6.7.11

बाप कर्ज़दार न हो शराब के ठेके के..

 सैलानियों ने देखी नर्मदा की ताक़त 
खूबसूरत संग-ए-मरमरी रास्ता
नर्मदा का...
खूबसूरत पहाड़ियां 
अठखेलियां करती नर्मदा की लहरें
उसी नर्मदा में
जो जीवन दात्री है
मेरी तुम्हारी हम सबकी
सच 
यहीं नर्मदा की भक्ति से सराबोर
आस्थाएं 
बह बह कर आतीं हैं..
नारियलों के रूप में 
उस सफ़ेद पालीथिन में
समेट लाते हैं ये नंगे-अधनंगे बच्चे
स्कूल से गुल्ली मार के
देर शाम तक बटोरे नारियल
बनिये को बेच 
धर देते हैं हाथ में
बाप के पैसे जो नारियल बेच के लातें हैं
ताकि
बाप कर्ज़दार न हो 
शराब के ठेके के.. 


5 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

दादा ठेके पर उधारी नही, नगदी मिलती है।
उधारी दोस्तों से की होती है, यहाँ सिर्फ़ नगदी ही चलती है।

बढिया कविता।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

achhi rachna

बेनामी ने कहा…

ये जीवन है ....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

नर्मदा के पानी से नारियल बटोरने वाले बच्चों पर बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

Roshi ने कहा…

baal shram ki sateek rachna

Wow.....New

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