7.2.16

साँसों के मशवरे है इक अमर-गीत गालूँ ?


साँसों का मशवरा है कब टूट जाना होगा..
उसे टूटने से पहले इक  अमर गीत गालूँ..!!
जिसमें न सिर्फ तुम हो, जिसमें न सिर्फ हम हों
न हर्फ़ हों न सुर हों, न ताल-लय हो उसमें -
बस प्रीत राग छलके.. गीत आज छलके 
इक ऐसा गीत लिक्खो कि याद में छिपालूँ
कब टूटती हैं साँसे, कब रुकेंगी आंसें -
कब बंद होतीं आँखें, झपकेंगी कब ये आँखें
इक लोरी तो सुनाओ, सोना है ज़ल्द मुझको ..
कल का सफ़र है लंबा, आराम ज़रा पालूँ...

कुछ लोग बरसते हैं कुछ लोग तरसतें हैं
कमजोर कोई देखा जी भर के गरजते हैं
रब जानता है मुझको रब मेरा भी है लोगो
साँसों के मशवरे है इक अमर-गीत गालूँ ?


कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...