जननी जन्म भूमिश्च : को विनत प्रणाम के साथ गीत पुन: दे रहा हूँ ..... काम-की अधिकता के कारण ब्लॉग पर नई पोस्ट संभव नहीं थी ।शायद आपको पसंद आए ..... यदि पसंद नहीं आता है तो कृपया इस आलेख को अवश्य
को पढ़ा जाए
धरा से उगती उष्मा , तड़पती देहों के मेलेको पढ़ा जाए
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो
यहाँ उपभोग से ज़्यादा प्रदर्शन पे यकीं क्यों है
तटों को मिटा देने का तुम्हारा आचरण क्यों है
तड़पती मीन- तड़पन को अपना कल समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो
मुझे तुम माँ भी कहते निपूती भी बनाते हो
मेरे पुत्रों की ह्त्या कर वहां बिल्डिंग उगाते हो
मुझे माँ मत कहो या फिर वनों को उनका हक दो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो
मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं न कोई अदावत है
तुम्हारे आचरण में पल रही ये जो बगावत है
मेघ तुमसे हैं रूठे , बात इतनी सी समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो।
आज जबलपुर के सर्रापीपर में जगत मणि चतुर्वेदी जी एक आयोजन कर रहें हैं जिसके अतिथि वृक्ष होंगें यानी .... यानी क्या देखता हूँ शाम को कार्यक्रम है लौट के रपट मिलेगी
6 टिप्पणियां:
Bahut sundar.
Yeh aiaaa vishay hai ki jitani aawaaj lagaayen kam hai.
Aapane bahut sundar likhaa hai.
Badhaayee..
Jayant
आइए, हम कुछ क्षण अपनी धरती मॉं के लिए भी निकालें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Shukriya jayant ji
Zakir Bhai
Sukriya
आप को बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत बढ़िया पोस्ट.धन्यवाद
पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प ले.
बहुत ही सुंदर, बहुत अच्छा काम कर रहे है आप.
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