13.11.08

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग

यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .

********

एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए

मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए

झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !

********

युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा

महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा

हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !

********

सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे

इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !

अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग ?


हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग

13 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
" its really amezing, so thoughtfull"

Regards

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग
बहुत सुंदर और गहरे भावो से भरी कविता ! बहुत शुभकामनाएं !

Udan Tashtari ने कहा…

गहरे भाव-सुन्दर अभिव्यक्ति!! बधाई!

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या बात है, बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Seema gupta ji
Tau ji
Sameer bhai
Raj dada ji
aap sabhee ka abhaaree hain

BrijmohanShrivastava ने कहा…

अशोक का शोकमग्न होना में तो आपने न जाने क्या क्या कह डाला /माचिस की तीली बली बात प्रारम्भ में ही कह कर रचना को बहुत संबेदना युक्त बना दिया है /युगद्रष्टा से पूछ वावरे गहन चिंतन वाकई युगों ने परिणाम भोगा है /कविता में सियासी हत्कंडे की बात कही गई है ये बहुत उलझन वाली चीज़ है सियासत / ""मसलहत आमेज़ होते है सियासत के कदम ,तू न समझेगा सियासत तू अभी इंसान है ""यह बात दुष्यंत जी कह ही चुके हैं

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

बृजमोहन श्रीवास्तव जी
सर्वप्रथम तो इस बात का आभार
की आप ने पढ़ के टिप्पणी की है!
सच यह सुखद संदेश ही है .
अशोक का शोक हमारे जीवन पथ
परिवर्तन का बिम्ब है .
थोदा आत्म चिंतन ही था मेरी अपनी दशा है
जो अशोक से बिम्बित हुई
सादर अभिनन्दन

Jimmy ने कहा…

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महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत ही सुंदर......

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

श्रद्धाजी जैन
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग
वाह! क्या खुब! "ज़िंदा न-ईमान रहे " अच्छी प्रस्तुती!!
हार्दीक मगल भावना!
कृपया मेरे ब्लोग पर पधारे, आपसे विचारो कि अपेक्षा!
महावीर सेमलानी(जैन)

pollicino ने कहा…

Ciao,mi ha fatto piacere vedere i tuoi blog,Un saluto dall'Italia ciao Eugenio

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए

मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए

झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !

behad behtareen .dil se niklee huee aur dil ko choone waalee panktiyaan.

बवाल ने कहा…

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग.
kitnee maarmik abhivyakti hai mukul bhai ye aapkee. dil ko chhoo gayee bhai.

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