पराजित होती भावनाएं और जीतते तर्क


मानव जीवन के सर्व श्रेष्ट होने के लिये जिस बात की ज़रूरत है वो सदा से मानवीय भावनाएं होतीं हैं.  किंतु आज के दौर में जीवन की श्रेष्ठ्ता का आधार मात्र बुद्धि और तर्क ही है न कि हृदय और भावनाएं.....!!
   जो व्यक्ति भाव जगत में जीता है उसे हमेशा  कोई भी बुद्धि तर्क से पराजित कर सकता है. इसके सैकड़ों उदाहरण हैं.
बुद्धि के साथ तर्क विजय को जन्म देते हैं जबकि हृदय भाव के सहारे पाप-पुण्य की समीक्षा में वक्त बिता कर जीवन को आत्मिक सुख तो देता है किंतु जिन्दगी की सफ़लता की कोई गारंटी नहीं...
    जो जीतता है वही तो सिकंदर कहलाता है, जो हारता है उसे किसने कब कहा है "सिकंदर"
                                                आज़ के दौर को आध्यात्म दूर  करती है  बुद्धि जो "स-तर्क" होती है यानि सदा तर्क के साथ ही होती है और  जीवन को विजेता बनाती है, जबकि भावुक लोग हमेशा मूर्ख साबित होते हैं.जीवन है तो बुद्धि का साथ होना ज़रूरी है. सिर्फ़ भाव के साथ रिश्ते पालने चाहिये. चाहे वो रिश्ते ईश्वर से हों या आत्मीयों से सारे जमाने के साथ भावात्मक संबन्ध केवल दु:ख ही देतें हैं. भावात्मक सम्बंध तो हर किसी से अपेक्षा भी पाल लेतें हैं  अपेक्षा पूर्ण न हो तो दु:खी हो जाते हैं. जबकि ज़रूरी नहीं कि आपसे जुड़े सारे लोग आपके ही हों ? 
आप मैं हम सब जो भावों के खिलाड़ी हैं .... बुद्धि का सहारा लें तो हृदय और जीवन दोनों की जीत होगी 

टिप्पणियाँ

यह विषय ऐसा है कि इसे किसी भी तरह समझाया जा सकता है। कभी लगता है कि जिस के पास केवल भावनाएं हैं वह सुखी रहता है। जब तर्क आने लगता है तब वह निष्‍पाप नहीं रहता।
Archana Chaoji ने कहा…
चिंतन .....जारी है ...
नो कमेन्टस क्योंकि मुझे इन मामलों में कुछ समझ नहीं आता...
Sushil Bakliwal ने कहा…
ये तो दिल और दिमाग का रिश्ता है और समझदार लोग दिमाग को आगे रखकर ही जीते हैं ।
Rahul Singh ने कहा…
वस्‍तुतः भावना और तर्क के उचित समन्‍वय से ही सफलता और संतुष्टि मिलती है.

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