28.8.10

व्यंग्य: ये आपके मित्र करते क्या हैं..!”

                                              आज़ आफ़िस में मैने सहकर्मी को  बातों बातों में बताया  मेरे एक मित्र  हैं जिनके पास शब्दों का अक्षय भण्डार है. विचारों की अकूत सम्पदा है, कुल मिला कर ज्ञानवान उर्जावान मेरे मित्र को हम अपने बीच का ओशो मानते हैं. उनकी  तर्क-क्षमता  के तो भाई हम कायल हैं.... 
सहकर्मी  ने पूछा कि :”ये आपके मित्र करते क्या हैं..!” 
मैं :-  सोचा न आपने ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचना भी चाहिये जी ज़रूरी है पर आपको बता दूं कि वो उस कार्य को नही  करते हैं जो आप हम  करते करते हैं. जैसे हम-आप नौकरी-धन्धा आदि कुछ करते हैं है न वो ये नहीं करते. जी शादी -शुदा हैं...?
...न भई न ये भी नहीं की उनने . 
तो फ़िर क्या..करते है ..?
जी , एक बात बताओ..? 
पूछो...?
आपने अपने सहकर्मी के खिलाफ़ बास से कल चुगली की थी न...?
सहकर्मी :- अरे ये कोई बात हुई... भाई गलत बातें साहब को बताना ज़रूरी थी  न सो बता दिया. इसमें चुगली जैसी बात कहां..?
जो भी हो वो ये नहीं करते ...!
सहकर्मी थोड़ा झल्लाया पर उसकी खीज पता नहीं क्यों उभर नहीं पाई. एक दीर्घ चुप्पी के बाद उसने पूछा-सा’ब, अब तो बताईये वे करते क्या हैं. 
मैने कहा:- कल हम सबने मिल कर गुप्ता जी के ट्रांसफ़र वाली बात छिपाई थी न गुप्ता जी से ...? यहां तक के सरकारी मेल डिलीट तक कर दी पूरे कमीने पन से ..... हमने ताकि गुप्ता स्टे न पा सके है न ...!
हमारे इस काम  का आपके मित्र से क्या वास्ता ?
वास्ता है न भाई मेरा मित्र इतना कमीनापन नहीं करता जितना हम ने मिलकर किया . 
अब सहकर्मी लगभग आग बबूला होने की जुगत में था कि मैंने कहा:- भाई, भगवान से डरते हो...?
जी 
कितना ?
अटपटे सवाल में अटका सहकर्मी तुरंत तो कुछ  बोल न सका फिर धीरे से बोला :-''बहुत,,,!''
मैंने कहा:- वो नहीं डरता पूरा नास्तिक लगता है ...!
तत्क्षण सहकर्मी ने दावा ही ठोंक दिया :-लगता क्या है ही नास्तिक..फिर भी आप उसके मित्र हो...?
  जी था हूं और रहूंगा भी क्योंकि वो बिना किसी को जाने कोई राय कायम नहीं करता जैसा आपने उसे समझे बगैर नास्तिक होने का दावा कर लिया . भाई मैंने कहा था न कि वो नास्तिक लगता है , दावा तो तुम ने कर दिया कि ''लगता क्या है ही नास्तिक..'' बिना जाने समझे अरे वो भगवान से क्यों डरे ? डरे वो जो पापों में लिप्त है हमारी तरह. 
सहकर्मी ने मुझ से दूर भागने की एक कोशिश और की बोला:-सा’ब, चलूं एक ज़रूरी फ़ाईल निपटाना है . 
अब आप ही बताइये मेरा मित्रता जिससे है वो  कितना मिसफ़िट है है न....?

14 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Udan Tashtari ने कहा…

सतीक...बहुत मिसफिट है.

Udan Tashtari ने कहा…

सतीक= सटीक

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शुक्रिया समीर भाई सुमन जी

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अच्‍छा है
सच्‍चा है।

राजीव तनेजा ने कहा…

आजकल अच्छे एवं सच्चे लोग मिसफिट ही माने जाते हैं इस दुनिया में ...
बढ़िया व्यंग्य

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

फ़िट है जी
आपकी लेखनी
और व्यंग्य दोनो
भले ही मित्र मिसफ़िट हो जाए
उसे फ़िट किया जा सकता है दादा जी।

समयचक्र ने कहा…

मिसफिट है तो फिट करें ...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खूब भईया ।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Sbhee kaa aabhaar

संगीता पुरी ने कहा…

वो मिसफिट रहेंगे तभी तो आपके ब्‍लॉग मे फिट होंगे .. वैसे आपका लेखन फिट है !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

क्या खूब लिखा है...अपने सबसे हट के अंदाज़ में...वाह...
नीरज

ओशो रजनीश ने कहा…

एकदम सही बात कही है ..... .....

एक बार इसे भी पढ़े , शायद पसंद आये --
(क्या इंसान सिर्फ भविष्य के लिए जी रहा है ?????)
http://oshotheone.blogspot.com

Wow.....New

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