एक अपसगुन हो गया. सच्ची...!
दो तीन दिन के लिए कल से प्रवास पर हूँ अत: ब्लागिंग बंद क्या पूछा न भाई टंकी पे नहीं चढा न ही ऐसा कोई इरादा अब बनाता बस यात्रा से लौटने तक . न पोस्ट पढ़ पाउंगा टिपिया ना भी मुश्किल है. सो आप सब मुझे क्षमा करना जी . निकला तो कल था घर से किंतु एक अपसगुन हो गया. सच्ची एक अफसर का फून आया बोला :-"फलां केस में कल सुनवाई है आपका होना ज़रूरी है. कल निकल जाना ! सो सोचा ठीक है. पत्नी ने नौकरी को सौतन बोला और हम दौनों वापस . सुबह अलबेला जी का फून आया खुशी हुई जानकर कि उनसे जबलपुर स्टेशन पे मुलाक़ात हो जाएगी. किंतु अदालत तो अदालत है. हमारे केस की बारी आई तब तक उनकी ट्रेन निकल चुकी थी यानी कुल मिला कर इंसान जो सोकाता है उसके अनुरूप सदा हो संभव नहीं विपरीत भी होता है. श्रीमती जी को समझाया. वे मान गईं . उनकी समझ में आ गया. आज ट्रेन से हरदा के लिए रवानगी डालने से पेश्तर मन में आया एक पोस्ट लिखूं सो भैया लिख दी अच्छी लगे तो जय राम जी की अच्छी न लगे तो राधे राधे
तो "ब्लॉगर बाबू बता रए हैं कि "Image uploads will be disabled for two hours due to maintenance at 5:00PM PDT Wednesday, Oct. 20th" सो आप सब ने देख ही लिया होगा.
टिप्पणियाँ
चलते वक्त किसी अफ़सर का फ़ुन आ जाए तो अपशुगन हो ही जाता है।
चलिए काम हुआ अब मंगल गाईए। घर हो आईए।
नेताओं के साथ तो रोजानाह ही ऐसा होता है, जान लीजिए
बड़ी मुश्किल है .... 20.10.2010 को आई नैक्स्ट में प्रकाशित व्यंग्य
बीस दस बीस दस : यह तो लय है जी, लय की जय है जी : पहेली बूझें
bahut khoob
jai ram jee kee