भारत-रत्न :अक़्लवरों का आपसी मल्लयुद्ध का आसन्न है

 न जाने क्यों डर लगता है..मुझको अब सम्मानो से
डर के घर में छिप जाता हूं, अक्ल लगाने वालों से.
    जी हां ये पंक्तियां तब से ज़ेहन में घूम रहीं थीं जब से मैने भारत रतन के नाम पर बवाल होते देखा सुना. मन बेहद दु:खी और इन अक़्लवरों की समझ को लेकर आश्चर्यचकित है. देश को आगे ले जाने की क़वायद में जो अक़्ल लगनी चाहिये वो अक़्ल "भारत-रतन" पर लगाई जा रही है. बहुत अज़ीब-ओ-ग़रीब स्थिति है. श्रेष्ठता को लेकर विवाद कराती अक़्लें.. उस स्थिति की तरफ़ ले जा रहीं हैं.. जिधर कि अक़्लवरों के आपसी मल्लयुद्ध का रसास्वादन करेंगें..! 
 मेरी मानें भाई जी तो साफ़ साफ़ बता दूं कि श्रेष्ठता का कोई स्केल नहीं हो सकता .. 
श्रेष्ठता..
अनन्तिम है..
अनवरत है... 
सर्वत्र प्रशंसा की अभिलाषी नहीं ....
नाहक हम अक़्ल लगाए जा रहें हैं.. मित्रो एक शायर ने साफ़ साफ़ कह तो दिया था कि- अक़्ल हर चीज़ को ज़ुर्म बना देती है..! सच है क्या यक़ीन नहीं आ रहा कि अक़्ल वाक़ई यही परिणाम देती है तो लगाके देखिये. मेरा बेअक़्ल प्रस्ताव है कि क्यों न हम सभी भारतीय बेघर बेसहारा बच्चों को गोद लें उनको नाम दें भारत-रत्न या भारत-रत्ना   बस भारतरत्न सम्मान और अधिक प्रतिष्ठित हो जाएगा. 
चलिये सोचिये..मत अक़्ल भी मत लगाईये.. भारत के भाल को अनावश्यक न झुकाईये.. कुल मिला कर भारत के भाल को चमकाना हमारी ज़िम्मेदारी है.. अक़्लवालों की .. न जी न कभी नही नहीं..  

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