हिंदी ब्लागिंग पर प्रतिबंध और ब्लागर्स की ज़िम्मेदारी...!
समीरलाल |
बिजनेस अखबार ‘इकानॉमिक्स टाइम्स’ के हिंदी संस्करण की यह खबर कितनी सही है इस पर सरकार की ओर पुष्टि ले लेना भी ज़रूरी है. अभी कुछ भी कयास लगाना ज़ल्दबाज़ी है पर इसका आशय यह नहीं कि हम सब कुछ भूल जाएं... हम ब्लागर्स को इसी आधार पर सरकार को रोज एक पोस्ट लिखकर , ब्लागर्स मीट के ज़रिये एवम प्रेस-विज्ञप्तियां जारी करके,अपने अपने शहर में जिला कलैक्टरों को ज्ञापन सौंप कर अपना विरोध जता देना ज़रूरी है.
यदि सरकार ऐसा करती है तो सेवा-प्रदाता के ज़रिये नकेल कसी जायेगी ब्लागर्स की. तय यह पाया जाता है क़ि सर्वसाधारण को बोलने की इजाज़त एवं अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त प्लेटफ़ार्म न मिले . अब आप बताएं आम ब्लॉगर कोई विकीलीक्स तो नहीं है जो क़ि उससे भयाक्रांत रहा जावे. सरकार के मानस में यह क्यों जबकि आम ब्लॉगर सिर्फ कविता कहानी आलेख जो अखबारों,पत्र-पत्रिकाओं में भेजते हैं उसे ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहे हैं . फिर किसके इशारों पर हो रही है यह हरकत . सरकार को इस मामले में खुलासा करना चाहिये कि किन परिस्थियों में सरकार यह क़दम उठा रही है . मुझे वर्धा सम्मेलन की रिकमंडेशन याद आ रहीं हैं कि हिंदी ब्लागिंग के लिये एक आदर्श आचार संहिता होनी चाहिये . यह बात वास्तव में ग़ैर ज़रूरी थी. ऐसा विचार व्यक्त करने वाले तथा सरकार यह जान ले कि क्या मौज़ूदा क़ानून से अश्लील,उत्तेज़क,गुमराह करने वाले अराजक आलेखों, प्रस्तुतियों को प्रतिबंधित आसानी से किया जा सकता है.
एक ओर हम ब्लागर्स हिंदी से नेट को ढंक देना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसी खबर, जी हां यह खबर निश्चित ही हमारे एक जुट होने के मार्ग तैयार कर रही है. समय आ गया है कि सारे ब्लागर्स एक जुट होकर पुरजोर विरोध करें. ... सरकार के ऐसे अलोकतांत्रिक-प्रयास का. इस हेतु हमें प्रिंट,इलैक्ट्रानिक मीडिया से सहयोग की अपेक्षा है.
ललित शर्मा के अनुसार :-"मध्यवर्ती संस्थाओं के टर्म का दायरा ब्लॉगर तक बढाने के पीछे तर्क यह है कि जिस तरह इंटरनेट प्रोवाईडर संस्थाएं पाठक को इंटरनेट से जोड़ती हैं उसी तरह ब्लॉग पर लिखे गए लेख भी पाठकों को अपने तक जोड़ते हैं। ब्लॉग स्वामी किसी के खिलाफ़ व्यक्तिगत आरोप आक्षेप वाली पोस्ट लगाता है और पाठक जब ब्लॉग पर अपमानजनक, अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होगा। इसके लिए ब्लॉग स्वामी को मध्यवर्ती संस्था मान कर कानून के दायरे में लाया जा रहा है।
(पूरा आलेख इधर देखिये)
इस पोस्ट के तैयार करते समय न्यू-मीडिया-एक्सपर्ट कनिष्क कश्यप से बात हुई उनका कहना है :-"खबर ग़लत है, क्या मछलियों को समन्दर में कूदने से रोकने का का़नून बन तो सकते है पर मछलियों को रोका नहीं जा सकता "
दिल्ली के ब्लागर खुशदीप सहगल ने अपनी दो टूक राय ज़ाहिर करते हुये कहा कि:-"जी, सायबर क़ानूनों की मज़बूती के लिये एक बिल पेश हो रहा है जिसके प्रावधानों की परिधि में ब्लाग को लाया जावेगा. जो धर्मोंमादक, भड़काऊ ब्लाग पोस्ट तथा उस पर आने वाली टिप्पणियों प्रतिबंधित करने हेतु ज़िम्मेदारी तय की जावेगी."
सहगल जी ने आगे बताया:-"धर्माधारित विषयों पर विवादस्पद आलेखन करने वाले ब्लागर्स तथा अभद्र टिप्पणीयों की ज़िम्मेदारी ब्लाग संचालक की ही होगी. "
खुशदीप जी की बात से अधिक स्पष्टता मिली कि " उत्तेज़क ब्लागिंग प्रतिबंधित करने की कोशिश की जा रही है..? "
किंतु मौज़ूदा क़ानूनों में प्रावधानों की उपलब्धता है.इन सबको रोकने के लिये. इससे सदाचारी ब्लागर्स के लेखन पर असर होगा. इस बात का विरोध होना ही चाहिये.
इस बात पर खुशदीप जी का मत है कि :-"अवश्य होना चाहिये, किंतु हम ब्लागर्स को भी वर्जित विषयों पर लेखन गाली-गलौच भरी टिप्पणीयों से बचना ज़रूरी है."
ललित शर्मा |
ललित शर्मा के अनुसार :-"मध्यवर्ती संस्थाओं के टर्म का दायरा ब्लॉगर तक बढाने के पीछे तर्क यह है कि जिस तरह इंटरनेट प्रोवाईडर संस्थाएं पाठक को इंटरनेट से जोड़ती हैं उसी तरह ब्लॉग पर लिखे गए लेख भी पाठकों को अपने तक जोड़ते हैं। ब्लॉग स्वामी किसी के खिलाफ़ व्यक्तिगत आरोप आक्षेप वाली पोस्ट लगाता है और पाठक जब ब्लॉग पर अपमानजनक, अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होगा। इसके लिए ब्लॉग स्वामी को मध्यवर्ती संस्था मान कर कानून के दायरे में लाया जा रहा है।
(पूरा आलेख इधर देखिये)
कनिष्क कश्यप |
दिल्ली के ब्लागर खुशदीप सहगल ने अपनी दो टूक राय ज़ाहिर करते हुये कहा कि:-"जी, सायबर क़ानूनों की मज़बूती के लिये एक बिल पेश हो रहा है जिसके प्रावधानों की परिधि में ब्लाग को लाया जावेगा. जो धर्मोंमादक, भड़काऊ ब्लाग पोस्ट तथा उस पर आने वाली टिप्पणियों प्रतिबंधित करने हेतु ज़िम्मेदारी तय की जावेगी."
सहगल जी ने आगे बताया:-"धर्माधारित विषयों पर विवादस्पद आलेखन करने वाले ब्लागर्स तथा अभद्र टिप्पणीयों की ज़िम्मेदारी ब्लाग संचालक की ही होगी. "
खुशदीप जी की बात से अधिक स्पष्टता मिली कि " उत्तेज़क ब्लागिंग प्रतिबंधित करने की कोशिश की जा रही है..? "
किंतु मौज़ूदा क़ानूनों में प्रावधानों की उपलब्धता है.इन सबको रोकने के लिये. इससे सदाचारी ब्लागर्स के लेखन पर असर होगा. इस बात का विरोध होना ही चाहिये.
इस बात पर खुशदीप जी का मत है कि :-"अवश्य होना चाहिये, किंतु हम ब्लागर्स को भी वर्जित विषयों पर लेखन गाली-गलौच भरी टिप्पणीयों से बचना ज़रूरी है."
टिप्पणियाँ
इस हिसाब से तो, सड़क पर दुर्घटना में मारे जाने वाले व्यक्ति की मौत के अपराध में, सड़क बनाने वाले को फांसी हुआ करेगी..
हम्म्म ...
अच्छा है. बहुत अच्छा है रे सांभा...
बहुत सी जानकारियां बिल्कुल नई हैं.... इनके बारे में सबको जानकारी होनी ज़रूरी है......
wah bloggers ka kiya karagee......
jai baba banaras
जय हिंद...