"मैंने देखा है सब कुछ" ......................................
संजय कुमार के ब्लॉग से एक कविता.............. "मैंने देखा है सब कुछ" मैंने देखा है सब कुछ मैंने देखा है, खिलखिलाता बचपन डगमगाता यौवन, और कांपता बुढ़ापा मैंने देखा है सब कुछ मैंने देखे बनते इतिहास और बिगड़ता भविष्य टूटतीं उम्मीदें और संवरता वर्तमान मैंने देखा है सब कुछ मैंने देखी है बहती नदियाँ ,और ऊंचे पहाड़ मैंने देखी है जमीं और आसमान बारिस की बूँदें और तपता गगन मैंने देखीं हैं खिलती कलियाँ और खिलते सुमन मैंने देखा है सब कुछ मैंने देखी है दिवाली , और होली के रंग मैंने देखी है ईद , और भाईचारे का रंग मैंने देखे मुस्कुराते चेहरे और उदासीन मन मैंने देखा है सब कुछ मैंने देखा लोगों का बहशीपन और कायरता मैंने देखा है साहस और देखी है वीरता मैंने देखा इन्सान को इन्सान से लड़ते हुए भाई का खून बहते हुए , और बहनों का दामन फटते हुए मैंने देखा है माँ का अपमान, और पिता का तिरस्कार मैंने देखा प्रेमिका का रूठना , और प्रेमी का मनाना मैंने देखा है सब कुछ मैं कभी हुआ शर्म से गीला, तो कभी फख्र से कभी जीवन की खुशियों से, तो कभी दुखों से मैं