स्वर्गीय भवानी दादा का यह गीत उनके जन्म दिवस पर
पूर्णिमा जी के प्रयास से भवानी दादा की स्मृतियां
''अनुभूति पर ''
उपलब्ध है
मेरी आवाज़ में सुनिए गीत फरोश
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मैं तरह-तरह के
गीत बेचता हूँ ;
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत
बेचता हूँ ।
जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;
यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;
यह गीत पिया को पास बुलायेगा ।
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को
पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ;
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान ।
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान ।
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,
यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे;
यह गीत ज़रा सूने में लिखा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिखा था ।
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है
यह गीत बढ़ाये से बढ़ जाता है
यह गीत भूख और प्यास भगाता है
जी, यह मसान में भूख जगाता है;
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर ।
मैं सीधे-साधे और अटपटे
गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ ;
जी, छंद और बे-छंद पसंद करें –
जी, अमर गीत और वे जो तुरत मरें ।
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात
इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ ?
इन दिनों की दुहरा है कवि-धंधा,
हैं दोनों चीज़े व्यस्त, कलम, कंधा ।
कुछ घंटे लिखने के, कुछ फेरी के
जी, दाम नहीं लूँगा इस देरी के ।
मैं नये पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ ।
जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी गीत जनम का लिखूँ, मरन का लिखूँ;
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरन का लिखूँ ;
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का ।
कुछ और डिजायन भी हैं, ये इल्मी –
यह लीजे चलती चीज़ नयी, फ़िल्मी ।
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,
यह दुकान से घर जाने का गीत,
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात ।
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत ।
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ
गाहक की मर्ज़ी – अच्छा, जाता हूँ ।
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ –
या भीतर जा कर पूछ आइये, आप ।
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हँ ।
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
17 टिप्पणियां:
Bhavani dada ka ye geet maine 4 saal pahle pahlee baar padha tha aur tabhi se unka mureed ban gaya.. tab se kareeb 50 baar ise alag-alag andaaz me adayagee ke sath dohra chuka hoon... ek feri wale ki tarah. shayad isiliye aapka pathan prabhavi nahin laga. sir please ise anyatha na len. lekin aapne Bhavani dada ki janmtithi par unko yaad kara kar bada upkaar kiya hai hum par. abhar...
भवानी जी जन्म दिन पर आपने इसे प्रस्तुत कर बहुत बढ़िया किया.
भवानी जी की पावन स्मृति को नमन!
nice
अच्छी प्रस्तुति
शुक्रिया जी
दीपक जी
भवानी दादा ने इसी तरह पेश किया था
इस शहर में सभी वो बुजुर्ग कहतें हैं जिनने ये सुना था उनको
यह गीत यहा आपने सुनाया इअके लिये बहुत बधाई.
मशाल जी की बात को भी ध्यान से सुने. ये गीत आपने अपने अन्दाज़ मे ही सुनाया है. भवानी दा के तेवर मुझे लगता है ऐसे नही होगे. लेकिन इसे सुनाने के लिये फिर से आभार.
http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/03/blog-post_1419.html
भवानी जी जन्म दिन पर आपने इसे प्रस्तुत कर बहुत बढ़िया किया.
बहुत ही प्यारा गीत, बहुत अच्छे अवसर पर सुनवाने/पढवाने के लिए साधुवाद. गीत में हर स्वाभिमानी गीतकार की पीड़ा साफ़ झलकती है. भवानी दादा का यह गीत इस से पहले भी पढ़ चुका था लेकिन आज तो इस का पूरा मर्म समझ में आ गया. धन्यवाद.
सुदर रचना का सुंदर ढंग से प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद !!
जीवन के अच्छे बुरे अनुभव , जब शब्दों में ढल जाते है... तो गीत बन जाते है, जो हमको हमारी हर पल और उनकी गहराइयों तक ले जाकर फिर से जीवन का नया आभास दिलाते है, वक़्त के साथ वही गीत हमारा सहारा बन जाते है, जीवन में सब कुछ ऐसे ही नहीं चलता है, पर एक बार फिर वही वक़्त आता है, और फिर एक नए अनुभव के साथ एक गीत और बन जाता है, यही जीवन का सब से बड़ा सच है कवि का हृदय बहुत ही कोमल होता है वह हर अच्छी बुरी बात का अनुभव अपने कोमलता के साथ ही करता है वही कोमलता जब शब्दों का रूप लेकर माला बन जाती है फिर कवि अपने आप में मस्त होकर वही गीत गाता है
बहुत बधाई...
भवानी दादा को जन्म-दिवस पर सादर नमन!
गीत बहुत सुंदर, आप को बहुत बधाई...
कहो जो कहना है आज खुलके
तुम्हारी कीमत करूंगा दुगनी
kyaa kahein....?
कहो जो कहना है आज खुलके
तुम्हारी कीमत करूंगा दुगनी
bas......
kyaa baat...kyaa baat....kyaa baat......!!
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