22.12.09

हास्य-व्यंग्य





ललित शर्मा जी  की मूंछें देखिये और घडी   को देख कर जानिये दफ्तर जाने के लिए सबसे सही समय कौन बता सकता है ?
    
घडी सही है या शर्मा जी मेरे हिसाब से शर्मा जी की मूंछ  ऐसा इस लिए कि हर दफ्तर जाने  वाले को शर्मा जी चेहरा याद करके दफ्तर के लिए एक घंटे पूर्व घर से निकलना चाहिए . अब सवा नॉ बज चुका है आप घर  छोडिये और दफ्तर के लिए निकलिए .
-ललित जी, आपका स्मरण हो आया तो  लगा कि दफ्तर जाने का सही समय आप की मूंछों से बेहतर कौन सुझा सकता है घडी का क्या चली चली न चली सच आपके मोहल्ले में आप की मूंछें ही ही याद दिलाती होंगीं.......   हमारे  मोहल्ले में तो सारे अड़ोसी-पड़ोसी मुछ मुंडे हैं  और हम रोज़ दफ्तर जाने में लेट हो जातें हैं आपके  मुहल्ले के करमचारी  कितने  भाग्यशाली है ....! 
है न ...ललित जी ....?   
मूंछें हो तो नत्थूलाल जी की तरह वरना न हो ? अरे क्यों न हो कोई ज़बरदस्ती है.....मूंछें हों तो ललित जी की मानिंद वरना न हों ! अब यही जुमला चल रहा है  .
चंदू भाई  कल ही पूछ रहे थे ललित शर्मा ब्रांड मूंछें किस तरह बनवाएं ?
हम बोले:-चंदू भाई,यह दिव्य-ज्ञान स्वयं साक्षात ललित जी दे सकतें हैं अथवा उनका केश-सज्जक . 
 चंदू भाई बोले -भाई गिरीश बाबू ललित जी से बात ही करवा दीजिये अब ललित जी से उनकी मूंछों पर बात कराना मतलब कम-से-कम 50 रुपये से अघिक का खर्च , अरे भाई दुनिया जहां की बात करूंगा फिर मूंछ पे आउंगा न अगर सीधे मूंछ पर आ गया तो बस ललित जी गलत समझ लेंगें मुझे. यानी कि हर काम का कोई सलीका होना चाहिए कि नहीं. सो हमने मूंछ विहीन  महफूज़ अली जी का फोन नंबर दे दिया .शाम को चंदू भाई का मिस काल देख हमने उसे उठाया नहीं चंदू भाई को  हमारी ये हरकत नागवारा लगी और 6 मिसकाल दिए दना दन हम भी मुकर गए फोन नहीं उठाया. उठाया तो अपनी शामत निश्चित थी . दूसरे दिन खुद आए चंदू भाई आये चीखने ही वाले थे कि हम उन्ही के सामने श्रीमती जी पे बरस पड़े: जब बता नहीं सकतीं तो मेरा फोन लेकर जातीं क्यों हो...?
फिर हम चंदू भाई की ओर मुखातिब हुए आइये चंदू भाई आइये 
चंदू भाई:-काहे हमारी भाभी जी पे बरस रहे हो.? उनके  "हमारी" शब्द ने तो हमारे मन में आग लगा दी पर लोकाचार वश  हम उनको कुछ कह न सके. 
थोडा शांत मन हुआ तो बोले भाई , कल ये हमारा, फोन ले गईं बी सी पार्टी में हमने कहा कोई साला फोन लगा लगा के परेशान हो रहा होगा यें थीं कि फोन को सायलेंट मोड में रखीं थीं .अब आप के ही सात मिस्ड काल मिले. 
चंदू भाई:-अरे हो गया, हाँ तो काल इस लिए किये थे हमने कि  मूंछ वाले की ज़गह आपने किसी मुछ-मुंडे का नंबर दिया था. 
"किसका....?" हम सयाने पन से बोले सुकुल जी की तरह 
चंदू:-"किसी लखनवी नवाबजादे का था नाम महफूज़ बताया था !"
हम:-सारी भाई ये लीजिये , तभी नाम के साथ ललित जी का स्मरण हो आया लगा सवा-नौ बज गए  तत्काल हमने बहाना मारा चंदू भाई दफ्तर जाना है .

11 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

वाह..मजेदार..ऐसे में तो वो लोग रोज ही लेट हो जाते होंगे जिनके पड़ोसी मूँछ विहीन होते होंगे...मज़ा आ गया आपकी यह शानदार प्रस्तुति से..बहुत बहुत धन्यवाद

शरद कोकास ने कहा…

हम तो समझे थे यह मूछे पौने तीन बजा रही है यानि दफ्तर का लंच टाइम हाहाहाहा...

खोटा सिक्का ने कहा…

गिरीश भाई!ललित भैया की मुछों पर तो अभी तक बहुत पोस्ट लिखी जा चुकी है। अब मेरा निवेदन है कि एक पुराण ही लिख डालिए, पोस्ट की तरह हिट जाएगा। "मुंछ पुराण" का ईंतजार रहेगा। बहुत बढिया ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

भाई हम तो ललित भाई का हंसता हुआ मुखडा देख कर खुश हो गये अब पता नही सवा नॊ बज रहे है या पॊने तीन, बस यही शुभकामाअन्ये करते है कि भाई हमेशा युही खुश रहे

Udan Tashtari ने कहा…

पोने तीन वाला शरद भाई का क्फ्यूजन भी ठीक ही मालूम देता है.

M VERMA ने कहा…

मुझे तो ललित जी की मूछें दिखी ही नही. हाँ ललित जी अक्सर मूछों के पीछे नजर आते हैं.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब बात खोज निकाली आपने?:)

रामराम.

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार

36solutions ने कहा…

बढिया लाईव वॉच.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बडिया लन्च ब्रेक बधाई

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

भई हम तो ये मानते है कि "मूँच्छे" ही इन्सान की असली पूंजी है....बाकी तो सब माया है :)

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