11.4.10

सांड कैसे कैसे

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एक बुजुर्ग लेखक  अपने शिष्य को समझा रहे थे -"आव देखा न ताव टपका दिये परसाई के रटे रटाए चंद वाक्य परसाई के शब्दों का अर्थ जानने समझने के लिये उसे जीना होगा. परसाई को बिछौना समझ लिये हो का.?, दे  दिया विकलांग श्रद्धा को रोकने का नुस्खा हमको. अरे एक तो चोरी खुद किये उपर से कोतवाल को लगे बताने चोर का हुलिया . अगर  पुलिस के चोर खोजी कुत्ते नें सूंघ लिया तो सांप सूंघ जायेगा . ....?
 तभी दौनो के पास से एक सांड निकला चेला चिल्लाया-जाने सांड कैसे कैसे ऐरा घूम रहे हैं इन दिनों कम्बख्त मुन्सीपाल्टी वाले इनको दबोच कानी हाउस कब ले जावेगें राम जाने.
बात को नया मोड देता चेला गुरु से बोला:-गुरु जी, अब बताइये दस साल हो गये एक भी सम्मान नसीब न हुआ मुझे ?
तो, क्या कबीर को कोई डी-लिट मिली,तुलसी को बुकर मिला ?
अरे गुरु जी , मुझे तो शहर के लोग देदें इत्ता काफ़ी है .
सम्मान में क्या मिलता है बता दिलवा देता हूं ?
गुरु, शाल,श्रीफ़ल,मोमेन्टो...और क्या.....?
मूर्ख, सम्मान के नारीयल की ही चटनी बनाये गा क्या...इत्ती गर्मी है शाल चाहता है, कांच के मोमेंटो चाहिये तुझे इस के लिये हिन्दी मैया की सेवा का नाटक कर रहा था ? जानता हूं तुझे आदमी से हट के रुतबा चाहिये उन अखबारों में नाम चाहिये जिसको रद्दी-पेप्पोर बाला पुडे बनाने बेच आता है, या कोई बच्चे की ................ साफ़ करने में काम आता है उसमें फ़ोटो छपाना है..वाह से हिन्दी-सुत, तुझे सूत भर भी अकल नईं है. जा जुमले रट के बने साहित्यकार. मैने तुझे मुक्त किया जा भाग जा घूम उसी छुट्टॆ-सांड सा जो पिछले नुक्कड पे मिला था.
गुरु से मुक्त हुआ साहित्यकार इन दिनों ब्लागिंग कर रहा है जहां साड सा एन सडक पे गोबर कर देता है. चाहे किसी का पैर कोई आहत हो उसे चरे हुए को निकालना है सो निकाल रहा है. इधर न तो संपादक के खेद सहित का डर न ही ज़्यादा प्रतिस्पर्धी ........ कभी इसकी पीठ खुजा आता तो कभी उसकी........ बेचारा करे भी तो क्या. दफ़्तर में मुफ़्त का कम्प्यूटर फ़िर हिन्दी की सेवा का संकल्प... हा हा हा......?

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कोई बात नहीं..आज नहीं तो कल सम्मानित हो ही जायेगा..लगे रहना चाहिये उसमें क्या बुराई है. :)

M VERMA ने कहा…

साड़ो की महत्ता को उजागर करने के लिये साधुवाद
छुट्टा साड़ो की बात ही कुछ और है

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

घटोत्कच ने कहा…

कैसन कैसन सांड है?
इनका बैल बनाए का चाही
तभिए काम के हैं।

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां है -अपने बनारस की तो एक साद परम्परा ही रही है -बाण भट्ट एक सांड की कहानी है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अरे ब्लॉगिंग में भी तो यही हो रहा है!!
कुछ लड़ रहे हैं और कुछ भिड़ने की तैयारी मं हं!

बवाल ने कहा…

इन साँड़ों को रूपा फ़्रंट्लाइन पहनवा दो यार, तो ये अपने आप ही सबसे आगे निकल कर औरों को रास्ता दे डालेंगे। हा हा।

हर्षिता ने कहा…

बढियां कटाक्ष किया है आपने जनाब लगे रहे।

Wow.....New

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