30.12.15

कम बोलते हैं शुभम बोलती हैं उनकी पेंटिंग्स



  20 अगस्त 1997 को जन्मे शुभम के पिता श्री जगदीश राज अहिरवार पेशे से सब्जी व्यापारी हैं

. 2007 में  बाल भवन में बेटे को उसकी रूचि देखते हुए  संभागीय बाल भवन में प्रवेश दिलाया । रोज़ कमाने वाले जगदीश बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद संवेदित हैं .बच्चों को घरेलू आर्थिक परेशानियों से अप्रभावित रखने वाली शुभमराज माताजी श्रीमती कोमल का सपना है –“बच्चे के  सारे सपने पूरे हों.... !
          तीन भाईयों में शुभम सबसे बड़े बेटे शुभम जिसका रुझान बचपन से ही  चित्रकारी में है जबकि अन्य छोटे भाई खेल और पढ़ाई में रुचि रखते हैं ।

 शुभम का   चित्रकला के प्रशिक्षण का सपना बाल-भवन ने  पूरा किया । उसका मानना है हमें  खुद के विकास के  लिए  अच्छे अवसर एवं अच्छे स्थान की तलाश  करनी चाहिए मुझे बालभवन जबलपुर में आकर अपने सपने पूरा करने का मौका मिला  मैं रोमांचित हूँ । अपनी सफलता का श्रेय माता पिता एवं बालभवन को देते हुए शुभमराज ने कहा की- बाल-भवन  की अनुदेशिका श्रीमती रेणु पाण्डे के प्रभावी प्रशिक्षण एवं अनुशासन से ही  मुझे राष्ट्रीय स्तर के इस पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।” 
बालभवन अनुदेशिका श्रीमती रेणु पाण्डे कहतीं हैं
-
बालभवन आने से कला के साथ साथ शुभम के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आएँ है । कला-साधना से जहां एक ओर  शैक्षिक उपलब्धियां श्रेष्ठ रहीं वहीं उसके संवाद-कौशल एवं व्यक्तित्व में भी निखार देखा गया । शुभमराज अहिरवार पंडित लज्जा
शंकर झा उत्कृष्टता विद्यालय में 12 वीं कक्षा (गणित-विज्ञान) में अध्ययनरत हैं ।
इस उपलब्धि पर संभागीय उप संचालक
  श्रीमती मनीषा लुम्बा
, जो पूर्व में बालभवन की संचालक रह चुकीं हैं का मानना है कि- "कला को कोई अभाव रोक पाने में कभी भी सफल नहीं हो सकता " 
शुभमराज़ अहिरवार 2013 के बालश्री अलंकरण लिए  नामांकित हैं देवताल
जबलपुर का सजीव चित्र जिसे
 
मास्टरपीस कहना गलत न होगा . इस चित्र
का विश्लेषण किया मशहूर आर्टिस्ट
 
धुव गुप्ता जी ने ... मुझसे आज
कर रहे थे वे.. शुभमराज देश का मशहूर चित्रकार बनेगा ... इसमें कोई दो राय नहीं .
शुभम राज के स्कूल के शिक्षक श्री शिवेन्द्र परिहार साइंस व्याख्याता  जो स्वयं एक
अच्छे शिक्षक हैं ने शुभम की रियलिस्टिक पेंटिंग्स को अद्वितीय बताते हैं . 
यूं तो शुभम कम बोलते हैं पर उनकी पेंटिंग्स मुक्तकंठ बोलती हैं ...  


23.12.15

निर्भया आखिर पत्थर को पिघला दिया तुमने पर देर हो गई



निर्भया तुम ज्योति बनी परन्तु बहुत देर हो जब तक तुम्हारे-ताप से पत्थर पिघले तब तक तुम्हारा क्रूर अपराधी सिलाई मशीन लेकर तार तार हुए  दिलों के पर सुइयां चुभाने की कोशिश में लग जाएगा . फिर भी तुम्हारी वज़ह से पत्थर पिघले .... चली गईं पर तुम्हारे बलिदान ने देश को अप्रतिम उपहार दिया है ..... क्या कहूं नि:शब्द हूँ ..... अब एक भी अक्षर लिखना मेरे लिए भारी है ....... नमन बेटी ............   
( जुविलाइन जस्टिस अधिनियम संशोधन पर त्वरित टिप्पणी )

22.12.15

टनों पिघले हुए मोम पर सुलगता सवाल "ज्योतिसिंह यानी निर्भया "



डा राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था- "ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करतीं" अगर लोहिया ने सही कहा है तो हमें अपने ज़िंदा होने पर संदेह है. निर्भया यानी ज्योति सिंह के जीने मरने से किसी को क्या फर्क पडेगा. पड़े भी क्यों भारत में जो जब ज़रूरी तौर पर होना चाहिए वो तब हो ही कैसे सकता है . जब सब जानते हैं कि निर्भया यानी ज्योति के बलिदान के बाद टनों से मोमबत्तियां पिघला तो दीं आम जनता ने... सुनो निर्भया की माँ....! और हाँ  पिता तुम भी सुन लो...!!  हमने भी अगुआई की थी ... उस दिन मोमबत्ती जला कर ये अलग बात है उसी पिघले मोम पर आप सवाल सुलगा रहे हो ..!
क्या रखा है इस सबमें जाओ जब संभव होगा तब हम बदलेंगे  ..... क़ानून अभी हमको फुरसत नहीं हमको विरोध करना है ... ताकत दिखानी है तब तक आप इंतज़ार करो .. 
ऐसा इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि  शोकमग्न हूँ रो रहा हूँ ..  देश उस हकीम के सामने है जो पर्ची पर दवा लिखने के लिए कलम तलाश रहा है . कितने असहिष्णु हैं वे लोग जो सहिष्णुता के लिए दोहरे मानदंड रखते हैं . पूरे विश्व को समझ आ गया है . यह भी समझ चुका है देश कितना भुल्लकड़ है . जो डा. लोहिया जी के शब्द भुला बैठा मुझे तो संदेह है कि हम ज़िंदा हैं भी कि नहीं . बार बार साँसों से पूछने को जी चाहता है कि- तीन साल तक क्यों नहीं हम भारतीय केवल एक ही बात समझाने में कामयाब नहीं हुए कि जो बलात्कारी है वो सर्वदा वयस्क ही है . हो सकता था कि जड़मतियाँ सुजान हो जातीं ..?
हम भी कमजोर साबित हुए ... यद्यपि सब सोच रहे थे कि निर्भया के बाद और निर्भया न होंगी इस निर्भया को भी न्याय मिलेगा पर हमारे दिवा-स्वप्न थे .. अब टनों पिघली मोम पर एक सवाल सुलग रहा है ... दोष किसका है ......... शायद ज्योति यानी निर्भया का ही है जो उस बस में जा बैठी .
अलविदा बेटी अलविदा अब हम खुद ठगे गए हैं तेरे लिए कहाँ से लाएं न्याय ?  

   

17.12.15

“क्या सच कमजोरों को दुनियाँ में जीने हक़ है भी कि नहीं..!”


  आज एक बार फिर मेरी नज़र में एक मूर्ख सरकारी अधिकारी के बयान से अपना आलेख शुरू करूंगा जिसने एक बार कहा था-“कमजोर को स्थाईत्व का हक़ कदापि नहीं ! ”
उस नामुराद असहिष्णु अफसर का यह कथन हम जैसे लोगों के लिए असहिष्णु हो सकता हैं किन्तु ज्ञान का हर विस्तार उसे संपुष्ट यानी कन्फर्म करता है  अर्थ-शास्त्र राजनीति-शास्त्र, कायिक-विज्ञान या कहें हर जगह कमजोर के स्थायित्व के अंत की निकटता का विस्तार से उल्लेख है . इस  पुष्टि  के बावजूद इस विषय पर लिखने की जोखिम इस लिए भी उठाया जा रहा है क्योंकि यह सिद्धांत मानवीय सन्दर्भों में यह विषय सर्वथा अग्राह्य होना चाहिए पर समाज में इस बात को इस तरह घुट्टी में पिलाया गया है कि-"कमजोर को अनदेखा करो..!"
यह विचार इतना परिपक्व हो चुका है कि सामाजिक ढाँचे में रच बस सा गया है . और फिर यहीं से आरम्भ होती है असमानता की यात्रा “कमजोर यानी शीघ्र समाप्त होने वाला” जब ये विचार और विस्तार पाता है तो बेशक सामाजिक संरचना इसे आत्म-सात कर लेती है . अरब देशों में नारी के अधिकारों का ज़िक्र करें तो बायोलोजिकल कारणों से पुरुषोचित साम्य न होने के कारण उसे अलग बंदिशों से जूझना  पड़ता है तो मनु-स्मृति अपाहिजों को संगत में पंगत तक में बैठाए जाने की अनुमति नहीं देता . पुरुष-नारी, सबल-दुर्बल, वरिष्ठ-कनिष्ठ, धनाड्य-अकिंचन, ज्ञानी-अज्ञानी, बुद्धिहीन-बुद्धिमान जैसी स्थितियों में जब जीवन के अधिकार अतिक्रमित होते हैं तब लगता है अगर आपमें कोई कमी है जो समाज की बहुसंख्यक आबादी में अपेक्षाकृत अधिक है .... तो नि:संदेह आपके अधिकारों में कटौतियां लादी जा सकतीं हैं . फिर वह मानवाधिकार को अतिक्रमित क्यों न करे सामाजिक पुष्टिकरण प्राप्त होना कठिन नहीं .
किन्नरों के लिए सामाजिक सोच तो इतनी विपरीत है कि उनको अत्यधिक उपेक्षा का शिकार होना होता है ये सब जानते हैं .
भारत जैसे देश में विधवा को सामाजिक-संस्कारों से दूर रखा जाना  दूसरा अहम् सवाल है अन्य धर्मों में भी अब आवाजें उठने लगीं हैं कि दबाव न हो अब कुछ बदलाव हो पर उस आवाज़ को कब सुना जावेगा ये सब उस वर्ग की क्षमता के विकास पर निर्भर करता है शायद ? उधर अपाहिजों को संवेदनाएं अवश्य हासिल हैं किन्तु समानता देने में हिचकिचाना सामाजिक दस्तूर है . ये भारतीय सामाजिक स्थिति नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में यही दृश्य आप सहज देख सकते हैं . भारत के सन्दर्भों में सरकारी कानूनी कारणों से सोच में कुछ हद तक बदलाव आया है खासकर महिलाओं एवं बच्चों की स्थिति में पर निर्भया काण्ड जैसी स्थितियां अचानक संकेत दे देतीं हैं कि - "हम अभी आदिम जंगली सभ्यता से मुक्त नहीं हुए .  कभी ओमप्रकाश बाल्मीकी की किताब "जूठन" याद आती है तो सिहरन हो ही जाती है .   आप   खुद को सबल समझने वाले पुरुषों की नज़रें देखिये तो आप पाएंगे - वे नारी के सौन्दर्य का दर्शन करते समय कितनी हिंसक एवं लालची हो जातीं हैं . अगर आप अचानक किसी असामान्य वस्त्र पहनी लड़की या महिला को हिंसक एवं लोभी नज़रों से  देखने वाले से सवाल करें - "भाई, इन देवी में आपको माँ, बहन अथवा बेटी की छवि कहीं नज़र आई ?" - विश्वास कीजिये ज़वाब मिलेगा - "मेरी बेटी ऐसी नहीं मेरी माँ का पहनावा वैसा है , मेरी बहन तो ऐसी है आदि आदि .." यानी कुल मिला कर नारीदेह पर कपड़े वैसे हों जो कथित रूप सबल होने के दम्भी पुरुष उत्तेजित अथवा लोभी न हों . सार यह कि औरत वो पहने जो पुरुष चाहे . नारी के स्तन देख कर हमें अपनी माँ याद क्यों नहीं पातीं जिस से झरे अमृत ने जीवन दिया ...?
क्यों हैं  हमारी नज़र एक आक्रमणकारी की नज़र शायद हम एक ऐसे आचरण को ओढ़कर बैठे हैं जिसे सिर्फ "कमज़ोर" की तलाश है ..!
           कमजोर को तलाशिये ज़रूर तलाशिये पर उसे सक्षम बनाने के लिए वरना यह खाई बेशक बेहद गहरी होती चली जावेगी फिर उभरेंगें ऐसे चित्र जो भयावह होंगें जिसे आप न देख पाएंगे .. 
अब सोच में बदलाव का अब समय है जीने और अधिकारों में साम्य की ज़रुरत को विकसित हो रही सभ्यता का दुर्भाग्य ही कहा जावेगा. उस मूर्ख अफसर आभारी होना ही है जिसने “कमजोर को स्थाईत्व का हक़ कदापि नहीं ! ” देने वाले विचार से रूबरू कराया वरना ये संक्षिप्त चिंतन संभव न था .

15.12.15

बैसाखी के सहारे आरोपी को पकड़ लिया



यह रिपोर्ट पलपल इंडिया में "यहाँ"  पर प्रकाशित हुई है जो मूलरूप से प्रतिलिपि कर यहाँ प्रकाशित की गई है 
 गणेश के दोनों पैर नहीं है. वह बैसाखी के सहारे चलता है, लेकिन उसने जो काम किया वह एक पुलिस वाला ही कर सकता है. पत्नी की हत्या करके भाग रहे हत्यारे पति को उसने बैसाखी के सहारे 1 किलोमीटर तक पीछा किया और उसे पकड़ लिया. मामला ढाई महीने पुराना है. कानूनी प्रक्रिया की वजह से गणेश का नाम नहीं खोला गया था. अब एसपी ने उसके इस साहस के लिए उसे 5 हजार रुपए का इनाम देकर सैल्यूट किया.
26 सितम्बर की रात बरगी डैम के पास बने घर के आंगन में गणेश यादव (30 )अपने पिता और दोस्त के साथ बैठे थे. अचानक गणेश को जंगल से किसी महिला की चीखें सुनाईं पड़ी. गणेश ने ये बातें अपने पिता और दोस्त को बताईं, लेकिन दोनों उसे वहम होने की बात कहकर शांत कर दिया. लेकिन गणेश खुद को नहीं रोक पाए और बैसाखी उठाकर तेजी से उस तरफ भागने लगे, जहां से चीखें आ रहीं थीं. गणेश को झाड़ियों के बीच से अचानक एक व्यक्ति भागता हुआ नजर आया और वो उसके पीछे लग गया.
सहारा ही बन गया हथियार
              करीब एक किलोमीटर पीछा करने के बाद गणेश ने भागने वाले को बैसाखी अड़ाकर पकड़ लिया. इसी बीच उसका दोस्त और पिता भी वहां पहुंच गए. पकड़े गए आदमी के हाथ में खून लगा हुआ था, उसने पत्नी की हत्या करने की बात कबूल की. तीनों उसे पकड़कर उस जगह ले गए, जहां महिला की लाश के साथ हत्या में प्रयुक्त कैंची पड़ी हुई थी. इसके बाद पुलिस को खबर दी गई और आरोपी को सौंप दिया गया. गणेश की हिम्मत और आत्मविश्वास की वजह से एक बड़ी वारदात का खुलासा हो गया .
कानूनी प्रक्रिया की वजह से नाम नहीं किया था उजागर
सीएसपी बरगी हरिओम शर्मा ने बताया कि 26 सितंबर की शाम करीब 7 बजे बरगी नगर निवासी राममिलन पटेल अपनी पत्नी सुमन पटेल को घुमाने के बहाने से बरगी डेम के पास जंगली रास्ते में ले गया था. यहां उसने पारिवारिक विवादों के चलते उस पर कैंची से हमला करके हत्या कर दी. सीएसपी ने बताया कि चूंकि घटना के बाद कानूनी प्रक्रिया के तहत गणेश का नाम उजागर नहीं किया गया था. गुरुवार को एसपी ऑफिस में एसपी डा. आशीष ने गणेश को शासन से स्वीकृत हुई पांच हजार की राशि प्रदान की. इस मौके पर बरगी टीआई केएस बघेल, बरगी नगर चौकी प्रभारी ईश्वरी पटले समेत पुलिस विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे


14.12.15

निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 में संशोधन अपेक्षित है


आज मेरी नज़र नियम एवं अधिनियम ब्लॉग पर पडी जहां विकलांग व्यक्तियों के अधिकार को लेकर एक आलेख है जो 2009 में प्रकाशित हुआ है . जिसमें विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों के लिए बनाए गए अधिनियम में विकलांग व्यक्तियों को     आधारभूत अधिकारों का विस्तार से विवरण दिया है . किन्तु मेरी नज़र में यह अनुसूचित संवर्गों के हितार्थ बनाए कानूनों के सापेक्ष  उतना प्रभाव-पूर्ण नहीं जितना कि अपेक्षा थी . अत: अधिनियाँ एवं उसके नियमों में कुछ आवश्यक परिवर्तन वांछित हैं.  यद्यपि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 में काफी हद तक सुधार किया है किन्तु जिन बिन्दुओं पर संसोधन के लिए  ध्यान आकृष्ट कराया जा रहा है  जो दौनों ही अधिनियमों को कारगर एवं प्रभावी बना सकते हैं   
             वास्तव में इस अधिनियम की प्रभावशीलता  अत्यधिक लाभप्रद नहीं है. परन्तु ऐसा नहीं कि रोज़गार को लेकर अधिनियम का प्रभाव कमजोर रहा है . शासकीय रिक्त पदों की पूर्ती के मामलों में इसे अधिनियम से अभूतपूर्व सफलता मिली है. किन्तु सामाजिक संरक्षण के मामले में पीडब्ल्यू अधिनियम 1995 अधिक प्रभाव साबित नहीं कर पाया है. अतएव इस मुद्दे पर  पुनर्विचारण  बेहद आवश्यक है.    
                  उपरोक्त अधिकारों भारत में सामान रूप से सभी को प्राप्त है . किन्तु उनके शोषण एवं उनको अपमानित करने के अपराधों , भीख माँगने के लिए बाध्य करने, कार्य-क्षेत्र में उत्पीड़न , एवं योग्यता संवर्धन के मुद्दों पर अधिनियम में अतिरिक्त प्रावधानों की आवश्यकता का विश्लेषण नहीं है . 
मान्यवर निवेदन है कि अधिनियम में निम्नानुसार बिन्दुओं को समावेशित करने हेतु सादर प्रार्थना है
1.     शारीरिक एवं मानसिक यंत्रणा देना / देने के लिए संप्रेरित करना
2.     विकलांगों के विरुद्ध आपराधिक षडयंत्र करना
3.     सार्वजनिक / सामूहिक / एकल रूप से उपहासित करना
4.     विकलांग व्यक्तियों से विद्वेष रखना, एवं विद्वेष-पूर्ण वातावरण निर्मित करने में सहयोग करना.
5.     अपाहिज द्वारा प्राप्त सभी अर्जित संपदा चल-अचल  संपत्ति को छल,कपट पूर्ण तरीके से हासिल करना क्रय करना.
6.      अधीनस्त / समक्ष / वरिष्ट  विकलांग कर्मियों के विरुद्ध दुर्व्यवहार करना
7.     पति-पत्नी अथवा नैसर्गिक संबंधी होने के बावजूद उपेक्षित भाव रखना, अपराध कारित कर घरेलू हिंसा करना
8.     झूठी शिकायत करना  
9.     नि:शक्तजनों के लिए  आरक्षित संवर्ग के पद तब तक रिक्त रखना जब तक योग्य अभ्यर्थी प्राप्त न हो
10.                  प्रोन्नति में आरक्षण के प्रावधान.
उपरोक्त हेतु संभवत: आई पी सी में भी कुछ बदलाव किया जाना संभावित होगा  
 इन बिन्दुओं पर विस्तार से उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर विमर्श किया जाकर नए उपबंध भी शामिल किये जाना चाहिए  .
साथ ही निशक्तजन कल्याण आयुक्त के अधिकार एवं उनकी कार्यविधि बेहद प्रभावपूर्ण नहीं है उदाहरणार्थ उन तक पहुँचाने वाली शिकायतों के आधार पर ही कार्यवाई संभव है . जबकि विकलांग व्यक्ति ग्रामीण दूरस्थ क्षेत्र में भी रहता है जिसे यह नहीं मालूम कि आयुक्त तक अपनी बात किस प्रकार भेजी जावे. अत: अनुसूचित जाति, जनजाति की तरह सम्पूर्ण रूप से विकलांग व्यक्तियों के हितों के संरक्षण के लिए प्रावधान अत्यंत आवश्यक प्रतीत होते हैं .


12.12.15

ओशो तुम ठहरे गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ.

ओशो 1990 में देह त्याग 
हम 1990 में देह के साथ  
जीवन भर के लिए कुछ तय तो किया था पर पता नहीं ऐसा क्या हुआ हुआ कि अपने आपको असहज पा रहा हूँ . मुझे जो मिला आसानी से कभी नहीं मिला मिलता भी कैसे जो चाहिए मज़दूर को उसके लिए मज़दूरी तो करना ही चाहिए न . मुफ्त जो मिला वो तो पचेगा नहीं न .. नियति ने जो छीना उससे अधिक दे दिया कभी देने से रुका नहीं परमेश्वर मैं भी लुटाने से खुद को क्यों रोकूँ..? बताओ भला. अरे जो मुझे हासिल हुआ है वो सच में मेरा नहीं उसका दिया है . 

एक बार बचपने में एक आध्यात्मोत्प्रेरित कविता लिखी थी 

काश हममें सामर्थ्य होता 
अवरोधों में बढ़ने का 
नए स्वप्न गढ़ने का 
और पूछने का 
यदि तू ही है दाता 
तो बता कौन है तेरा दाता ?
          कविता लिख गई कैसे लिखी क्यों किया इतना बड़ा सवाल जो परमेश्वर से अन्य किसी कठोर मतावलंबी करता तो उसे ईश-निंदा का दंड भोगना होता.. पर बालपन में इस कविता का लिखा जाना परमेश्वर से सवाल करना मुझे रोमांचित कर रहा है .. पर एक दिन जब डी एन जैन कालेज के सभागार में पंडित हरिकृष्ण त्रिपाठी जी ने कहा-"अप्प दीपो भव " तब जाना की परमेश्वर से किया सवाल वास्तव में मुझे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा था कि - परमेश्वर तक कैसे जाना है...? इसी सवाल में छिपा है जीवन का रहस्य ... मुझे कुछ काम मिले हैं मुझे  करने को, कुछ सुख मिले हैं भोगने को, कुछ धड़कन मिलीं हैं ...... यानी सब तो मिला है... तो मिला नहीं है एक ज़वाब दाता के दाता कौन..?
दाता के दाता को जानने दाता तक जाना होगा .... मारकर न भाई जीते जी उसी में मग्न होना होगा. कोई तब उसका होता है जब उसके करीब जाता है .. उसके करीबी जाने कोई बिचौलिया मुला-पंडित नहीं होता पादरी भी नहीं ये सब धार्मिक  प्रक्रिया कराते हैं उनका अधिकार है जो सामाजिक व्यवस्था ने दिया . मुझको कोई रास्ता नहीं दिखा सकता ... मेरा रास्ता मुझे चुनना है उसके पहे खोजना है .. इस जन्म में नहीं मिला ... मिलता भी कैसे इस जन्म में मैंने जीवन के सुख को सुख से दुःख को दुःख से भोगा है... होना ये था कि दौनों ही स्थितियों को निर्विकार तटस्थ भाव स्वीकारना था . तब कहीं जाकर परमेश्वर का पथ दिखाने वाली कंदील मेरे हाथ होती . 
ओशो तुम ठहरे रायसेन के बाद गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ. तुम्हारा पीछा करते करते जबलपुर तक तो आ गया हूँ .... पर तुम आगे निकल गए . मैं अभी पीछे हूँ और रहूँगा भी . असल में तुमको जो मिला उससे अधिक मुझ पर सदगुरु ने उडेला परन्तु तुम समूचा पा गए मेरे हाथ ठहर न पाया वो अमिय.. !
अभी दो जन्म बाद फिर मिलते हैं तब जब केवल मैं और मेरा पथ तुम और तुम्हारा पथ होगा .. परमेश्वर से मिलने के लिए. ये बिचौलिये दूर दूर तक न होंगें न तुमको कोई टार्च-विक्रेता कहेगा न मुझसे कोई प्रतिस्पर्धा रखेगा. मेरे पास विचार संचिंचित हैं तुम्हारे पास अथाह ज्ञान भी विचार भी ..... मैं सदगुरु से पा न सहा तुमसे मिल न सका ...... बच्चा था न .... 1990 तक तुम इतने दूर हो चले थे कि मैं अकिंचन कैसे मिलता...? 
अरे हाँ याद आया ....... आपके शिष्यों से स्नेहियों से खबरें मिलतीं हैं कि तुम क्या थे ...... डी एन जैन कालेज वाले अरविन्द सर से भी जानने की कोशिश की थी पर उनने मुझे बहला दिया था .. पर  तुम्हारे समकालीन बी एस  अधौलिया जी के बेटे डा. विनोद जी  ने मुझे बेहद स्नेह से तुम्हारे बारे में बताया था .. अदभुत सम्मोहन था तुममें  वो मुझमें भी है पर अभी ज्ञान कम है जो है वो सूचनाएं हैं उसे ज्ञान नहीं कहते परमपूज्य गुरुदेव शुद्धानंद जी ने जो ज्ञान दिया वो मानस में हैं पर उस कमरे में जिसका रास्ता मुझे नहीं नज़र आ रहा आएगा पर तब जब कि मेरे हाथ में टार्च होगी .. टार्च खरीदूंगा नहीं क्योंकि परसाईपुरा वाले हंसेंगें .. जमानी हरदा टिमरनी सिराली  सब आस पास तो हैं ही काहे अनावश्यक बैरभाव बढे आनंद से अमृतघट से अमृत छक लूं फिर टार्च बनालूँगा अथवा कंदील हाथ में लेके उस कमरे को खोज ही लूंगा . फिर उस कमरे में लुकछिप के गुम हो जाऊँगा .... सब सोचेंगे मर गया तब सच मैं ज्ञान के सागर में जल क्रीडारत पाउँगा खुद को .. 
तुम
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है 
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर 
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
                      चलते चलते एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि - दुनियाँ कायरों से अटी पड़ी है . सब कुछ अनुबंधित है ..... किसी को दर है कि उसके भगवान को दूसरा ख़त्म कर देगा तो कोई प्रतिक्रियावश गुर्राता है.. ऐसों के साथ अपना गुज़ारा संभव नहीं अब बेहतर है कि......... सम्पूर्ण शुद्धि हो ..... फिर सब के सब मिल कर पूछें - 
यदि तू ही है दाता 
तो बता कौन है तेरा दाता ?         

बेटी बचाओ के साथ साथ बेटी दुलारो भी कहना होगा डा कुमारेन्द्र सिंग सेंगर

रंगोली ने कहा ’’सेवगर्ल चाइल्ड‘‘

   जबलपुर / महिला सशक्तिकरण संचालनालय म0प्र0 शासन द्वारा संचालित संभागीय बाल भवन  द्वारा लाडो अभियान अंर्तगत आयोजित रंगों की उड़ान कार्यक्रम  अंर्तगत  जबलपुर में  उरई जिला जालोन (उत्तरप्रदेश), से पधारे बेटी-बचाओ अभियान (बिटोली कार्यक्रम के सूत्रधार एवं संचालक ) मुख्य अतिथि डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर   एवं ख्याति प्राप्त संगीत निर्देशक  अमित चक्रवर्ती की अध्यक्षता में रंगो की उड़ान अंर्तगत रांगोली प्रतियोगिता का  शुभारंभ किया गया ।
                                                          मुख्य अतिथि के रूप में  डा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर  ने बच्चों द्वारा बनायी गयी रांगोली की सराहना करते हुए कहा कि अब से तो बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ भ्रूण हत्या रोको  जैसे लाड़ो अभियान  कार्यक्रम म0प्र0 शासन द्वारा चलाए जा रहे है जो बेशक सराहनीय है। अब इसको आगे  बेटी को को प्यार करो  का नारा देना ही होगा। सांस्कृतिक तरीके  से बालभवन द्वारा जिस तरह शासकीय योजनाओं का प्रचार प्रसार करने  का प्रयास किया जा रहा है यह एक अनूठी कोशिश है जो बेहद सराहनीय है । अध्यक्षता करते हुए  श्री चक्रवर्ती जी  ने कहा कि  मुझे  छोटे छोटे  बच्चों की बड़ी बड़ी कोशिशें  बेहद अच्छी लगी । बच्चे रंग संयोजन में व्यस्त होते हुए  कहीं सामाजिक विषयों  भूण हत्या , कहीं लाड़ली लक्ष्मी पर बातें  कर रहे । बच्चो जब इस विषय पर बात कर रहे जो शासन के लिए यह बात सराहनीय कार्य है । 
उक्त प्रतियोगिता बाल भवन संचालक गिरीश बिल्लोरे  के दिशा निर्देशन  एवं चित्रकला अनुदेशिका रेणु पांडे के संयोजन में आयोजित की गयी । इस प्रतियोगिता में 180 बच्चों पुरूषों एवं महिलाओ के पंजीयन कराया बड़े उत्साह एवं उमंग के साथ प्रतियोगिता संपन्न हुई। इस कार्यक्रम मे बाल भवन की संगीत अनुदेशिका सुश्री शिप्रा सुल्लेरे, लोकनृत्य कार्यशाला प्रशिक्षक इन्द्रपांडे, खेल अनुदेशक देवेन्द्र यादव, संगतकार  सोमनाथ सोनी  मीना सोनी, टेकराम डेहरिया, एवं बाल भवन के सीनियर एल्युमीनियाई सदस्य शुभम जैन, अक्षय ठाकुर,   कु0 शालिनी अहिरवार, कु0 मनीषा तिवारी, रोहित गुप्ता, तरूण ठाकुर, यशी पचौरी, तान्या बड़कुल, सेजल तपा, मुस्कान सोनी, समीक्षा विश्वकर्मा, रिया ठाकुर का विशेष सहयोग रहा  ।


11.12.15

~~ लाड़ो अभियान अंतर्गत ~~ रंगो की उड़ान





                                      ~~ लाड़ो अभियान अंतर्गत ~~
रंगो की उड़ान
प्रतियोगिताओं हेतु प्रविष्टियों के लिए
आमंत्रण
आयोजक संचालक संभागीय
बाल-भवन
, महिला बाल विकास विभाग
( महिला सशक्तिकरण
संचालनालय )
गढ़ाफाटक जबलपुर
फोन 0761-2401584 ,
09479756905
, 07722902503, 8109666349, 09179700804
जबलपुर दिनांक 09/12/2015           
      रांगोली
प्रतियोगिता :- दिनांक
11 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
         समूह विभाजन
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए   
6
से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 4
                                                      ग्रुप )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए          6 से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
(
कुल 3 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए   
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए           18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
      पोस्टर  प्रतियोगिता :- दिनांक 16 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
          पोस्टर महिलाओं
एवं बच्चों के सकारात्मक विकास पर केन्द्रित हों । जैसे बाल-विवाह रोकने
लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें ।
               पोस्टर का आकार  हाफ इंपीरियर साइज़ 22 इंच गुना 14 इंच  के ड्राइंग शीट तैयार कर दिनांक 16 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक,
जबलपुर में जमा करनी होगी 
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए   
6
से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष 
                                                  
( कुल
4
ग्रुप )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए           6 से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
(
कुल 3 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए   
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक    ( कुल 01 ग्रुप )
      कार्टून
प्रतियोगिता :- दिनांक
17 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
          पोस्टर महिलाओं एवं
बच्चों के सकारात्मक विकास पर केन्द्रित हों । बाल-विवाह रोकने लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें । ।
पोस्टर का आकार  हाफ इंपीरियर साइज़
22 इंच गुना 14 इंच  के ड्राइंग शीट तैयार कर दिनांक 17 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक, जबलपुर में जमा करनी होगी ।
        
समूह (ग्रुप )
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 3 )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए      , 9 से 11,
12
से 16, ( कुल 2 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
      पेंटिंग  प्रतियोगिता :- दिनांक17 दिसंबर 2015 स्थान :- :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक,
जबलपुर
          बाल-विवाह रोकने
लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें ।.
प्रविष्टि का साइज़ हाफ-इंपीरियर आकार ड्राइंग शीट , 
      अंतिम-तिथि:-
दिनांक
17 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक, जबलपुर में जमा करनी होगी ।
        
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 3 )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए      , 9 से 11,
12
से 16, ( कुल 2 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
पुरस्कार एवं प्रशस्ति
              प्रत्येक वर्ग के प्रथम 05  प्रतिभागियों को समारोह में पदक
प्रशस्ति पत्र दिए जावेंगे
,
शेष 05 को प्रमाण-पत्र, दिए जावेंगे.तथा समस्त प्रविष्ठियों को
(रंगोली स्पर्धा को छोड़)  शेष सभी
श्रेणी कार्टून, पेंटिंग्स  एवं पोस्टर
, रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर में दिनांक 22-12-2015 से 23-12-2015 प्रदर्शित किया जावेगा  यहाँ यह स्पष्ट हो की प्रत्येक वर्ग से 10-10 श्रेष्ठ प्रतिभागी पुरस्कृत
होंगे जबकि सभी प्रतियोगिता  की श्रेष्ठ
10-10 प्रविष्टियों को प्रदर्शित किया जावेगा । साथ ही
प्रत्येक वर्ग से
प्रथम
10-10 चयनित प्रविष्ठियां  स्कैन  कराकर मध्यप्रदेश के अन्य  जिलों में योजनाओं के प्रचार-प्रसार हेतु
प्रयोग में लाए जाने हेतु आयुक्त
, महिला सशक्तिकरण
संचालनालय मध्य-प्रदेश भोपाल
, एवं संचालक  जवाहर बाल भवन भोपाल  सकेंगें जहां से चयनित होकर प्रदेश के सभी
जिलों  में चयनित कृति का अनुप्रयोग हो
सकता है ।
 

अन्य-नियम
1.   
प्रत्येक प्रतिभागी को अपना विवरण निर्धारित फ़ार्म में भरकर देना होगा
2.   
आयु वर्ग के अनुसार ही प्रतियोगिताओं भाग लीजिये, आयु की पुष्टि हेतु अपने फ़ार्म के साथ कोई प्रमाण अवश्य लगाएं 
3.   
प्रतियोगिता हेतु आवश्यक साधन जैसे रंगोली, कलर , शीट,
पेन्सिल, रबर आदि पर  स्वयं
ही व्यय करना होगा.
4.   
निर्णायक मण्डल का निर्णय सर्वमान्य होगा । .


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