भैया बहुतई अच्छे हैं इसई लिये तो....


                भैया बहुतई अच्छे हैं इसई लिये तो....बस भैया की अच्छाईयों का डिंडोरा जो बरसों से पिट रहा था लोग बेसुध गोपियों के मानिंद मोहित से  भैया की बंसी के पीछे दीवाने से झूम उठते हैं . हमने पूछा भैया की अच्छाईयां गिनाओ तो मौन साध गए कुछ और कुछेक तो दूसरों की निंदा का पिटारा खोल बैठे. लोग बाग भी अजीब हैं हो सकता है कि मेरी सोच ही मिसफ़िट हो.. ? अरे भाई मिसफ़िट हो क्या है ही.... मिसफ़िट मेरी विचार शैली .
                  मुझमें वो दिव्य दृष्टि लगाई ही नहीं है भगवान ने जिससे में भैया को आईकान मान सकूं. ये मेरा मैन्यूफ़ेक्चरिंग डिफ़ेक्ट है. मुझे ऐसा एहसास हुआ . सो बस    शेव कराते वक्त ज्यों ही भैया की याद आई कि मेरे बाल भर जाड़े में कांटे से खड़े हो गये . कर्तनालय मंत्री को दाढ़ी साफ़ करने में कम मुश्किल पेश आई. 
            बाल कटवाते समय मुझे बुद्ध की तरह ज्ञान हुआ कि हिंदुस्तान में  के पास बात करने के विषय तय शुदा हैं.… सियासत, और निंदा  . जहां तक सियासत का सवाल है लोग खबरिया चैनल पर जारी बहसों को भी पीछे छोड़ देते हैं. और निंदा बाप रे बाप  जिसे वो जानते भी नहीं उसमें वे लाख बुराईयां गिना देते हैं. बाल कट ही रहे थे कि एक सज्जन ने भैया की तारीफ़ में सुर छेड़ा.. हमने पूछा भैया वाकई अच्छे हैं ... तुम साबित करो कि क्यों अच्छे हैं.. एकाध उदाहरण बता दो भैया..?
     
कभी खुद को देखिये
छवि श्री असीम दुबे 
 भाई को मानो सांप सूंघ गया वो भैया के समानांतर वाले व्यक्ति की निंदा करने लगे . हमने कहा भाई, ये भी सही है कि कल्लू का पूरा खानदान ही बुरा है.. पर बताओ "भैया में अच्छाईयां क्या हैं..?"
  वास्तव में नई संचार क्रांति का यही सबसे दुविधा जनक पहलू है कि लोग अक्सर अच्छी पाज़िटिव खबरों से दूर हैं.  आम आदमी (केज़री बाबू वाला नहीं वास्तविक आम आदमी ) अपने अलावा दूसरों को भ्रष्ट मानते हुए खुद को व्यवस्था से पीढ़ित मानता है किंतु जब उसकी बारी आती है तो अपना ऊल्लू सीधा करने कोई भी रास्ता अपनाने में हेटी नहीं खाता. 
     एक सज्जन पेशे से कलमकार हैं सच उनसे मेरा दूर तक कोई नता नहीं वे मुझे जानते भी नहीं एक बार संयोगवश मिले मुझे एक खास समूह से जुड़ा होने की खबर सुनते ही बोले -"भाई, आपके संस्थान में फ़लां आदमी (मेरा नाम लेकर ) बहुत बदमाश है." हम मौज में आ गये परिचय कराने वाला मित्र अपना पसीना पौंछ रहा था .और हमने मौज लेते हुए पूछा-"भाई कभी उस बदमाश से मिले हो ?"
महानुभाव बोले- ऐसे लोगों से मिलना खुद की बेईज्जती करवाना है भाई सा’ब.. !
हम - एकाध बार मिल लेते तो अच्छा होता . आप उसकी अकल ठिकाने लगा देते आप जैसे महानुभावों की वज़ह से उनमें शायद कोई सुधार आ जाता !
महानुभाव बोले-"अरे भाई क्या दुनिया भर को सुधारने का ठेका हम लिये हैं..?"
हम - "लेकिन अनजाने व्यक्ति की निंदा अथवा किसी की बुराई करने का हक किसे होता है..?
"
           महानुभाव के पास ज़वाब न था उनके चारों खाने चित्त होते ही हमने फ़ट से अपना सरकारी आई.कार्ड निकाला . भाई भौंचक अवाक से हमारा मुंह तकते रह गये. उनकी तरह "दर्ज़ा-ए-लाचारी" भगवान किसी को भी न दे हमने उनके जाते समय बस एक बात कही मित्र .. जितनी नकारात्मक्ता होती है उतना ही हम असलियत से भागते हैं.. सचाई को जानिये फ़िर राय कायम कीजिये. 
                        मित्रो, सच तो ये है कि दुनिया अब मौलिक चिंतन और  मौलिक सोच से दूर होती जा रही है.  जो आप पढ़ते या सुनते हैं वो सूचनाएं हैं जिसको सत्य मानना या न मानना आपकी बौद्धिक कसौटी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है.. किसी के प्रति यकायक सकारात्मक  अथवा नकारात्मक राय बनाने से पेश्तर बुद्धि की का स्तेमाल करिये वरना अनर्गल वक्तव्य जारी मत कीजिये ... तब तय कीजिये कि भैया अच्छे हैं या बुरे .. अच्छे हों तो उनके प्रवक्ता बनना ज़रूरी नहीं बुरे हों तो उनको गरियाना मूर्ख होने का संकेत है.. कुल मिला कर शांत किंतु प्रखर सौम्यता आपके लिये आत्मोत्कर्ष का मार्ग खोलेगा आपके बच्चे विद्वान होंगे..और आप यशश्वी ... वरना वरना आप में और ज़ाहिल-गंवार में कोई फ़र्क रहेगा क्या..?    क्योंकि हर बुरे व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई और हर अच्छे व्यक्ति में कुछ न कुछ बुराई अवश्य होती है.. जिनके साथ हमको गुज़ारा करना होता है.. अस्तु .. शांति शांति          

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