31.3.16

किसी के लिए दिशा सूचक बनने का सुख

                             


गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
आज नगर निगम का एक
स्वीपर अपने बेहद उत्साही बेटे को बालभवन में लाया तो बेहद खुश हुआ... मन उसने
बताया 72% अंक लाने वाले बच्चे की हैण्ड रेटिंग सुधारवानी है . इसे एडमिशन दीजिये
. मैंने बताया हम क्रिएटिव
राइटिंग की क्लास लगाएंगे फिर क्रिएटिव राइटिंग के बारे
में बताया. पिता उदास होकर जाने लगा तो मैंने उसे समझाया -. फिर भी पिता उदास हुआ.
उसके मानस में बस सुंदर लिपि सीखने की इच्छा थी. जिससे पढ़ाई में मदद मिलेगी
पिता के मन में पढ़ाई के लिए बेहद आदर्श रुख
है इसमें कोई दो मत नहीं परन्तु जीवन केवल किताबी ज्ञान से नहीं चल पाएगा, उस
बच्चे को भी वही लैगैसी शिफ्ट हुई थी . बच्चे न कहा – “सर, मैं केवल वो काम करूंगा
अध्ययन में सहायक हो ”
मैंने सवाल किया- “क्या बाकी किसी खेलकूद
जैसी  एक्टिविटी में हिस्सा लेते हो ..?”
वो- “नहीं, उससे कोई फ़ायदा न होगा पढ़ाई
में ”
मैं- “तो कुछ तो करते होगे ”
वो- “हाँ, घर में झाडू पौंछा बरतन आदि साफ़
कर लेता हूँ..”
मैं- “झाडू पौंछा बरतन आदि से जुड़े कोई सवाल
कभी किसी एक्जाम में पूछे जाते हैं..?”
वो० “नहीं”
मैं- “तो फिर, क्यों करते हो  सिर्फ एक ही काम ..... जिसका किताबी शिक्षा से
ज़्यादा लेना देना नहीं ?”
पिता – “सर, ये ही मैं समझ पाता तो आज
दैनिक वेतन भोगी सफाई कर्मी न होता ”
मैंने कहा – “सच है, हर काम को सीखो बिना
इस बात की चिंता किये इससे हमें फ़ायदा ही होगा कुछ काम या हुनर ऐसे आने चाहिए जो
जीवन में कभी मददगार हो सकते हैं.. जैसे कैसे बोलना है, कैसे दुनिया को देखना और
समझना है. फिर उनको बालभवन में सिखाई जाने वाली  हर विधा का परिचय दिया लाभ गिनाए   
 बात सबके लिए महत्वहीन हो सकती है .... पर
उस अभिभावक के लिए नहीं जिसे कदाचित  किसी
ने न समझाएं हों हुनर क्यों सीखना चाहिए एक ज़बदस्त उत्साह था दौनों में .  पिता ने बच्चे का एडमीशन फ़ार्म लिया और भरा भी .
कल से वो बालक आएगा ........ मुझे विश्वास है .  
 मुझे मिला है यह सुख -     किसी के लिए दिशा सूचक बनने का सुख.. आप भी किसी के मार्गदर्शक बनिए




29.3.16

माँ कहती थी आ गौरैया कनकी चांवल खा गौरैया


फोटो साभार विकी पीडिया से 
फुदक चिरैया उड़ गई भैया
माँ कहती थी आ गौरैया
कनकी चांवल खा गौरैया
         उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

पंखे से टकराई थी तो
         काकी चुनका लाई थी  !
दादी ने रुई के फाहे से
बूंदे कुछ टपकाई थी !!
होश में आई जब गौरैया उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

गेंहू चावल ज्वार बाजरा
पापड़- वापड़, अमकरियाँ ,
पलक झपकते चौंच में चुग्गा
भर लेतीं थीं जो चिड़ियाँ !!
चिकचिक हल्ला करतीं  - आँगन आँगन गौरैया ...!!

जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!

हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा  भी  गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!

न तो घर में रौनक बाक़ी, न आंगन में गौरैया ...!!

28.3.16

बावरे फकीरा को सात साल पूरे हुए


दिनांक 14 मार्च 2009 को सायं:07:30 बजे स्थानीय मानस भवन में आयोजितभक्ति एलबम "बावरे-फ़कीरा" का लोकार्पण समारोह अवसर पर ईश्वर दास रोहाणी ने कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मुकेश गर्ग महानिदेशक संगीत संकल्प  अस्थि रोग विशेषज्ञ डाक्टर जितेन्द्र जामदार के आतिथ्य में आयोजित हुआ . था 

बेहद अध्यात्मिक-उर्जा से परिपूर्ण वातावरण में एलबम का विमोचन कराने साईं बाबा बने एक बच्चे द्वारा  मशहूर पोलियो ग्रस्त गायक जाकिर हुसैन एवं आभास जोशी को मंच पर लाया गया . अतिथियों के अलावा बावरे फकीरा टीम के सदस्यों तथा श्रीमती पुष्पा जोशी श्री काशीनाथ बिल्लोरे की उपस्थिति में एलबम का विमोचन किया गया .

इस अवसर अंध-मूक-बधिर-विद्यालय के छात्र विशेष रूप से आमंत्रित थे .स्थानीय कलाकारों श्री चारु शुक्ला {मंडला},विदिशा नाथ .मृदुल.श्रृद्धा बिल्लोरे.अक्षिता ,आकाश जैन ,दिलीप कोरी ,राशि तिवारी.शेषाद्री अय्यर के अलावा आभास जोशी एवं वाइस आफ इंडिया द्वितीय के गायक श्री ज़ाकिर हुसैन तथा संदीपा पारे द्वारा मनोरंजक गीत-संगीत निशा स्वर बिखेरे . 


आयोजकों के अनुसार एलबम के विक्रय से संगृहीत राशि 25 हज़ार  संस्था  द्वारा तत्कालीन कलेक्टर श्री हरिरंजन राव को  लाइफ लाइन एक्सप्रेस के प्रबंधन के लिए सौंपी गई थी आयोजन में उन व्यक्तियों को भी सम्मानित किया गया जिन्हौने वाइस आफ इंडिया प्रथम के दौरान आभास-जोशी-स्नेह मंच जबलपुर के आव्हान पर आभास जोशी के समर्थन में वातावरण निर्माण हेतु सहयोग किया. ,श्री रोहित तिवारी "हीरा",प्रहलाद पटेल मित्र गरीब मदद संस्था संस्थापक अध्यक्ष ,गनपत पटेल,प्रमोद देशमुख,अशोक जैन सुप्रभात क्लब जबलपुर,,श्री रमेश बडकुल ,यशो,श्री पंकज भोज,दीपांशु दुबे,अनुराग वरदे,आभास जोशी स्नेह मंच,जबलपुर डाक्टर संध्या जैन श्रुति ,डाक्टर प्रशांत कौरव,जितेन्द्र चौबे,आभास जोशी स्नेह मंच ,भोपाल,के संजय चौरे,आभास जोशी स्नेह मंच , खंडवा योगेन्द्र जोशी,श्री गोविन्द दुबे,आभास के ज्योतिषी माधव यादव मनीष शर्मा,महावीर महिला मंडल महावीर कालोनी गुप्तेश्वर श्रीमती वन्दना जोशी,लता श्रीवास्तव,प्रवीणा टाक,सिमरन सूरी,कॅनॅडा से आए ब्लॉगर श्री समीर लाल,महिला परिषद् शिवनगर श्रीमती नीलम जैन ,श्रीमती आरती जैनमंजू जैन,समीर विश्वकर्मा,योगेश गोस्वामी नितिन अग्रवालको स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.


27.3.16

वर्ग संघर्ष : एक संक्रामक बीमारी है ?

साभार : समालोचना ब्लॉग 
  कहते हैं खाए बिना ज़िंदा रह सकता हूँ पर लिखे बिना नहीं . मानव की आदिम प्रवृत्ति है –“सिगमेंट-शिप” जिससे वो बंधा रहना चाहता है . जहां उसे आत्म सुरक्षा का आभास बना रहता है .मानव जन्मजात पशु है . वो गुर्राता है, डराता है, डरता भी  है, इस बीच उसे पावर चाहिए ......... पावर के लिए सबसे पहले अपनों को अधीन करना चाहता है करता भी है . फिर अपने अधिकारों का अधिरोपण शेष समूह पर करता है . केंद्र में सबके वही होता है जो सत्ता सियासती तरीके अख्तियार कर संचालित करता है . सत्ता को संचालित करने जो ज़रूरी है वो है संसाधन ....... अर्थात अधिकाँश भाग शीर्ष का . मैन-पावर, धन, भूमि, यानी नक़्शे के भीतर स्थित सब कुछ सत्ता में . पर कालान्तर में प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएं प्रभावी हुईं  और राजशाही सामंताशाही ने प्रस्थान किया. और साथ ही साथ  शुरू होता है आदिम कबीलियाई प्रवृत्ति को उकसाने का खेल . कोई भी व्यक्ति अथवा समूह  सत्ता से अधिक दिन दूर नहीं रह पाता जो सत्ता का सुख भोग चुका है अथवा आकांक्षी है . उसके डी एन ए में राज करने की प्रवृत्ति ज़िंदा जो होती है .   
     समुदाय का समर्थन पाने वो सारे हुनर अपनाता है ........ उसमें एक है ......... “वर्गीकरण करना” जाति, धर्म, रंग, आदि आदि के आधार पर ........ फिर उनकी न दुखने वाली  रगों को दुखने वाली रग साबित कर देने का प्रयोग ठीक वैसे ही करता है जैसे कुछ अभिभावक अपने बच्चे को अपने वश में करने पूछते हैं – बेटा, पेट दुःख रहा है ...... यहाँ , न यहाँ ...... अरे हाँ लो फूंक मारता हूँ ........ ठीक हो जाएगा. बस फिर बज्जू चलेंगे टॉफी लायेंगे ...... बच्चा बहल जाता है .
                        लोग समुदाय को वर्गीकृत कर  उनको ध्रुवीकृत करते हैं फिर  उसे प्रोवोग कर खुद के लिए रास्ता बनाते हैं . वो रास्ता सत्ताभिमुख  होता है .  शायद बेजा न लगे तो सच में कहूं – “वर्ग संघर्ष : एक संक्रामक बीमारी है ?” जिसे बड़ी चतुराई से वायरल किया जा रहा है
                          

         

24.3.16

रक्त बीज हूँ मुझे शूल आके मत चुभा

काल के कपाल पे, प्रश्न कुछ उछाल के
बोध तुम करा रहे, नित नए कमाल के ...!!

चेतना के पास हो, ऐसा लग रहा कहाँ ?
कोई जल रहा यहाँ कोई जल रहा वहाँ ?
हाथ गुमशुदा हुए, दिन लदे मशाल के ..!!

लिखे हैं ग्रन्थ आपने, आग जो उगल रहे
ग्रंथियों में आपकी,   नागनाथ पल रहे..!
“नर्तन नित अग्नि” का, चेतना सम्हाल लें !!

रक्त बीज हूँ मुझे शूल आके मत चुभा 
हरेक बूँद में मुझे ताज़ा ताज़ा मुझको पा  
प्राण ही जो चाहिए तो प्रेम से निकाल ले  !!




नर्तकी है आग देख मस्त होक चल रही 
कल तलक जो आग मेरे सीने में थी पल !
एक भी हो अगर, चिंगारी तू निकाल दे !!

धर्म क्या है मर्म का, मर्म क्या है धर्म का -
ज्ञान जो नहीं तो तू , दुशाला ओढ़ शर्म का !
मत बना सबब इन्हें - रोजिया बवाल के !!

   

   



   

  

23.3.16

“विश्व के विराट होने का बोध होना ज़रूरी है ...!”


                        एक आध्यात्मिक सन्दर्भ में दूसरों के लिए जीना और खुद के लिए जीना दो शिखर है .  इन दोनों शिखरों के बीच एक गहरी खाई है. एक शिखर से दूसरे शिखर के बीच कोई पुल सरीखा एक भी रास्ता नहीं है . खुद के लिए जीते जीते आपको उड़कर दूसरों के लिए जीने वाले शिखर पर जाना पड़ता है.
परन्तु सबको उड़ने की ताकत और पंख  भौतिक रूप से न कभी मिले हैं न मिलेंगे . तो फिर विकल्प क्या है हम कैसे आध्यात्मिक पथ के पथचारी हो सकते है...?
सोचो आप जीने की कलाओं से परिपूर्ण हैं . आपके पास शब्द हैं विचार हैं, तर्क हैं परन्तु संवेदनाएं मृतप्राय: हैं . अर्थात आप सामष्ठिक कल्याण के लिए अभी तैयार नहीं .
आपमें उड़ान भरने की क्षमता कहाँ . कि आप बहुजन हिताय सोचें !.. आप जैसे ही अपने में संकुचित होंगें तुरंत आप में से आत्मशक्ति का क्षरण होना शुरू हो जाता है. इस क्षरण को ढांकने आप एक कल्ट ओढ़ लेंगें - कि आप ये हैं आप वो हैं . अक्सर हमने सुना है – अमुक जी इस शीर्ष पद पर हैं तमुक जी उस शीर्ष पद पर हैं. और दौनों यानी ये अमुक जी और तमुक जी अपने लग्गू-भग्गूओं को विश्व समझ लेते हैं . इनमें से एक श्रीमान हैं – श्रीमन “क” अब नाम न पूछना आप तो जानते ही हैं कि नाम में या रक्खा है ..! तो श्रीमन “क” किसी को सत्य का बोध कराते तो कभी स्वामित्व का, और कभी पितृत्व का पर हमेशा स्वयं में ये बोध रखते कि समक्ष में आए व्यक्ति में  “लघुता” है . मेरी दृष्टी में श्रीमन ने विराट का दर्शन कभी नहीं किया वरना वे आत्माभिमुख न होते . इतनी घुमावदार बात से बेहतर बात ये है कि मैं कुछ शब्दों में संक्षेप में कह ही दूँ तो सुनिए दो टूक “अगर आप जब जब खुद को आलमाइटी समझने लगो तो विराट के दर्शन अवश्य करो” समस्या ये है कि विराट दर्शन कैसे हों ?

न यशोदा हैं आप न आपने किसी कृष्ण को अपना पुत्र बना रखा है. सोचता हूँ कि क्या सुझाव दूं ....... ताकि तुमको विराट दर्शन हो ? ....... मेरे पास एक प्रयोग है जो मैं अक्सर करता हूँ..... जी हाँ खुद को लघु कर लेता हूँ ......... फिर सब कुछ  विराट हो जाता है ........ और पंख के साथ परवाज़ भी  हासिल हो जाती मुझे उड़ के आध्यात्मिक शिखर के लिए उड़ लेता हूँ .. सुना लघुता धारण करते ही  विराट दर्शन होते हैं ......... इससे बेहतर तरीका और क्या होगा ?   

21.3.16

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सभी का समर्पण जरूरी है: दीदी ज्ञानेश्वरी

                  
         
दीदी ज्ञानेश्वरी  
महिलाओं एवं बच्चों के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के विकास एवं खुशहाली सबके संयुक्त प्रयास से आती है। सभी अपनी चिंतनशीलता एवं सकारात्मक सोच से एक साथ मिलकर एक ही प्रकार के संकल्पों को सही आकार दे सकते है।
          जीवन के लिए सबसे जरूरी चीज शिक्षा है जो हमारा अधिकार भी है। संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा के साथ-साथ हमारी समझदारी भी आवश्यक है। तदाशय के विचार व्यक्त करते हुए दीदी ज्ञानेश्वरी ने संभागीय उपसंचालक, महिला सशक्तिकरण कार्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में  व्यक्त किये । उन्होने आगे कहा कि समाज में बदलाव देखे जा रहे है फिर भी निरंतर सकारात्मक परिर्वतन की आवश्यकता है। पर्यावरण की समस्या लिंगभेद, समाजिक एकात्मकता के बिन्दुओं को उठाते हुए पूज्य ज्ञानेश्वरी दीदी ने समाज में बेटे-बेटी के बीच भेदभाव घटाने पर बल दिया ।
श्रीमति उजयारो बाई बैगा 
                    आयुक्त, महिला सशक्तिकरण, म.प्र. श्रीमति कल्पना श्रीवास्तव द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुरूप श्रीमति मनीषा लुम्बा, उप संचालक महिला, महिला सषक्तिकरण, जबलपुर संभाग, जबलपुर की ओर से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के समापन समारोह को स्थानीय होटल कल्चुरी रेसीडेंसी में दिनांक 21 मार्च 2016 में आयोजन किया गया ।
          समापन समारोह की मुख्य अतिथि अध्यात्मिक चिंतक पूज्य ज्ञानेश्वरी दीदी तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध समाज सेवी एवं केन्द्रीय कारागार में नशामुक्ति के क्षेत्र में कार्यरत श्रीमति अरूणा सरीन ने की। कार्यक्रम में संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य सेवायें व सामाजिक न्याय क्रमशः डा. रंजना गुप्ता व सुश्री राजश्री राय, श्रीमति मनोरमा तिवारी एवं उपनिगमायुक्त श्रीमति अंजु सिंह बघेल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रही ।
                    इस अवसर पर श्रीमति अरूणा सरीन ने कहा कि-समाज को बदलने के लिए सच्चे मन से की गई कोशिशें ही सफल होती है ।
अपराधियों को जेल भिजवाने वाली बालिका का मान 
          अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अंतर्गत सप्ताह भर आयोजित कार्यक्रमों  के संबंध में श्रीमति मनीषा लुम्बा, उपसंचालक महिला सशक्तिकरण जबलपुर संभाग एवं जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी जबलपुर एवं नरसिंहपुर द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनके जिलों में आयोजित कार्यक्रमों के बारे में प्रतिभागियों को बताया गया।
          कार्यक्रम में संभागाधीन जिलों में अपने क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया एवं ऐसे पुरूषों को सम्मानित किया गया जिन्होनें महिलाओं सम्मान एवं विकास के लिए काम किया है जिनमें जबलपुर की श्रीमति मनोरमा तिवारी(साहित्य) रेणु पाण्डे(कला) क्षिप्रा सुल्लेरे(संगीत), सैलजा सुल्लेरे(महिला स्वावलंबन) कुमारी तान्या बडकुल(चित्रकला) आरती साहू, सच्चा प्रयास, न्यू शिक्षा प्रचार समिति, सदभावना नशामुक्ति केन्द्र जिला डिण्डौरी से श्रीमति उजयारो बाई(विश्व आदिवासी सम्मेलन, डर्बन में भाग लेने हेतु), सुश्री सुनीता उईके(नवाचार के जरिये आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा को बढावा, जिला-बालाघाट से श्रीमती मंजू बोरकर, श्रीमति रीता गौतम, श्रीमति शीला सिंह, कुमारी लक्ष्मी टेंभरे, जिला-छिन्दवाड़ा से रीता चैरसिया, वैशाली डहेरिया, श्री राकेश शर्मा, श्री प्रेमचंद पाण्डे, जिला-मण्डला श्रीमति उत्तरा पडवार, कुमारी शादाब खान जिला-सिवनी की शिक्षिका श्रीमति अनीता राम जिनके साहस से 04 डकैतों को पकडा जा सका, सुश्री शिवाली पाठक, साक्षी सोनी, जिला-नरसिंहपुर से स्वयं को अपहरण से बचाने वाली सुश्री बरखा राय एवं वर्षा राय व सबसे कम उम्र की सरपंच सुश्री मीना कौरव, जिला-कटनी से सुश्री श्रेजल तपा, कुमारी सायना, सुश्री रोशनी हल्दकार आदि को प्रसस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया है ।

                    कार्यक्रम में बाल भवन के बाल कलाकरों द्वारा सरस्वती वंदना, स्वागतम् लक्ष्मी गीत एवं लाडो गीत की प्रस्तुति दी गई
                    प्रारंभिक भाषण में श्रीमति राजश्री राय ने कहा-महिलाओं के सामाजिक अधिकारों के लिए सामाजिक विभाग निरंतर कार्य कर रहा है, महिला सशक्तिकरण संचालनालय के साथ सभी विभाग महिला के अधिकारों एवं कार्यक्रमों में सतत् साथ-साथ है।
                    इसी क्रम डा. रंजना गुप्ता ने कहा-रूढियों को तोडते हुए हमें महिलाओं को उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रदेश सरकार के सभी विभाग संकल्पित है।

                    श्रीमति अंजु सिंह बघेल, डिप्टी कमिश्नर, नगरनिगम, जबलपुर ने कहा कि-जेंडर संवेदनशीलता के परिपेक्ष्य में प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के लिए प्रदेश सरकार बेहद प्रभावी ढंग से कार्य कर रही है।
                    इस अवसर पर महिला बाल विकास विभाग में प्रभावी एवं उत्कृष्ट सेवायें देने के लिए श्रीमति आनंद ज्योति पाठक, विकासखण्ड महिला सशक्तिकरण अधिकारी को शाल श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। साथ ही अतिथियों को भी साल श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में एकीकृत बाल विकास सेवायें एवं महिला सशक्तिकरण के जिला, खण्ड स्तरीय अधिकारी, संस्था आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

20.3.16

हरे मंडप की तपन


साभार : इंडिया फोरम से 
( एक विधुर पंडित विवाह संस्कार कराने के लिए अधिकृत है ... पर एक विधवा माँ  अपने बेटे या बेटी के विवाह संस्कार में मंडप की परिधि से बाहर क्यों रखी जाती है. उसे वैवाहिक सांस्कृतिक रस्मों से दूर रखना कितना पाशविक एवं निर्मम होता है इसका अंदाजा लगाएं ..... ऐसी व्यवस्था को अस्वीकृत करें . विधवा नारी के लिए अनावश्यक सीमा रेखा खींच कर विषमताओं को प्रश्रय देना सर्वथा अनुचित है आप क्या सोचते हैं....... ? विषमता को चोट कीजिये  )
 वैभव की  देह देहरी पे लाकर रखी गई फिर उठाकर ले गए आमतौर पर ऐसा ही तो होता है. चौखट के भीतर सामाजिक नियंत्रण रेखा के बीच एक नारी रह जाती है . जो अबला बेचारी विधवा, जिसके अधिकार तय हो जाते. उसे कैसे अपने आचरण से कौटोम्बिक  यश को बरकरार रखना हैं सब कुछ ठूंस ठूंस के सिखाया जाता है . चार लोगों का भय दिखाकर .
चेतना  दर्द और स्तब्धता के सैलाब से अपेक्षाकृत कम समय में उबर गई . भूलना बायोलाजिकल प्रक्रिया है . न भूलना एक बीमारी कही जा सकती है . चेतना पच्चीस बरस पहले की नारी अब एक परिपक्व प्रौढावस्था को जी रही है . खुद के जॉब के साथ साथ  संयम को संयुक्ता को पढ़ाना लिखाना उसके लिए प्रारम्भ में  ज़रा कठिन था . कहते हैं न  संघर्ष से आत्मविश्वास की सृजन होता है . वही कुछ हुआ चेतना में . एक सुदृढ़ नारी बन पडी थी . चेतना ने  आत्मबल बढाने के हर प्रयोग किये किस दबंगियत से लम्पट जीवों से मुकाबला करना है बेहतर तरीके से सीख चुकी थी .
बच्चों का इंतज़ार करते करते बालकनी में बैठी  आकाश पर निहारती चेतना ने एक पल अपने फ्लेट को निहारा फिर सोचने लगी 15 साल तक ब्याज और किश्तें चुका कर अपना हुआ फ़्लैट एक संघर्ष की कहानी है वैभव के साथ खुद की कमाई के आशियाने की कसम खाई थी पर वैभव के जाने के बाद कसम को पूरा करना कितना मुश्किल सा था. किराए के मकान में रहना उसे अक्सर भारी पड़ता था . इस फ़्लैट का डाउनपेमेंट के इंतज़ाम की गरज से   भावुकता और विश्वास के साथ  भाई के घर गई थी भाई ने कहा – चेतना देखो दस-बीस हज़ार उधार दिला सकता हूँ पर एक लाख मेरे लिए मुश्किल है . बहन बुरा मत मानना मेरी भी ज़िम्मेदारियाँ हैं  भाई की बात सुन कर चेतना को याद आ रहा था पिता जी के नि:धन पर वैभव के साथ वो  पहुंची थी तीसरे ही दिन  अस्थि संचय के बाद भैया ने बड़े शातिराना तरीके से मकान जमीन के लिए किसी पेपर पर दस्तखत कराए थे तब भैया ने कहा था – “बहन , तेरा भाई हर पल तेरे लिए बाबूजी की तरह मुस्तैद है .” सभी जानते हैं बाबूजी के श्राद्ध को फिजूल खर्ची बताकर  लेशमात्र खर्च न किया. पारिवारिक अर्थशास्त्र तो दस्तखत वाले दिन ही समझ चुकी थी . परन्तु वादा-खिलाफी का परीक्षण  भी हो गया . खैर युक्तियों से मुक्तिमार्ग खोजती चेतना ने वैभव के साथ ली कसम को पूरा किया.
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संयुक्ता के जॉब में आने के बाद संयुक्ता की पसंद के लडके से शादी की रस्म पूरी होनी है . दो दिन बाद बरात आएगी आज खल-माटी की रस्म है . भाभी ने कहा- बहन आप न जा पाओगी ...... मंगल कार्य में सधवा जातीं हैं . ..!
चेतना :- और, बाक़ी रस्मों को कौन कराएगा ?
भाभी  :- मैं हूँ न , आप चिंता मत करो,
चेतना :- पर क्यूं..?
भाभी  :-  सामाजिक रीत के मुताबिक़ विधवाएं हरे मंडप में भी नहीं आतीं थीं वो तो अब बदलाव का दौर है .
चेतना की आत्मा चीखने को बेताब थी पर बेटी की माँ वो भी वैभव सदेह साथ नहीं . जाने क्या सोच चुप रही.   
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चेतना :- भैया पंडित का इंतज़ाम हो गया है न
भाई   :-  हाँ, बिहारी लाल जी के पुत्र हैं ...  बताया था न कि अभिमन्यु शुकुल की पत्नी नहीं रहीं ......
चेतना :- अच्छा, तो ये विधुर हैं ..
भाई   :- हाँ, बहन, बहुत बुरा हुआ इनके साथ                                              
चेतना ( भाभी की तरफ देखकर ) :- विधवा को हरे मंडप में जाने का अधिकार नहीं और पंडित विधुर चलेगा क्यों भाभी ....... ?
                 सम्पूर्ण वातावरण में एक सन्नाटा पसर गया . भाई-भावज अवाक चेतना को निहारते चुपचाप अपराधी से नज़र आ रहे थे. और अचानक एक ताज़ा हवा बालकनी में लगे हरे मंडप की तपन को दूर करती हुई कमरे में आती है  
फिर क्या था ........ हर रस्म में चेतना थी हर चेतना में उत्सवी रस्में .. ये अलग बात है कि चेतना अपनी आँखें भीगते ही पौंछ लेती इसके पहले कि कोई देखे.  

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” girishbillore@gmail.com   

19.3.16

चिंतन की बीमारी

                                                         सैपुरा (शहपुरा-भिटौनी) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये        
 चिंतन की बीमारी ज्यों ही हमको लगी हम  चिंतनशील होने के कारण हम एक एक  घटना पर चिंतनरत हो जाया करते  थे .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ दीदी, इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय में हमारा साथ दे और ये है कि.. मां हंस पड़ी उल्टे कल्याण मामा की क्लास लेली - पागल तुम हो पाकिस्तान का घुसपैठिया विमान एक तो शहपुरा-भिटौनी तक आ नहीं सकता. दूसरे आ भी गया तो उसे कल्याण तेरे घर के लालटेन की लाइट कैसे दिखेगी बता रेल्वे क्वार्टर में पक्की छत है कि नईं चल जा भाभी को अब ऐसे न झिझकारना. दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि पाक़िस्तान का जहाज़ लालटेन ब्लैक आऊट जे सब क्या है.. चलो आज़ मास्साब से पूछूंगा . कि यकायक एक आवाज़ ठीक सर के ऊपर से हमारी खोपड़ी में जा टकराई - गिरीशकै छक्के चौअन....?    
मेरा ज़वाब था - छै: नारे चऊअन...!!
                            रजक मास्साब- तुमसे  हम पूछ कछु रए तुम बता कछु रए..सो रए  हो का .  सटाक एक चपत गाल पै आंखन में आंसू मन में उदासी लए  हम चिंतन शील हो गए .
                  सही उत्तर र देने के बावज़ूद मिले चापतोपहार  से हम क्रुद्ध न होकर चिंतन करने लगे थे . निष्कर्ष में हमने पाया  ये मास्साब लोग वो जीवात्मा धारण करते हैं जो  चपतियाने का मौका न  तज़ने की प्रेरणा देती है .
                    एक तो रामचरन भैया  तांगेवाले बड़े प्यार से अपने एन अपने बगल में बिठाते थे जो घोड़े के दक्षिणावर्त्य के एकदम समक्ष का हिस्सा उस पर घोड़े को वायु-विकार की बीमारी थी . हमसे पीछे बैठने वालों तक घोड़े के दक्षिणावर्त्य से निकसी हर हास्यस्पद ध्वनियां सहज सुनाई देती थी उस पर रामचरन बच्चों को नेक सलाह देते थे.... घोड़ा पादे तो हंसियो मति.. बाक़ी बच्चे चिल्लाते थे .. नईं तो भैया .. दाद हो जाएगी न... फ़िर तांगे में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती . अपुन का हाल तब बुरा हो जाता था.. प्रदूषण की वज़ह से .  न तो हंस पाते न रो पाते न गुस्सा कर पाते ..ये सब घटनाएं दिमाग पर असर करतीं थीं . जमादारिन के बच्चे को न छूने की हिदायतें.. ?
मामी को हमेशा डांट मिलना, पुरुष रेल कर्मियों का दारू पीकर जलवा बिखेरना.. ये सब अजीब लगता था 
    औरतें तब भी रोतीं थीं.. आज भी रोटी हैं .  बच्चे आज भी पन्नी बीनते हैं. ट्रेन में पौंछा मारते हैं चाय पिलाते हैं... गाली भी खाते हैं.. बताओ भाई.. किसी विदेशी को "गली का करोड़पति कुत्ता" बनाने का आमंत्रण देती इस व्यवस्था के बारे में कितना चिंतन करतें हैं हम आप शायद बहुत कम .. इस आलेख के साथ लगी फ़ोटो में एक बच्चे को हमने ए.सी. कोच में पौंछा लगाते देखा. हम विचलित थे.. आज़ ये तस्वीर पुराने फ़ोल्डर में नज़र आई सोशल साईट पर भी दे डाली.. एक महाशय का कमेंट मिला "यही धंधा है इनका...
सहानुभूति के लिए अथवा चंद लाइक पाने के लिए फोटो भले ही लगा   दीजिये.  ऐसे हजारों बच्चे, जवान, बूढ़े और विकलांग हैं जिनके लिए भारतीय रेल जीवन रेखा है और ये वहीँ से कमाते हैं...
भाई साहब बड़े जोश से आगे लिखते हैं - मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं..."
             हम लोग इतने नैगेटिव हो गए हैं कि सिर्फ़ विरोध करते हैं . सरकारें समाज विचारक दाएं बाएँ वाले लोग इनके बारे में क्या सोच रहे हैं मुझे लगता है कुछ भी नहीं .
                  ये  केवल विरोध कर किनारा करते हैं . इनको  आत्म चिंतन की बीमारी कभी न हुई ऐसा लगता है .. वरना इनकी सोच  शून्य न होती . कुंठा के बिरवें रोंपना कहां तक ठीक है.. अगर  आप को मेरा विचार पसंद नहीं तो मेरी सोच और सकारात्मक सोच बदल दूंगा न कदापि नहीं ..
                           लोग जिसे धंधा कह कर छुटकारा पाना चाहते हैं वे क्या खाक भारतीय होंगे..!! अगर सच्चे भारतीय हो तो पौंछा लगाने वाले बच्चों के लिए कोई सक्रीय क्यों नहीं होता . बच्चों को स्कूल जाने दो न जा सकें तो छोड़ आओ स्कूल . कठोर क़ानून बनाओ ....... ट्रेन में बच्चे काम करते नज़र न आएं भीख मत दो .. एक बार मिलकर कुछ ऐसा करो कि व्यवस्था कम से कम  बच्चों के लिए संवेदित हो जाए.

कल श्री श्री रविशंकर जी के कल्चरल उत्सव में युगपुरुष भी पहुँचे थे... युगपुरुष के भासड़ के मुख्य अंश ये हैं-
1-दो बार पूरी दमदारी से पूरी दुनिया को बताया कि मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूँ।
2-'अगर गुरु जी इनिशिएटिव लें तो' हम यमुना को साफ़ करेंगे (इनिशिएटिव माने पैसा और मेहनत)
3-मैं बहुत स्वार्थी आदमी हूँ (ब्रेकिंग न्यूज़)
4-गुरु जी के वॉलेंटियर्स बहुत अच्छे हैं, मैं उनसे माँगता हूँ कि अपने वॉलेंटियर्स हमें दे दें(पंजाब में चुनाव लड़ना है जी)
5-इतिहास में पहली बार युगपुरुष ने बिना ऊँगली उठाए अपना भासड़ समाप्त किया(हालाँकि बहुत कंट्रोल करना पड़ा फिर भी केंद्र सरकार का नाम ले ही लिया )

18.3.16

अश्वत्थामा हत: - गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

                           
साभार : listcrux.com  से 
 सोशल  मीडिया  पर  हो रही बातें  त्वरित  होतीं  हैं . जो त्वरित है वो अधपका हुआ करता है .  अधपका भोजन और अधकचरी बात नुकसान देह होती हैं . अश्वत्थामा हतो हत: ………त्वरित  अभिव्यक्ति  में गर्माहट  हो  सकती  है चिंतन नहीं ..... !
 किसी  को  नीचा  दिखाना  अपमानित  करने वालों को  यदि   खुद  पर  कोई  टिप्पणी मिले  तो  "असहिष्णुता" का आरोप ....... लगाना आज का शगल है . लोग अपने झुण्ड और झंडे को लेकर अति संवेदित और भावुक हैं .  मेरा  मानना है कि ..... जब  सात  रंग  एक  साथ  मिलकर  पारदर्शी  हो जाते  हैं  तो  कई  विचारधाराएं  सर्वहारा  के  लिए ! आम  आदमी  के  लिए ! उपयोगी  क्यों नहीं हो सकती .भाई  ये देश देखना एक दिन  लांछन गाली-गुफ्तार को  दर  किनार  कर    आगे  बढेगा ......   मुंह चला  कर  देश  का अपमान  कराने  वाले  झाड़ियों  में  लुकाछिप  जाएंगे झाड़ी के पीछे स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाते .. बदबू फैलाते नज़र आएँगे. मुझे यकीन है  हिन्दुस्तान  आगे  आएगा सियासत और समाज  के ढाँचे  में मौलिक  बदलाव  के  साथ……  
पता है न सबको जब नस्लें  जाग जाती हैं  तो  भारत  के  भाग्य में सकारात्मक  बदलाव आता है ........रावण का साम्राज्य, कंस का वैभव नन्द का अंत और अंग्रेजों का वापस जाना पुष्टिकारक घटनाएं हैं .
आज की  चिंता तो बस इतनी  है कि लोग  संसद जैसी जगह की पवित्रता बनाए रखें . देश किसी लपलपाती  जीभ से नहीं मेहनती हाथों से संवारा जाता है . न हिन्दू महान न मुस्लिम ......... सबसे महान देश  है . अगर बाबा रामदेव ने दवाएं बेचनी शुरू कीं तो माथे में दर्द ...... अगर श्री श्री ने सांस्कृतिक आयोजन किया तो पेट में दर्द ...... अगर मोदी न बोले तो सीने में दर्द अगर बोले तो कमर में दर्द ........ भाई आपके दर्द का इलाज़ करने हम भारतीयों  के पास न तो समय है न दवा . कुछ दिन नींद की गोली लेके सोने की सलाह दे रहा हूँ . बुरा न मानें एक स्लीपिंग पिल्स का पत्ता डाक्टर की सलाह पर मांगा लीजिये .
किसी को धर्म तो किसी को सम्प्रदाय की चिंता है तो कोई काफी हाउस में बैठा मौजूदा हालात पे गरज़ता नज़र आ रहा है . लोग दिमाग में ज़हर  लिए घूम रहे हैं भीड़ देखी नहीं कि बस छिड़क देते हैं ज़हरीले  विचार . हर बार छिपे और इस बार उजागर हुई जे एन यू घटना के बाद तो के लोग अजीब सदमें में हैं . बहुत कुछ एक्सपोज़ हुआ है .
देख रहा हूँ कोई  बाबा भीमराव जी पर अपना हक़ जमाए है तो कोई गांधी जी पर तो कोई किसी रंग पर तो कोई किसी ढंग पर अरे भाई ....... भारत किसी की निजी मिलकियत नहीं
न ही किसी की पुस्तैनी जागीर ......... ये अमन पसंद लोगों का देश है . शाम घर लौटो तो टीवी पे चिकल्लस , अखबार उठाओ तो विवादित बोल .........   यानी कुल मिला कर असहज वातावरण .

सोशलएप का  एक ग्रुप है सामाजिक जो बासे लतीफे उल-ज़लूल वीडियो भेजता है तो दूसरे पे   घटिया सियासी बकवास मानो अक्ल का अजीर्ण सा हो गया . ये जानते हुए  कि मनु-स्मृति के आधार पर भारतीय संविधान नहीं लिखा गया उस किताब की प्रति जला कर जाने क्या साबित कर रहे हैं लोग . जहां तक मैं जान पाया हूँ कि  कुछ लोगों का उद्देश्य होता है कि जनमन को प्रोवोग किया जावे भारत में अस्थिरता का माहौल बनाया जावे . तेज़ी से बढ़ती टेक्नोलोजी का भरपूर दुरुपयोग जारी है . चारों ओर से   “अश्वत्थामा  हत:.. अश्वत्थामा  हत: ” का शोर सुनाई दे रहा है ...... सृजनात्मकता मिलेगी आपको लापतागंज में .. जो आपके अंतस में गुमशुदा है ...... रोज़िन्ना शाम खोलिए मत टीवी , बंद कर दीजिये वाट्सएप , फेसबुक ट्वीटर, बस एक घंटे के लिए आँख बंद कर अपने बच्चों को निहारिये दिन भर अभावों से जूझते लोगों के बारे में सोचिये आपकी “विराट-सत्य” से भेंट हो जाएगी .        

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...