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माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
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एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
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सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो ‘सियासी-पलती आग ?
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तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
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रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!
15 टिप्पणियां:
रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!
अच्छी अभिव्यक्ति है,विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूल वातावरण बनाने वाला इंसान ही वास्तविक इंसान होता है।
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो ‘सियासी-पलती आग ?
bahut hi badhiya aur dilchasp baat kahe di aapne
badhai
----- eksacchai { aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
अच्छी अभिव्यक्ति है||||
"RAMKRISHNA"
बहुत सुंदर मज़ा आ गया.
this is best one i have ever heard. congrates for this
शुक्रिया रामकृष्ण जी आपका तो हम कितना अभार कहें कम है
मयूर आप दौनो एक दिन आईये स्वागत है
युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
अद्भुत और फिर आपका स्वर
मिसाल तो है ही नहीं
kahne me zara bhi kanjoosi nahin karoonga ki aapne bade bhaavpravan aur manbhaavan tareeke se paath kiya hai kavita ka.
bahut bahut aabhar Gireesh sir
भावप्रवण अभिव्यक्ति
आभार
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
ye lines mujhe bahut hi acchi lagi. aapne bahut hi acche se kavita paath kiya hai.
आनन्द आ गया सुनकर...बहुत सुन्दर रचना!!
सभी का आभारी हूं
@गिरीश जी, मुझे "आभार" की नहीं, आपके "आशीष" की आवश्यकता है|
"रामकृष्ण"
एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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