बुन्देली समवेत लोकगीत:बमबुलियाँ:


पढ़ें लिखों को है राज
बिटिया....$......हो बाँच रे
पुस्तक बाँच रे.......
बिन पढ़े आवै लाज बिटिया बाँच रे
हो.....पुस्तक बाँच रे.......!!
[01]
दुर्गावती के देस की बिटियाँ....
पांछू रहे काय आज
बिटिया........बाँच ......रे......पुस्तक बाँच ........!
[02]
जग उजियारो भयो.... सकारे
मन खौं घेरत जे अंधियारे
का करे अनपढ़ आज रे
बाँच ......रे....बिटिया ..पुस्तक बाँच ........!
[03]
बेटा पढ़ खैं बन है राजा
बिटियन को घर काज रे.....
कैसे आगे देस जो जै है
पान्छू भओ समाज रे.....
कक्का सच्ची बात करत हैं
दोउ पढ़ हैं अब साथ रे .............!!

गिरीश बिल्लोरे मुकुल
969/-2,गेट नंबर-04 जबलपुर .प्र.
MAIL : girishbillore@gmail.com
इस विषय पर आलेखhttp://billoresblog.blogspot.com/2008/10/blog-post_8836.html, पर उपलब्ध कराया जा रहा है

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
पढ़ के भौतइ मजा आओ बड्डे...
राज भाटिय़ा ने कहा…
क्या बात है, सभी चाहतै है बिटिया अच्छी तरह से पढ लिख जाये, अजी बिटिया कया बेटे भी खुब पढे लिखै,
धन्यवाद
बेनामी ने कहा…
गुड है जी!
बहुत बढ़िया बुंदेली लोकगीत है मित्र
आपको बधाई
आदरनीय संजय जी दादा राज भाटिय़ा जी,अनूप शुक्ल जी,योगेन्द्र मौदगिल जी
आप ओरों खौं हमाई पोस्ट नोनी लगी हमाओ मन फूल गओ...! हमाए बुन्देल-खंड
में , महाकोसल में हर जंघा [हर जगह ] गुरीरी [गुड़ सी मीठी] बोली बोलत हैं....दमोह,सागर,कटंगी,नरसँगपुर....और हमाए जबलईपुर में सुई जा बोली चलत है. हदै.....ऐंसी.....आय.....[ऐसी बात है ]
हमाए दमोए वारे भैज्जा रेडियो बानी लिख-लिख खैं धूम मचा रए हैं तो जे समीर बाबू उड़न बसी [प्लेट/तश्तरी] गज़ब ढा रए हैं
आप सुई अब जबलईपुर आ जाओ इतै से हम नरबदा मैया के दरसन के लानैं चलबी
अरे जो का हम धन्यबाद करबो भूल गए तो सब पंचों खों हमाओ धन्यबाद एक ट्रेक्टर भर खैं

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