10.2.08

प्रेमिका और पत्नी



प्रिया बसी है सांस में मादक नयन कमान
छब मन भाई,आपकी रूप भयो बलवान।
सौतन से प्रिय मिल गए,बचन भूल के सात
बिरहन को बैरी लगे,क्या दिन अरु का रात
प्रेमिल मंद फुहार से, टूट गयो बैराग,
सात बचन भी बिसर गए,मदन दिलाए हार ।
एक गीत नित प्रीत का,रचे कवि मन रोज,
प्रेम आधारी विश्व की , करते जोगी खोज । ।
तन मै जागी बासना,मन जोगी समुझाए-
चरण राम के रत रहो , जनम सफल हों जाए । ।

दधि मथ माखन काढ़ते,जे परगति के वीर,
बाक-बिलासी सब भए,लड़ें बिना शमशीर .
बांयें दाएं हाथ का , जुद्ध परस्पर होड़
पूंजी पति के सामने,खड़े जुगल कर जोड़

इस सप्ताह वसंत के अवसर पर मेरी भेंट स्वीकारिए

पूर्णिमा वर्मन ने अनुभूति में सूचीबद्ध कर लिया है है उनका आभारी हूँ । अनुभूति अभिव्यक्ति वेब की बेहतरीन पत्रिकाएँ है इस बार के अंक में भी हें मेरी उपस्थिति इस तरह दोहों में-
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
राजनारायण चौधरी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल बस एक चटका लगाने की देर है॥
नीचे चटका लगा के मुझ से मिलिए
गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल''

श्रीराम ठाकुर "दादा"

"दादा,वहाँ न जाइए,जहाँ मिलै न चाय "
ये मेरी जमात के किन्तु मेरे से आयु में बड़े चाय के शौकीन साहित्य सेवक हें दुनियादारी और साहित्य की दुकानदारी से दूर दादा सोहागपुर के वासिंदे होते अगर टेलीफोन विभाग में न होते ।
जबलपुर रास आया आता भी न तो भी क्या करते रोटी का जुगाड़ सब कुछ रास ले आता है। हम तो दादा के दीवाने इस लिए हें क्योंकि दादा साफ सुथरे ईमानपसंद सुदर्शन भाल वाले साहित्य के वटवृक्ष हें । इन्हौने सबको पढ़ा है लिखा अपने मन का।
ठाकुर दादा प्रायोजित सम्मानों के लिए दु:खी हें। आज के दौर के साहित्य के लिए आशावादी तो हें किन्तु दूकानदारी यानी "आओ सम्मान-सम्मान,खेलें " के खेल से बचाते रहते हें अपने आप को ..... इनको शुरू में कविताई का शौक था परसाई जी ने कहां भाई गद्य लिख के देखो लिखे और जब चौके-छक्के, लगाए तो हजूर छा गए अपने "दादा" .....! सौरभ नहीं अपने ठाकुर दादा....!!
इनकी अगुआई में पाठक-मंच की गोष्टीयां होती हें कुछ दिनों से बंद क्यों ....? ये न पूछा गया मुझसे। वो यही कहते यही न "कि लोगों के पास टाइम नहीं है...!"
ठाकुर दादा को आप चाय पर बुलाइए,
07612416100 ये न० घुमाइये
दादा अपनी चमकती चाँद लेकर आएँगे
कुछेक व्यंग्य सुनाएंगे आप व्यंग्य पर और आपके बच्चे शायद दादा की चाँद
पर मुस्कुराएंगे ........
दादा बी०एस० एन० एल० रिटायर हों गए हें
अब फ़ुल टाइम कटाई करने के लायक हों गए हें...
आप चाहें तो दादा को चाय पे बुला लेना
एक दिन के लिए सही दुनिया की तक़लीफों को भुला देना ।

दादा की होलियाना कविता सुनाने kavita,पर चटका लगाएं


या यहाँ


2008-03-10-kavita....

9.2.08

गुरु का सायकल-लायसेंस ....!!


मेरा भतीजा गुरु जिसे स्कूल में चिन्मय के नाम से सब जानतें है जब चार बरस का था ...सायकल खरीदने के लिए रोज़ फरमाइश करता था । हम नहीं चाहते थे कि चार साल की छोटी उम्र में दो-पहिया सायकल खरीदी जाए..मना भी करना गुरु को दुखी करना ही था ।सो हमने उसे बहलाने के लिए उसे बताया कि "सरकार ने सायकल के लिए लायसेंस का प्रावधान किया है...!"
जिसे बनाने में तीन चार महीने लगते हें। बच्चे भी कितने भोले होते हें हमने भोलेपन का फायदा उठाना चाहा और लायसेंस बनाने का वादा कर दिया सोचा था गुरु भूल जाएगा इस बात को किन्तु रोज़ रोज़ की मांग को देखते हुए मैंने अपने मित्र अब्दुल समी के साथ मिल कर एक लायसेंस बनाया । जो एक आई डी कार्ड था जिस पर गुरु का फोटो चस्पा था उस पर सिक्के से एक गोल सील लगाईं गई था.. और लिखा था- “आँगन में इस लायसेंस के धारक बच्चे को आँगन में सायकल चलाने की अनुमति दी जाती है.  

उस दिन लायसेंस पाकर खूब खुश हुआ था गुरु । हाथ मे लायसेंस और सायकल के सपने । आज गुरु 10 साल का है बड़ी सायकल चलाता है उसके पास लायसेंस सुरक्षित है। खूब हंसता है जब लायसेंस देखता है ।

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...