सर्वदा उदार प्रेयसी है वो..!!

छवि: साभार-बीबीएन
 मृत्यु तुमसे भेंट तय है. तुम से  इनकी उनकी सबकी   भेंट भी तय है. काल के अंधेरे वाले भाग में छिप कर बैठी है अनवरत लावण्या  तुम्हारी प्रतीक्षा है मुझे. अवशेष जीवन के निर्जन प्रदेश में अकेला पथचारी यायावर मन सहज किसी पर विश्वास नहीं कर पाता. सब कुछ उबाऊ जूना सा पुराना सा लगता है. 
                मदालस-अभिसारिका यानी मृत्यु सामने होती हो तो सब के सब सही सही  और बेबाक़ी से बयां हो जाता है. कुछ तो तुम्हारे सौंदर्य से घबरा जाते हैं.. हतप्रभ से अवाक अनचेते हो जाते हैं. उसके आलिंगन से बचने बलात कोशिशों में व्यस्त बेचारे क्या जाने कि जब मृत्यु आसक्त हो तब स्वयं विधाता भी असहाय होता है..कुछ न कर सकने की स्थिति में होता है  सुन नहीं पाता रिरियाती-याचना भरी आवाज़ों को . सच्चा प्रेमी कभी भी मृत्यु से भयातुर नहीं होता न ही बचाव के लिये विधाता को पुकारता है. बस  नि:शब्द बैठा अपलक  पास आते तुम्हारे मदिर लावण्य को निहारता है.और जब क़रीब आती है तो बस कुछ खो कर बहुत कुछ पाने का एहसास करता हो जाता है बेसुध.. अभिसाररत.. 
       कोई भी बात अधूरी नहीं रहती उस के मन में.. न ही वो किसी  का विरही होता है न ही  किसी के लिये अनुराग बस वो तुम्हारे मादक-औदार्य-सौंदर्य का रसास्वादन करने बेसुध हो जाने को बेताब होता है.
          प्रेयसियां सहचरियां उतनी उदार नहीं होतीं जितना कि तुम सब के लिये सहज सरल कभी भी स्वगत... न कभी भी नहीं.
          मुझे ऐसी ही सर्वदा उदार प्रेयसी की प्रतीक्षा है.. जो बिना किसी दुराव के मुझे अपने में समाहित कर ले. अवश्य आएगी तब तुम न रोना हां तुम भी न सुबकना.. अरे ये क्या तुम अभी से सुबकने लगे .. न ऐसा न करना.. मेरी अनंत-यात्रा में तुम दु:खी हो .. ? कभी तो मेरे बिना जीवन को स्वीकारो.  वीतरागी भाव का वरण करोगे न जन मेरी चिता की लपटें आकाश छूने की असफ़ल कोशिश करेंगी. अवश्य ऐसा ही होगा तुम्हारे मन में एक बैरागी उभरेगा तत्क्षण.. तो फ़िर नाहक रोना धोना मत. मैं  उस नायिका के साथ रहूंगा जो  सर्वदा उदार प्रेयसी है वो..!!

टिप्पणियाँ

मुझे ऐसी ही सर्वदा उदार प्रेयसी की प्रतीक्षा है.. जो बिना किसी दुराव के मुझे अपने में समाहित कर ले. अवश्य आएगी तब तुम न रोना हां तुम भी न सुबकना.. अरे ये क्या तुम अभी से सुबकने लगे .. न ऐसा न करना.. मेरी अनंत-यात्रा में तुम दु:खी हो ...
अद्भुत... अनुपम उद्गार
Sunita Sharma ने कहा…
कोई भी बात अधूरी नहीं रहती उस के मन में.. न ही वो किसी का विरही होता है न ही किसी के लिये अनुराग बस वो तुम्हारे मादक-औदार्य-सौंदर्य का रसास्वादन करने बेसुध हो जाने को बेताब होता है.
प्रेयसियां सहचरियां उतनी उदार नहीं होतीं जितना कि तुम सब के लिये सहज सरल कभी भी स्वगत... न कभी भी नहीं.
कहो जो कहना है आज खुलके
तुम्हारी कीमत करूंगा दुगनी.....
............................. itni sunder post ke tarif ke liye shabd kam pad rhe hai ...badhai...
बहुत अच्छा लिखा है...

नीरज

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