प्रीत की तुम मथानी ले मेरा मन मथ के जाती हो


प्रीत की तुम मथानी ले  मेरा मन मथ के जाती हो
कभी फ़िर ख्वाब में  आके  मुझे  ही  थपथपातीं हो !
क़िताबों में तुम्हीं तो हो ,दीवारों पे तुम्ही तो हो -
बनके  मीठी  सी  यादें तुम मन  को  गुदगुदातीं हो..!
विरह की पोटली ले के कहो अब मैं किधर जाऊं
आ भी जाओ कि क्यों कर तुम मुझे अब आज़माती हो


 

टिप्पणियाँ

Dr Varsha Singh ने कहा…
क़िताबों में तुम्हीं तो हो ,दीवारों पे तुम्ही तो हो -
बनके मीठी सी यादें तुम मन को गुदगुदातीं हो..!

सुन्दर कविता.. बेहद कोमल रचना और भाव !

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्यों लिखते हैं दीवारों पर - "आस्तिक मुनि की दुहाई है"

विमर्श

सावन के तीज त्यौहारों में छिपे सन्देश भाग 01