं इस आलेख लिखने तक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 22 हज़ार अधिक लोगों को बड़ी बेहरमी से  मौत के घाट उतारा है. हज़ारों हज़ार युवा गायब कर दिए गए ..  बलोचों के  कत्लो-गारद की हिमायती पाकिस्तानी सरकार फौज से ज़्यादा आतंकवादियों के इशारों पर काम करती .
पाकिस्तान 69 बरस का  एक नासमझ  बच्चा राष्ट्र है . जिसे उसके नागरिकों से अधिक बाहरी विवाद पसंद है. कुंठा की बुनियाद पर बने देश पाकिस्तान धर्माधारित विचारधारा और कट्टरता की वज़ह से  रियाया के अनुकूल नहीं है . पाकिस्तान की वर्तमान दुर्दशा की जिम्मेदारी  विभाजन के लिए षडयंत्र करने वाले तत्वों खासकर नवाबों, पाक की  सेना  और सियासियों की दुरभि संधि  उस पर ततसमकालीन अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक नीतियां हैं. जबकि भारत ने कमियों / अभावों  के बावजूद  अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु एवं सकारात्मक रवैया रखा साथ ही भारतीय आवाम ने विकास को सर्वोच्च माना तभी हम दक्षेस की बड़ी ताकत हैं . अब तो भारत का जादू हर ओर छाया है. वज़ह सियासत, कूटनीति, और भारतीय स्वयं है. भारतीय युवा विश्व के लिए  महत्त्वहीन कतई नहीं है . 1985  के बाद जन्मी पौध ने तो विश्व से लोहा मनवा ही लिया है .
आयातित विचारधारा अपने अस्तित्व को बचाए रखने जो कर रही है उसके उदाहरण जेएनयू जैसी जगहों पर मिल जाएंगें . इसका कदापि अर्थ न लगाएं कि सामाजिक साम्य से असहमति है.. वरन हम  कुंठित साम्य को खारिज करते हुए “समरससाम्य” की ललक में हैं .
भारत की नीती कभी भी सीमाओं के विस्तार की न थी.. पर नवाबों के जेनेटिक असर की वज़ह से पाकिस्तान ने इरान और कदाचित क्राउन शह पर बलोचों की आज़ादी पर डाका डाला है. तो बलोच गुरिल्ले क्यों खामोश रहेंगे. इतना ही नही गिलगित तथा पाक द्वारा कब्जाए कश्मीर की जनता भी अविश्वास से भरी है.
भारत ने अपने कानूनों में आमूलचूल प्रावधान रखें हैं दमित जातियों  के लिए .. पर वे खुद सिया सुन्नी पंजाबी सिंधी, गैर पंजाबी आदि आदि फिरका परस्ती के लिए कोई कारगर प्रबंध न कर सके. जब बलोच को सपोर्ट की बात की तो सनाका सा खिंच गया पाक में       
बदलते हालातों पर पाक के प्रायोजित  वार्ताकार बोडो, असम , सिख , यहाँ तक की नक्सलवादियों तक के लिए रुदालियों की  भूमिका निबाह रहे हैं . जबकि पाक में छोटे से इलाज़ के लिए न चिकित्सकीय इंतजामात हैं न ही बेहतर एजुकेशन सिस्टम. आला हाकिमों और हुक्मरानों और आतंकियों की औलादें ब्रिटेन एवं अमेरिका में पढ़ लिख रहीं हैं. जबकि आम आवाम के पास न्यूनतम सुविधाएं भी न के बराबर है.      

(आगे भी जारी........ प्रतीक्षा कीजिये )        

23.8.16

जबलपुर में प्रस्तावित ब्लागर्स मीट 2016 हेतु प्रारम्भिक सर्वे


सम्माननीय चिट्ठाकार महोदया / महोदय 
                             सादर अभिवादन 
                 चिट्ठाकारिता पर माह अक्टूबर 16 में एक मीट प्रस्तावित  है. आप नीचे दिए प्रारूप में अपनी राय अवश्य दीजिये साथ ही ब्लागर्स मीट में उपस्थिति हेतु  सहमति अथवा असहमति से भी स्पष्ट रूप से अवगत करावें .  मेरा ईमेल पता है ... girishbillore@gmail.com 


क्रम
जबलपुर ब्लागर्स मीट 2016
 01
चिट्ठाकार


 02
मुख्य ब्लॉग / ब्लाग्स   का नाम और URL


 03
डाक पता
फोन नंबर EMail सहित


 04
जबलपुर ब्लागर्स मीट हेतु
प्रस्तावित तिथि
(आपकी ओर से )  


 05
आप परिवार के साथ आ सकतें हैं. ऐसी स्थिति में   आपके साथ आने वाले परिवार के सदस्यों की संख्या


 06
ब्लागर्स
मीट में आवास आहार व्यवस्था  
स्वयं / रिश्तेदार के घर जाना चाहेंगे

आयोजन समिति द्वारा की गई व्यवस्था चाहेंगे
07 
आने का मार्ग
रेल मार्ग
रेलवे स्टेशन : जबलपुर  / मदनमहल
 बस मार्ग,
बस अड्डे
दमोहनाका / मेडिकल कालेज  
वायु मार्ग
एयर पोर्ट :- डुमना
 08
सत्रों के लिए विषय प्रस्तावित कीजिये
( आप जितना चाहें विषय  प्रस्तावित कर सकते हैं  कोई सीमा नहीं)

 09
स्थानीय दर्शनीय स्थलों का पर्यटन
इच्छुक
इच्छुक नहीं
 10
दो दिवसीय आयोजन हेतु आप कितनी सहयोग निधी देना चाहेंगें  


13.8.16

एंटी चुगलखोरी ड्राप

                         जिनके लिए कोई साहित्यकार लिखता है वो या तो अनपढ़ होता है अथवा अत्यधिक व्यस्त या फिर  इतना अहंकारी मानो सैकड़ो रावण समाए हुए हैं उनमें . आज के दौर में पढ़ने वालों की तादात कम ही है .  
_______________________________________________________________
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*


                                                             
                     मुझे उन चुगली पसन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं, जो चुगलखोरी के शगल से खुद को बचा लेते हैं । इसके बदले वे जुगाली करते हैं  । अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने वालों को आप किसी तरह की सजा दें न दें कृपया उनके सामने केवल ऐसे जानवरों की तारीफ जरूर कीजिये । कम-से-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए। आप सोच रहे होंगें, मैं भी किसी की चुगली कर रहा हूँ, सो सच है परन्तु अर्ध-सत्य है !
                  मैं तो ये चुगली करने वालों की नस्ल से चुगली के समूल विनिष्टीकरण की दिशा में किया गया एक प्रयास करने में जुटा हूँ । अगर मैं किसी का नाम लेकर कुछ कहूँ तो चुगली समझिये । यहाँ उन कान से देखने वाले लोगों को भी जीते जी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूँगा जो गांधारी बन पति धृतराष्ट्र का अनुकरण करते हुए आज भी अपनी आँखे पट्टी से बांध के कौरवों का पालन-पोषण कर रहें हैं। सचमुच उनकी ''चतुरी जिन्दगी`` में मेरा कोई हस्तक्षेप कतई नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ! पर एक फिल्म की कल्पना कीजिए, जिसमें विलेन नहीं हो, हुजूर फिल्म को कौन फिल्म मानेगा ? अपने आप को हीरो-साबित करने के लिए मुझे या मुझ जैसों को विलेन बना के पहले पेश करते हैं । फिर अपनी जोधागिरी का एकाध नमूना बताते हुये यश अर्जित करने के मरे जाते हैं।
                      ऐसा हर जगह हो रहा है हम-आप में ऐसे अर्जुनों की तलाश है, जो सटीक एवं समय पे निशाना साधे हमें चुगलखोरी को दुनियां से नेस्तनाबूत जो करना है आईए हम सब एकजुट हो जाएँ- इन चुगलखोरों के खिलाफ!
                   ''चुगली` का बीजारोपण माँ-बाप करते हैं- अपनी औलादों में बचपने से-एक उदाहरण देखें, ''क्यों बिटिया, शर्मा आंटी के घर गई थी``, ''हाँ मम्मी शर्मा आंटी के घर कोई अंकल बैठे थे``
                     अब 'अंकल और शर्मा आंटी` के बीच फ्रायडी-विजन से देखती मैडम अपनी पुत्री से और अधिक जानकारी जुटाने प्रेरित किया जाओ अंकल का इतिहास, उनकी नागरिकता, उनका भूगोल पता लगाओ और यहीं से शुरू होता है चुगलखोरी का पहला पाठ जहां बालमन में चुगली के वायरस प्रविष्ट कराए जातें हैं ।
                        इसमें केवल माँ ही उत्तरदायित्व निभाती है- ये भी एक तरह का  अर्द्धसत्य है । पूर्ण सत्य यह है कि ''चुगलखोरी के कीड़े के वाहक पिता भी हुआ करते हैं``
मेरे दफ्त़र में आकर चुगली करने वाला पवित्र धवल लिबास में आया वो व्यक्ति मुझे अच्छी तरह याद है, जो मेरे मातहत गाँव में काम करने वाली कर्मचारी से रूष्ट था।
उसकी विजय हुई यह जानकार कि मैं उसकी ''शिकायत उर्फ चुगली`` पर ध्यान दूँगा।
स्वयं गाँव का भ्रमण करने पर पाया कि 'धवल से पवित्र वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति के अलावा सारा गांव उस विधवा महिला को देवी की तरह पूजता है और यही उसकी चुगली का मूल कारण है ।
मित्रों, दफ्तरों में, बैठकों में, फोरमस् में, इस प्रयोग को करने से बड़े-बड़े की चुगलखोरों की चुगलखोरी का अंत सहज ही हो जाता है। चुगली कमीने पन गुप का जीवाणु है, जिसने कईयों को तख्त से उठा फेंका है। इसका वाहक बेहद मीठा, आकर्षक, प्रभावशाली व्यतित्व वाली मानवीय काया का धारक हो सकता है। चुगली को कानूनी जामा भी पहनाया गया है  । 
मियाँ फत्ते लाल एंड कंपनी पता नहीं गिरी से काहे खार खाए बैठी थी बस अचानक उनने एक टीम बनाई अपने साथ कई हाँ हुंकारा भरने वालों की एक चार की गारद लेकर मंत्री के पास पहुंचा और खुद को सत्यवादी हरिश्चंद्र का  पुनर्जन्म साबित कर लगा चुगलखोरी करने . बाकायदा चुगली हुई भी पर दीवारों के कान से होते हुए बाकायदा व्हाया कानों कान सर्वव्यापी हो गई .  ये अलग बात है गिरी पर कुछ प्रशासनिक फायर हुए पर ज्यों गिरी ने हूबहू चुगली को बयाँ किया तो सच मानिए हजूर  के बरसों से पीला पलाए तोते फुर्र हो गए इतना ही नहीं मोहल्ले के तोते भी संग साथ फुर्र हुए.  
सियासत का तो मूलाधार है ये चुगलियाँ  । जहाँ सौभाग्यशाली लोगों को ही इससे बच सकने का मौका मिलता है जिनको साक्षात प्रभू का आशीर्वाद मिला हो. वरना  क़मोबेस सभी लोग  इस ''चुगली`` के शिकार हो ही जाते हैं। उधर समाजी रिवायतों की तो मत पूछिए - ''चुगली के बिना संबंध बनते ही नहीं । रहा तंत्र का सवाल सो - ''चुगली को शासन के हित में जारी सूचना की शक्ल में पेश करने वाले अधिकारी कर्मचारी, सफल एवं श्रेष्ठ समझे जाते हैं । अरे हाँ बताना ही भूल गया कि मियाँ याहया खान से लेकर मियाँ परवेज़ मुशर्रफ अब नवाज़ शरीफ तक अपने अपने आकाओं से भारत की चुगलियाँ किया करते हैं जेईच्च इंटरनॅशनल सत्य है.
कारण जो भी हो- चुगली एक खतरनाक रोग है । यदि इसे आप पनपने नहीं देना चाहते ''एण्टी-चुगली-ड्राप`` की दो बूंदे अवश्य देनी होगी । हमें ''पल्स पोलियो`` अभियानों की तरह ''चुगलखोरी उन्मूलन अभियान`` चलाने चाहिए । शासकीय कार्यालयों में इस अभियान के चलाने की बेहद जरूरत है।
मेरे दृष्टिकोण से आप सभी एकजुट होकर इस राष्ट्रीय अभियान को अपना लीजिए। अभियान के लिये-उन एन.जी.ओ. का सहयोग जुटाना न भूलें, जो अपने संगठनों के कार्यो की श्रेष्ठता सिद्ध करने दूसरों की (विशेषकर सरकारी सिस्टम की) चुगली करते हर फोरम पे नज़र आते हैं।
मित्रों! साहित्य, संस्कृति, कला, व्यापार, रोजिया चैनल, आदि सभी क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर हमें चुगली से निज़ात पानी है। और हाँ जो चुगलियाँ गाँव से शहर के दफ्तरों में साहबों के पास लाई जातीं हैं। उनके वाहक भी हमारे प्रमुख लक्ष्य होने चाहिए । 
कैसे पिलाएँ चुगली की दो बूंदे-''सबसे पहले लक्ष्य को पहचानें, उसे कांफिडेन्स में लें`` और उसका मुँह खुलवाएँ । बेहतर ढंग से सुने  । जिसकी चुगली की जा रही है-उसे उसके सामने ले आएँ । फिर हौले से चुगलखोर की कही बातों में से एक दो बातें बूँदों की तरह सार्वजनिक करने की शुरूआत करें।``
इससे चुगलखोर के वस्त्र स्वयम् ही ढीले पड़ने लगेंगें। हाथ पाँव का फूलना, सर झुका लेना, माथा पकड़ना या हड़बड़ाकर ''हाँ...हाँ...हाँ....नहीं...नहीं..`` की रट लगाना बीमारी की समाप्ति के सहज लक्षण होते हैं।
                                                        {लेखक स्वयं एक सरकारी मशीनरी का हिस्सा है }

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