ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .
यहाँ भी एक चटका लगाइए जी
इक पीर सी उठती है इक हूक उभरती है
मलके जूठे बरतन मुन्नी जो ठिठुरती है.
अय. ताजदार देखो,ओ सिपहेसलार देखो -
ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .
कप-प्लेट खनकतें हैं सुन चाय दे रे छोटू
ये आवाज बालपन पे बिजुरी सी कड़कती है
मज़बूर माँ के बच्चे जूठन पे पला करते
स्लम डाग की कहानी बस एक झलक ही है
बारह बरस की मुन्नी नौ-दस बरस की बानो
चाहत बहुत है लेकिन पढने को तरसती है
क्यों हुक्मराँ सुनेगा हाकिम भी क्या करेगा
इन दोनों की छैंयाँ लंबे दरख्त की है
टिप्पणियाँ
ज्वलन्त समस्या को बड़ी सफाई से उजागर किया है।
बधाई।
धन्यवाद रतन भैया ,
रजनीश परिहार साहब,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
आप सभी का आभार इस मुहिम को को आगे लाने रोज़ एक पोस्ट कार्ड
भेजा जा सकता है श्रम विभाग के अधिकारीयों को
शायद बात बने ...........?
अब फ़रियाद का समय नही लोगो को खुद जागना पडॆगा, अगर खाने को नही तो कोन कहता है शादी करो, अगर खाने को नही तो कोन कहता है बच्चे करो, अगर खाने को नही ओर बच्चे किये तो फ़िर मेहनत करो, दारू पी कर किसे धोखा दे रहे हो, बस बदलो बदलो ओर बदलो
अब फ़रियाद का समय नहीं लोगो को खुद जागना पडॆगा, अगर खाने को नही तो कौन कहता है शादी करो, अगर खाने को नहीं तो कौन कहता है बच्चे करो, अगर खाने को नहीं ओर बच्चे किये तो फ़िर मेहनत करो, दारू पी कर किसे धोखा दे रहे हो, बस बदलो बदलो और बदलो
अनिल पुदस्कर साहब : कडुवा है, मगर सच तो है।
बाल-श्रम के संकट को हम सब एक आन्दोलन की शक्ल दे सकते हैं इसे क्रियारूप देने क्यों न हम सारे ब्लागर्स मिल कर एक कम से कम इस मसाले पर जूँ तो रेंगे ........
पोस्ट बांच के राज जी ने जिस बिंदु को जोड़ा है उसे भी हम अति आवश्यक मानतें हैं ..... साथ की अनिल भाई का फोन मिला उत्साहित हूँ इस आन्दोलन को जन आन्दोलन हम लेखक कवि पत्रकार समाज सेवी शुरू कर दें देखें किस की हिम्मत है जो बाधा डाले
बाल-श्रम पर एक पोस्ट के बार सभी ब्लॉगर डालें तो शायद भारत में स्लम डाग जैसी फिल्मों की शूटिंग करने की हिम्मत किसी की न होगी .
भाई भावनाएं बहुत अच्छी लगीं !
दिल में उतर गयीं !
शुभ कामनाएं
आज की आवाज