संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चाहिए की वे ,सामाजिक आचरण के अनुपालन कराने के लिए ,पुलिस को दायित्व नहीं देना चाहिए . इस तरह के मामले ,चाहे सही भी हों विषेशज्ञ से परामर्श के पूर्व सार्वजनिक न किएँ ,जाएँ , एक और आरुशी के मामले में पुलिस की भूमिका , के अतिरिक्त देखा जा रहा है पुलिस सर्व विदित है . सामान्य रूप से पुलिस की इस छवि का जन मानस में अंकन हो जाना समाज के लिए देश के लिए चिंतनीय है , सामाजिक - मुद्दों के लिए बने कानूनों के अनुपालन के लिए पुलिस को न सौंपा जाए बल्कि पुलिस इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष रूप से स्थापित संस्थाओं को सौंपा जाए । संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी पुलिस को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चाहिए की वे सामाजिक आचरण के अनुपालन कराने के लिए पुलिस को दायित्व नहीं देना चाहिए . इस तरह के मामले चाहे स
टिप्पणियाँ
नमस्कार नमस्कार....
hehehehehehe...ham aapke kaun..... hahahahahahahaa
khushi hui unse milkar..
आगे का आपने सुन ही लिया होगा मै क्यों बताऊँ
हाँ! हाँ बताइए
कौन है...यह आराधना और कविता? अच्छा..... भावना भी है....हा हा हः अह अह अह अह हा हा हा अह हा हा हा ...
रस्तोगी जी को नमन व नमस्कार.... आपको साधुवाद..... और आपका शुक्रिया....इतनी अच्छी बातचीत के लिए....
धन्यवाद
स्वचोरित शब्द को हमने चुरा लिया है। अब इसे धड़ल्ले से किसी व्यंग्य में शामिल करेंगे या सिर्फ इसी एक शब्द पर बेचोरी का माल परोसेंगे।
मुकुल जी का ध्यान तो नहीं है न इस ओर ... वे तो होली की मस्ती में मस्त हैं।
Aapko bahut dhanywaad!
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था .. पेज को रिफ्रेश करने से पूरी बात सुनाई पड गयी .. आप भी ऐसा ही करके देखें !!
मैं तो साला डर ही गया था कि मैं और प्रेमिकाएं...। कहीं मेरे भीतर भी नया टाइगर वुड्स तो पैदा नहीं होने लगा!!!