सर्किट हाउस भाग:-तीन ( अध्याय एक : समापन किश्त)

{अभी तक आपने पढ़ा सर्किट-हाउस भाग एक तथा  भाग दोअब आगे )

दीपक जी चाय पिला रहें है इस बात की खबर  बोपचे साब को मिली तुरंत पहुंच गये सलामी देने
अरे भई ,सक्सेना जी, कैसे सुबह सुबह ?
नमस्कार,अपर-संचालक महोदय आ रहें हैं आप कैसे ..?
बोपचे ने मैडम को सर-ओ-पा भरपूर निहारते हुए  कहा:- बस हम भी ऐसे ही मंत्री जी के पी ए का साला और उसकी पत्नी आ रहे हैं. उनको तेवर में माता जी के दरबार में कोई मनता पूरी करनी है सो हम आए हैं चाकरी को . अब बताएं हमारे कने कौन सा गाड़ी घोड़ा है जो ये सब करतें फ़िरें. फ़िर भी ससुरे छोड़ते कहां हैं..?
जी सही कहा..! मैडम और दीपक ने हां हुंकारा किया. तभी अब्राहम चाय लेकर आया पी एस सी सलैक्टेट अर्दली था सो समझदारी से दो की जगह चार चाय ले आया.
बोपचे:- ई अब्राहम बहुतई काम के अफ़सर हैं बहुत बढ़िया चाय ले आये गुप्ता कने से लाए हो का…?
“हां, सर ” अब्राहम बोला
अरे भई सक्सेना जी, बड़े भाग तुम्हारे जलवे दार विभाग मिला है- गाड़ी घोड़ा, अपरासी-चपरासी, और……..!
दीपक : ( बोपचे इस और को परिभाषित न कर दे  इस भय से ) और क्या विभाग की बदौलत चुनाव में हार जीत होती है कौन सरकार इसे हरा न  रखेगी … बताईये   कोई और सेवा हो तो
अरे वाह दीपक जी सेवा क्या बस गाड़ी की झंझट है..? आज़ बस के लिये.
ठीक है, किये देता हू व्यवस्था..दीपक के लिये  अच्छा मौका था गिरी को रगड़ने का मोबाईल लगाया उधर फ़ोन उठते ही :- ’नमस्ते नमस्ते कैसे हो अच्छा एक काम करना दस बजे सर्किट हाउस में गाड़ी भेज देना क्यों बोप…
बोपचे : न भाई नौ बजे ठीक नौ बजे
दीपक:- यार दस नहीं नौ बजे डाट नौ बजे हां बोपचे साब के पास गाड़ी भेज देना ? क्या , ड्रायवर नहीं आएगा ? अरे सरकारी काम है बुलाओ साले को . हम भी तो सन डे को खट रये हैं क्या बीवी बीमार है उसकी ..? तो  मैं क्या करूं प्रायवेट लगा के भेजो कुछ खर्च कर लिया करो जानते नहीं “प्रौढ़ शिक्षा मंत्री” के रिश्तेदार आने हैं. बेचारे बोपचे जी ने कहा है,पहली बार. बात ज़्यादा न बढ़ाते हुये फ़ोन काटते ही बोपचे से बोला:- ये स्साला गिरी जो है न इतने कानून बताता है कि संविधान की संरचना करने वाले का अवतार हो ? साला नटोरिअस प्रमोटी है न तीनों खिल खिला के हंस दिये.




दीपक और मैडम तनु लोक सेवा आयोग की परीक्षा में साथ साथ थे. पास भी साथ-साथ हुए. तनु भी दीपक पर मोहित तो थी किंतु दीपक के बापूजी की बगावत के चलते मिलन पूरा न हुआ. पर पैंच आज़ भी लड़ा लेतें हैं दौनों. पहला इश्क़ दौनों को भुलाए न भूल पाता उस पर पोस्टिंग भी प्राय: पास में ही हो जाती है.  खैर सरकारी काम की आड़ में जो भी होता है वो सरकारी तो होता है. इससे किसी को क्या आपत्ति होने चली. तनु को मालूम  है कि व्यक्तित्व के हिसाब से दीपक को बेमेल बीवी मिली. जिसे वो ढो रहा है. दिल आज़ भी तनु की संदूकची में बंद है. तनु भी अपने मिसफ़िट पति को ढो ही रही थी. पर क्या करें पति से सात वादे जो कराए उस पोपले पंडत ने कब का मर गया वो पंडित खैर जो भी हो ज़िन्दगी ने रुतबा दिया, कमाई का बेहतरीन ज़रिया दिया तो फ़िर काहे की चिंता अब जिसका हसबैण्ड गंजा हो तो क्या हसबैंड न होगा बस न्यूनतम मुद्दों पे समझौता कर तनु बस सपनों में याद कर लेती है उधर दीपक भी गा लिया करता है "तुम होती तो ऐसा होता तुम ये कहतीं तुम वो करतीं आदि आदि..!" 


                       दुनियां भर में जहां सरकारी काम काज कानूनों के सहारे चलते हैं वही दूसरी और भारत में हर व्यवस्था क़ायदों से चला करती है. क़ानून ये है कि हज़ूर आयें तो कोई ज़रूरत नहीं कि उनके हर आगमन का सरकारी करण हो.,किंतु कायदा ये है किहज़ूर की हर यात्रा का सरकारी करण हो और माहहतों द्वारा उनकी जी  हज़ूरी में कोई कमी होअब आप समझ ही गये होंगे कानून और क़ायदे का समीकरण. कानून संविधान की  ॠचाएं हैं तो कायदा राज शाही की का अनुवाद है.
नौकरी तो पिता जी किया करते थे सर उठा के. हमारे दौर में तो कितनी डिग्री दुम उठाना है कितनी नहीं  हज़ूरों की अनुमति पे निर्भर करता है. खैर इस का विशद विश्लेषण अन्य अध्यायों में होगा अभी तो दीपक की रोमांटिक सुबह की तरफ़ चलते हैं
                   गाड़ी का अगले पंद्रह मिनिट में प्लेट फ़ार्म पर जाएगी ये खबर   तो दीपक सर को अच्छी लगी और  नही तनु मैडम को अब्राहम इसी बात की पड़ताल कर रहा था कि हाय इन दो बगुला-बगुली का जोड़ा काहे बिछड़ गया . प्रभू के खेल कितने निराले हैं
              अब्राहम का दिमाग फ़्रायड की तरह जुगाली करने में बिज़ी हो चुका था. शेर छाप बीड़ी का वि¥ÉÉपन को ताकते ताकते जुगाली किये जा रहा था कि राम परसाद बोला:-’सा’ब,गाड़ी आ गई..!
राम परसाद की सूचना से  साधना-भंग होते ही पुन: अपनी औकात में लौट आए साहब के पास दौड़ते हुए पहुंचा. तीनों ए०सी० के सामने आते ही लगभग कोच को प्रणाम की मुद्रा में देख रहे थे गोया… जगन्नाथ के रथ को निहार रहे हों. कोच से साहब का न निकलना उनको परेशान कर गया. कुछ देर बाद मोबाईल ने गुदगुदी की सो दीपक ने फ़ोन उठाया :-“सर,”
“हां सर, आप नहीं आये क्या पूरा कोच खाली हो गया ?”
भई,सक्सेना, तुम बे अक्ल हो मुझे फ़ोन करना था न …?
यस सर सÊरी सर  क्या हुआ…आप नहीं आए ?
अरे भई, सी एस मीटिंग इमर्जैन्सी मीटिग ले रहे हैं आप ट्रेन से मैडम को उतरवा लो. यलो सूट में हैं.
कोच में घुसते ही दीपक को तीन पीले सूट वाली देवियों को निहारा दूसरी वाली बेहद बेतकल्लुफ़ी से पसरीं थी बस पारखी नज़रों ने पहचान लिया और एक हल्की मुस्कान के साथ गुड मार्निंग मै’म शब्द उगल दिया जिसके जवाब में उनके पास सवाल ही लौटा :- तो आप हैं दीपक जी
यस,मै’म
मैडम का दृष्टिकोण सभी के प्रति एक समानता का था. उनके मन में प्रथम श्रेणी और चतुर्थ के मध्य कोई अंतर न समझ में आता आदेश दिया ये ये और हां वो वाला मेरा सामान है   .                 तीनों से दो ने क्रमश: पदानुक्रम में बारी बारी से भारी , हल्का सामान उठा लिया. सबसे हल्का सामान पानी की बाटल दीपक को  पकड़ा दी इस तरह सभी के हाथ काम के सरकारी नारे को बुलंद करती “मै’म” शान से सबसे आगे हो लीं शान से आहिस्ता आहिस्ता कोच से प्लेट फ़ार्म पर आ चुकीं थीं. सारा सामान चैक कर लिया न प्लेटफ़ार्म पर आते ही आदेश हुआ.                                                  
जी फ़िर भी कुछ या आ रहा हो बताऎं मै’म  ? इस बार अब्राहम ने पूछा..
अरे, वो लेज़ का पैकेट और एक मेगज़ीन है
ओ के मै’म देखता हूं, कह कर अब्राहम गाड़ी कोच में पुन: प्रविष्ठ हुआ हां हाथ का वैनिटी-बाक्स दीपक को थमाना न भूला. यह भी कहना न भूला कि आप लोग चलिये मैं आता हूं. यानी कुल मिला के दीपक बाटल और वैनिटी बाक्स ढोयेंगे अब…!!
                   लेज़ का पैकेट और वूमेन मेगज़ीन लेकर अब्राहम तब ट्रेन के कोच से उतरा जब उसने यह देख न  लिया की सारी पीठें गेट की ओर जा रहीं हैं. और फ़िर हौले-हौले लगभग सरकता हुआ चल पड़ा. कैलकुलेशन के मुताबिक जब उसे समझ आया कि अब कार तक पहुंच गये होंगे लोग चाल तेज़ करके पहुंच गया और हांफ़ने का अभिनय भी किया. जाते ही बोला :-मैगज़ीन तो मिल गई थी पर ये लेज़ नहीं दिख पा रहा था उपर वाली सीट पर मिला..बमुश्किल ?
                अपने बास दीपक से बाटल और वैनिटी बाक्स जो ढुलवाना था. मैम कार में सवार, उसके आगे पायलट करता दीपक सबसे पीछे अब्राहम की गाड़ी. पाछ मिनट बाद ही सर्किट-हाउस के पोर्च में रुकी गाड़ी रूम नम्बर… में घुस गईं मै’म यह कहते हुये दस बजे आ जाईये और हां शादी में शाम पांच बजे जाना है तब तक मार्बल-राक्स घूमना था. हां, नाश्ते में एग और ब्रेड-बटर बस . 
                अब्राहम ने रहमान को सब समझा दिया रामपरसाद की ड्यूटी पूरादिन सर्किट हाउस के लिये तय थी .
          पूरा दिन चाकरी में जुटे इन तीनों ने मैडम के हर आदेश  का पालन राजा¥ÉÉ मान के किया. भेड़ाघाट विज़िट, शापिंग आदि के फ़लस्वरूप बिलासपुर इंदौर एक्सप्रेस से वापसी के लिये पहुंचने तक  मै’म की डाक दुगनी हो चुकी थी .
 कुल मिला कर “रुपये…..” का उपरिव्यय.
              सोमवार सरकारी अवकाश था. मंगल को दीपक और जूनियर अफ़सर ने अपने अपने दफ़्तर में जाकर उन फ़ाईलों को गति दी जिनसे “उपरिव्यय समायोजित होंगे ”

टिप्पणियाँ

मुझे तो सत्य लगता है.. कहानी नहीं..
हा हा हा ...!
अभी तो ये प्रथम अध्याय है
पूरा उपन्यास आन लाई न कर पाऊंगा पर कहानी के रूप में पोस्ट आती रहेगी सामने
यथासम्भव

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