14.7.15

चंद शेर : गिरीश"मुकुल"


बदला ? कोई सवाल   नहीं  क्या लेके करूंगा
दिल जीतने निकला हूँ, दिल जीत ही लूंगा ..!!
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मेरे तुम्हारे बीच में क्या रफ़्तार का नाता ?
तुम तेज़ी से आ रहे हो मैं पर्वत सा खडा हूँ
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आओ कहीं मिल बैठ के बचपन को पुकारें
आएगा क्या हम जैसा ही छिप जाएगा कहीं
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मेरी ख़ाक बिखेर देना  हरियाली ही मिलेगी  
फसले - बहार हूँ, कोई  सेहरा नहीं हूँ मैं  !!
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दामन पे मेरे दाग ! ज़रा बच के निकलना
षडयंत्र तुम्हें तुम्हारे  कहीं याद न आएं  ?

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आँखों में मेरी  झौंक गया किरकिरी सी रेत
फिर आके पूछता है ज़रा रास्ता बताइये ?

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आँखों की किरकिरी हूँ वज़ह कोई तो होगी 
जा गुलबकावली का अर्क खोज के ले आ !

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