ओबामा के पुनर्निर्वाचन का तुरुप का पत्ता तेहरान के पास है :डैनियल पाइप्स ( हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी)


15 दिसम्बर को इराक में औपचारिक रूप से युद्ध की समाप्ति के पश्चात पडोसी ईरान 2012 के अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव में एक प्रमुख अनिश्चित तत्व हो गया है।
पहले सिंहावलोकन कर लें: 1980 में ईरान के मुल्लाओं को अमेरिकी राजनीति प्रभावित करने का अवसर पहले ही प्राप्त हो चुका है। तेहरान में अमेरिकी दूतावास को 444 दिनों तक बंधक बनाने से राष्ट्रपति जिमी कार्टर के पुनर्निर्वाचन के अभियान को गहरा धक्का लगा था इसके साथ ही कुछ अन्य घटनाक्रम के चलते जैसे बंधकों को छुडाने का असफल प्रयास और एबीसी चैनल द्वारा America Held Hostage कार्यक्रम के प्रसारण ने उनकी पराजय में योगदान किया। अयातोला खोमेनी ने कार्टर की सम्भावनाओं को धता दिया कि आश्चर्य ढंग से बंधकों को अक्टूबर में मुक्त करा लिया जाये और रही सही कसर तब पूरी कर दी जब रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय ही इन बंधंकों को मुक्त कर दिया।
आज एक बार फिर ओबामा के पुनर्निर्वाचन में ईरान की दो प्रमुख भूमिका है एक तो इराक में बाधक की भूमिका या फिर अमेरिका के आक्रमण का शिकार बनना। आइये दोनों पर ही विचार करते हैं।
किसने इराक गँवाया? हालाँकि जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने इराकी सरकार के साथ इस बात का समझौता किया था कि , " 31 दिसम्बर 2011 तक अमेरिका की सारी सेना इराकी राज्यक्षेत्र से बाहर चली जायेगी" ओबामा द्वारा यह निर्णय लेने से कि कोई भी पूरक सेना भी इराक में शेष नहीं रहेगी पूरी तरह से उनका निर्णय और उनका बोझ था। इससे उन पर जोखिम बढ गया है यदि 2012 तक इराक में स्थितियाँ बुरी होती हैं तो इसके लिये निंदा का पात्र बुश को नहीं उनको बनना होगा। दूसरे शब्दों में ईरान के शीर्ष मार्गदर्शक अली खोमेनी ओबामा का जीना दुश्वार कर सकते हैं।
खोमेनी के पास अनेक विकल्प हैं: वे उन अनेक इराकी नेताओं के ऊपर अपना दबाव बढा सकते हैं जो कि शिया इस्लामवादी हैं और ईरान समर्थक भाव रखते हैं और उनमें से कुछ तो ईरान में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उदाहरण के लिये प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी इस श्रेणी में पूरी तरह योग्य हैं। ईरान अपने देश की खुफिया सेवा के माध्यम से भी इराक की राजनीति को प्रभावित कर सकता है जिसमें कि उनका प्रवेश काफी हद तक हो भी चुका है। या फिर अब हजारों हजार की अमेरिकी सेना के इराक के उत्तरी सीमा से चले जाने के बाद वे अपनी मनमर्जी से इराक में सेना भेज कर किसी भी शरारतपूर्ण कृत्य में लिप्त हो सकते हैं। अंत में वे मुक्तदा अल सद्र जैसे अपने छ्द्म संगठनों को सहयोग कर सकते हैं या फिर आतंकवादी एजेंट को भेज सकते हैं।
1980 में ईरानियों ने बंधक बनाकर अमेरिका की राजनीतिक प्रकिया में हस्तक्षेप किया था अब 2012 में इराक उनके लिये अवसर प्रदान करता है। यदि ईरान के शासक 6 नवम्बर से पहले समस्या उत्पन्न करते हैं तो रिपब्लिकन प्रत्याशी " इराक को गँवाने" के लिये ओबामा को दोष देंगे। ओबामा द्वारा लम्बे समय से युद्ध का विरोध करना उनके लिये भारी पडेगा।( इसके विकल्प के तौर पर ईरानी अपना रुख बदल कर अपनी धमकी को चरितार्थ कर हारमुज के जलडमरूमध्य को रोक सकते हैं जिस जलमार्ग से विश्व का 17 प्रतिशत तेल जाता है और इस प्रकार वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं).मुल्लाओं ने 1980 में कमजोर होते डेमोक्रेट को क्षतिग्रस्त किया था और वे इस बार भी ऐसा कर सकते हैं या फिर उन्हें यह लगे कि ओबामा उनकी रुचि के हैं और ऐसे किसी प्रयास से स्वयं को बचा लें। मुख्य बिंदु यह है कि सेना की वापसी ने उन्हें अतिरिक्त विकल्प दे दिया है। ओबामा को चुनावों के बाद तक सेना को रोकना चाहिये था ताकि बाद में वे आत्मविश्वास पूर्वक कह पाते कि " मैंने वह सब किया जो कर सकता था" । 
               ईरानी परमाणु पर बम गिराओ? प्रायः दो वर्ष पूर्व जबकि ओबामा के पास अमेरिकावासियों के मध्य लोकप्रियता +3 प्रतिशत थी तब भी मैंने सुझाव दिया था कि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी आक्रमण से ओबामा के कार्यकाल के निष्प्रभावी पहले वर्ष की यादें स्मृतिपटल से हट जायेंगी और घरेलू राजनीति का परिदृश्य बदल जायेगा जो कि उनके हित में रहेगा। एक ही कार्य के द्वारा वे अमेरिका को एक खतरनाक शत्रु से मुक्ति दिला सकते है और चुनावी प्रतिस्पर्धा को नया स्वरूप दे सकते हैं। " इससे स्वास्थ्य कल्याण का मुद्दा अलग चला जायेगा और रिपब्लिकन भी डेमोक्रेट के साथ कार्य करने को विवश होंगे, इससे सोशल मीडिया वाले राजनीतिक कार्यकर्ता भौचक रह जायेंगे, निर्दलीय पुनर्विचार को बाध्य होंगे और कंजर्वेटिव खुशी से पागल हो जायेंगे"। अब जबकि ओबामा कि लोकप्रियता ‌‌‌‌-4.4 प्रतिशत तक गिर गयी है और चुनावों में एक वर्ष से भी कम समय बचा है तो ईरान पर बम गिराने के उनके उपाय की महत्ता अधिक बढ गयी है और यह ऐसा बिंदु है जिसकी चर्चा सार्वजनिक रूप से अमेरिका के अनेक वर्ग के लोगों ने की है ( सराह पालिन, पैट बुचानन, डिक चेनी, रोन पाल, इलिओट अब्राम्स, जार्ज फ्रीडमैन, डेविड ब्रोडर, डोनाल्ड ट्र्म्प)। स्वास्थ्य कल्याण, रोजगार और ऋण का प्रस्ताव राष्ट्रपति के लिये अधिक सम्भावना लेकर नहीं आते , वामपंथ पूरी तरह निराश है और स्वतन्त्र मतों को अपनी ओर किया जा सकता है। वर्तमान स्थिति में प्रतिबंध और ड्रोन को लेकर चल रही मुठभेड केवल ध्यान बँटाने का कार्य है ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर 2012 के प्रथम चरण में आक्रमण की सम्भावना दिखती है और यह समय अमेरिका में चुनावों के निकट है यह तो स्वतः स्पष्ट है। निष्कर्ष यह है कि खोमेनी और ओबामा दोनों एक दूसरे के लिये समस्यायें खडी कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो ईरान और इराक राष्ट्रपति चुनाव में आवश्यकता से अधिक बडी भूमिका निभायेंगे और तीस वर्षों से अमेरिकी राजनीति के लिये एक समस्याग्रस्त शिशु की इनकी भूमिका जारी रहेगी।

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