20.3.11

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना
या जोगी पहचाने फ़ागुन , हर गोपी संग दिखते कान्हा
रात गये नज़दीक जुनहैया,दूर प्रिया इत मन अकुलाना
सोचे जोगीरा शशिधर आए ,भक्ति - भांग पिये मस्ताना
प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी,लख टेसू न फ़ूला समाना
डाल झुकीं तरुणी के तन सी, आम का बाग गया बौराना
जीवन के दो पंथ निराले,कृष्ण की भक्ति अरु प्रिय को पाना
दौनों ही मस्ती के पथ हैं , नित होवे है आना जाना--..!!
चैत की लम्बी दोपहरिया में– जीवन भी पलपल अनुमाना
छोर मिले न ओर मिले, चिंतित मन किस पथ पे जाना ?
गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

होली में चेहरा हुआ, नीला, पीला-लाल।
श्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१।

महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल।
होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२।

हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल।
होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३।

कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल।
टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४।

--

रंगों के पर्व होली की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

अनुभूति ने कहा…

आदरणीय , गिरीश जी
होली की इस खुबसूरत और भक्ति और स्नेह से भरी कविता का एक एक शब्द बेहद खुबसूरत हैं |
सुन्दर प्रस्तुती
होली की आप के पुरे परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं |

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

डाल झुकीं तरुणी के तन सी, आम का बाग गया बौराना
जीवन के दो पंथ निराले,कृष्ण की भक्ति या प्रेम को पाना ....

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...बहुत सुन्दर उपमाएं...
भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !

Rahul Singh ने कहा…

कृष्‍ण की भक्ति और प्रेम का पाना तो समानार्थी महसूस हुआ यहां.

Dr Varsha Singh ने कहा…

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना
या जोगी फ़ागुन पहचाने , हर गोपी संग दिखते कान्हा...

भक्ति और प्रेम के संयोग पर फागुनमयी सुन्दर अभिव्यक्ति...
हार्दिक बधाई...

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