भारत में आतंकवादियों को सज़ा के लिये लम्बी प्रकिया से एक ओर समूचा हिंदुस्तान हताश है तो दूसरी ओर आतंकवाद को शह मिल रही है , तो इस मसले को गर्माए रखने के लिये काफ़ी है.यह सवाल भी भारतीय व्यवस्था के सामने है कि क्या आतंकवादीयों के लिये ऐसे क़ानून नहीं बनाए जा सकते जिससे उनका तुरंत सफ़ाया हो सके. अब कसाब को ही लीजिये राजेश चौधरी (नवभारत-टाइम्स) की माने तो दस बरस और ज़िंदा रह सकता है कसाब ..? यदी आम आदमीयों से ज़्यादा ज़रूरी है कसाब का जीना तो होने दीजिये धमाके हमारी कीमत की क्या है. फ़िर दाग दीजिये एक जुमला "हम आतंकियों को नहीं छोड़ेंगे " हम अपनी व्यवस्था के दयालू होने की क़ीमत भी चुका देंगे...आपके इस भारतीय-फ़लसफ़े को नुकसान न पहुंचाएंगे. क्योंकि आप को हमारी बड़ी चिंता है जिसका उदाहरण ये भी है. हम तो वोट हैं जो एक टुकड़ा है कागज़ का, हम तो बाबू,मास्टर,स्कूली बच्चे, मिस्त्री, मुंशी, वगैरा वगैरा, हमारी कीमत ही क्या है.. हो जाने दो हमारी देह को चीथड़ों में तक़सीम किसी हम जो रोटी के लिये पसीने को बहा देना अपना धर्म मानते हैं हम जो तुम सब की नीयत को पहचानते ह